मानसून के साथ भुट्टे की धमक…! सभी आयु वर्ग की है पसंद

रायपुर। मानसून के साथ भुट्टा भी धमाके से अपनी मौजूदगी बाजार में जता रहा है। हल्की-मध्यम या रिमझिम बारिश के साथ फुटपाथों घरों पर लोग इसका मजा ले रहे हैं।
आमतौर पर बारिश के शुरुआत होते ही राज्य में भुट्टे की पहली आवक शुरू हो जाती है। हालांकि ज्वार के दानों को भरने में रूप लेने वक्त लगता है। पर मौसम में ठंडकता की वजह से मांग समय पूर्व (उत्पाद के) शुरू हो जाती है। दरअसल रिमझिम फुहार हो या हल्की-मध्यम, तेज बारिश, अंगारे में भुना हुआ भुट्टा- नमक नींबू के रगड़ से और भी स्वादिष्ट लज्जतदार हो जाता है। यही वजह है कि राजधानी समेत तमाम शहरों, कस्बों, के चौक- चौराहों पर ठेला लगा या फुटपाथ पर भुट्टा बेचते छोटे व्यवसायी नजर आने लगे हैं। ये आमतौर मौसमी व्यापार-धंधा करने वाले छोटे व्यवसायी मानसून से लेकर शीत ऋतु ठंड तक यह धंधा करते हैं।
वर्तमान में 10 से 25 रुपए नग के हिसाब से भुट्टा उपलब्ध है। सेक कर देने, बेचने वाले 5 रुपए अतिरिक्त जोड़ कर बेचते हैं। कम दाने वाले (विरल) कम दर पर जबकि घने (सघन) दाने वाले रसभरे दुगने दर पर उपलब्ध है। ग्राहक भरा हुआ रसदार भुट्टा ज्यादा पसंद करते हैं। सभी आयु समूह के लोग भुट्टा खाना पसंद करते हैं।
धंधे से जुड़े लोगों का कहना है कि माल (उत्पाद) खेतों से तोड़े काटे जाने के बाद 15 दिन का रख सकते हैं। या बाद में सुखाकर ज्वार का आटा बनवा सकते हैं। छत्तीसगढ़ में पर्याप्त मात्रा में भुट्टा नहीं होता है। ज्यादातर माल मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र से भी आता है। तीनों राज्यों का माल ज्यादा अच्छा होता है। छत्तीसगढ़ के ज्यादातर किसान मजदूर धान कटाई उपरांत (दीवाली बाद) राज्य से (गांव से) रोजी-रोटी की तलाश में पलायन कर जाते हैं। वे अगर ज्वार की फसल लेना शुरू कर दें या सीख जाएं तो उनकी आय दोगुनी हो सकती है। आहार के नाम पर ज्वार गेहूं से ज्यादा पौष्टिक है।