हरेली त्यौहार 17 को, टोनही – भूत- प्रेत का दावा करने वालों को डा. मिश्र की खुली चुनौती !

अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति दशकों से जुटी
रायपुर। सावन मास में छत्तीसगढ़ी संस्कृति अंतर्गत हरेली त्यौहार प्रसिद्ध है। इस माह यह त्यौहार 17 तारीख को है। ग्रामीण वर्ग को इसका इंतजार रहता है।
हरेली -त्यौहार पर खेती-बाड़ी का कार्य पूर्णतः वर्जित रहता है। ज्यादातर किसान ग्रामीण तो खेत-बाड़ी में भी इस दिन नहीं जाते। खेती-बाड़ी में उपयोग आने वाले तमाम उपकरण मसलन हल, गैंती, कुदाली, फावड़ा समेत बैलों की पूजा अर्चना की जाती है। मीठे- स्वादिष्ट पकवान मसलन मीठा चीला, बोबरा, ठेठरी, खुरमी, पूरी, खीर आदि बनाकर भगवान एवं कृषि उपकरणों को भोग लगाया जाता हैं। बांस- नारियल रस्सी से गेड़ी बनाई जाती है। जिसकी भी पूजा करते हैं। गांव के अंदर बच्चे -युवा गेड़ी चढ़ते- स्पर्धा करते हैं। पूरे गांव का उत्साह-उमंग देखते बनता है। घर-घर, दुकान, वाहनों आदि में नीम वृक्ष की छोटी डालियां टांगी (लगाई) जाती है।
गांवो में दरअसल ऐसी मान्यता (अपरान्ह) है कि हरेली के दिन भूत-प्रेत टोनही आदि रात में निकलते -घूमते हैं। जो मिल जाता है उसका अनर्थ नुकसान पहुंचाते हैं। लिहाजा घर-घर, दुकान, वाहनों आदि में नीम की पत्तियां टांगी (लगाई) जाती है। कहा जाता है कि इसे देख टोनही भाग जाती है। या भूत- प्रेत घरों में प्रवेश नहीं कर पाते।
बहरहाल राजधानी की प्रदेश भर में प्रसिद्ध अंध निर्मूलन समिति के अध्यक्ष संस्थापक डा.नेत्र रोग विशेषज्ञ दिनेश मिश्र एवं उनकी टीम उक्त अंधविश्वास को दूर करने दशकों से लगी हुई है। डा. मिश्र हर वर्ष चुनौती को स्वीकार कर हरेली की मध्य रात गांवो शहरों के मरघटों शमशानों पर जाते हैं। वे कहते हैं कि उनकी टीम को आज कथित भूत- प्रेत टोनही जैसा कुछ नहीं दिखा- मिला यह सब अफवाह है। वे खुली चुनौती देते कहते हैं कि कोई बताए कहां है, उनकी टीम वहां जाएगी खुद के खर्च पर।
बकौल डा. दिनेश मिश्र, बारिश के मौसम में बैक्टीरिया, वायरस बढ़ जाते हैं। स्वच्छता नहीं रहती। नतीजतन उल्टी-दस्त, मलेरिया, डायरिया आदि सामान्य बीमारी फैलती है। जिसे गांव वाले कथित टोनही का किया करार देते हैं। जबकि टोनी, भूत- प्रेत जैसी चीज छत्तीसगढ़ क्या दुनिया में नहीं है। लोग भय, वहमवश दुर्घटना के शिकार होते हैं। चिकित्सा जगत के पास हर बीमारी का इलाज है। जरूरत है कि समय रहते रोगी चिकित्सकों(अस्पताल) के पास पहुंचे। जहां तक नीम की पत्तियों की बात है, तो इसमें कुछ बैक्टीरिया (कीटाणु) नाशक तत्व होते हैं। इसके प्रभाव से कीटाणु मर जाते हैं। इसलिए नीम की पत्ती लगाई जाती है।