खाली-पीली घर तुड़वा बैठे शरद पवार…

० विपक्ष एकता का अगुवा कोई (?) और
० परिवारवाद भी कारक बना
० गेंद अभी अजीत के ही पाले
रायपुर। राजनीति में सब कुछ जायज है। कब दोस्त दुश्मन और दुश्मन -दोस्त बन जाए, कहा नहीं जा सकता। इसी तरह कब कौन पीठ पर छुरा घोंप दे, पता नहीं या अपने का हाथ छोड़ पराये का थाम लें।
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) महाराष्ट्र में रविवार को जबरदस्त फूट पड़ गई। एनसीपी प्रमुख शरद पवार के भतीजे अजित पवार, शिवसेना भाजपा सरकार में अपने 30 समर्थक विधायकों के साथ शामिल हो गए, जिससे वहां खलबली मची हुई है। वयोवृद्ध हो चले कद्दावर राष्ट्रीय नेता शरद पवार की प्रतिक्रिया आयी कि वे फिर जनता के पास जाकर पार्टी खड़ी करेंगे। दूसरी ओर भतीजे अजित पवार का कहना है कि मोदी सरकार अच्छा काम कर रही है एवं शिंदे के साथ पहले भी सरकार में रहे हैं, इसलिए नया कुछ नहीं है।
खैर ! कुछ राजनैतिक विश्लेषक इसे कथित विपक्षी एकता की मुहिम में जुटे-अगवा बनने प्रयासरत (?) शरद पवार को भाजपानीत एनडीए की ओर एक संदेश भी बता रहे हैं। तो दूसरे-अजित पवार की उपेक्षा पार्टी में उनके पर (पंखे) काटने के प्रयासों का प्रतिफल।
पर सच तो यह है कि अगवा तो कोई और (एक चर्चित सीएम) बनने का प्रयास कर रहा है। या दूसरे अर्थों में ऐन-केन प्रकारेण वर्षों से कर रहा है जिसके(?) चक्कर में आकर शरद पवार खाली-पीली अपना घर तुड़वा (?) बैठे।
इस हाई वोल्टेज ताजा तरीन ड्रामें की एक बड़ी वजह कुछ अन्य राजनैतिक विश्लेषक परिवारवाद बता रहे हैं। इस तर्क में बेशक थोड़ा- बहुत तो दम दिखता है। शरद पवार चाहते तो अपने भतीजे को समझाकर पार्टी कार्यकारी या सीधे अध्यक्ष बनाकर कुछ शर्त जोड़ लेते। मसलन चचेरी बहन सुप्रिया पवार को सत्ता में अजीत सदा-साथ रखते हुए सह-अध्यक्ष या आगे सीएम-डिप्टी सीएम पद देने आदि। परंतु शरद ने यहां परिवार (सुपुत्री) को प्राथमिकता दी। नतीजतन बाहर से शांत- विचारमग्न, संकेतों में बात कहने वाले अजित पवार ने अपनी “पावर” तो फिलहाल दिखा ही दी है। गेंद अभी उन्हीं (अजीत) के पाले में हैं।