लोग कथित दहशत से बचे , पुलिस कड़ा एक्शन ले !

0 कथित खौफ -तथाकथित असंवेदनशीलता त्यागें
रायपुर। राजधानी समेत प्रदेश के तमाम कस्बों- शहरों में गुंडे- बदमाशों की कथित दहशत के चलते निर्दोष, अच्छे-भले लोग दिन दहाड़े और रात में बेमौत मारे जा रहे हैं। तो दूसरी ओर कथित और असंवेदनशीलता भी है।
राजधानी के टिकरापारा परिक्षेत्र में मंगलवार रात 9:00 बजे एक नवयुवक की हत्या खुलेआम तब हो गई जब वह आरोपी से खुद को बचाने लोगों से मदद की गुहार लगाता गलियों में दौड़ रहा था। दर्जनों लोगों ने घटना को घटित होते देखा पर गुंडे आरोपी की कथित दहशत के चलते कोई बचाने वे आगे नहीं आए। एक सामान्य से आरोपी की इतनी दहशत और उसी की तरह अन्य बदमाशों की दहशत खौफ टिकरापारा ही नहीं अन्य दर्जनों इलाकों, राज्य के दीगर कस्बों, शहरों में देखी जा सकती है। लोग (दर्शक) आखिर क्योंकर कथित दहशत में घटनाक्रम के वक्त आ जाते हैं।
इस पर एक वरिष्ठ -सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं- पुलिस डर, रौब 2-3 दशक पूर्व जैसा नहीं रहा। स्थिति सामान्य रहने पर पुलिस अधिकारी, जवान, आमजनों से गलबहियां करते हैं। ऐसे में जाने- अनजाने वे अपराधियों से भी मिलते रहते हैं। नतीजतन पुलिस का डर, खौफ, रौब खत्म हो गया है। परिणामस्वरूप छोटी- मोटी बातों पर अपराध हो रहे हैं- निर्दोष मारे जा रहे। वे जोड़ते हैं कि क्यों आरोपी को डंडा मारने अब जुलूस जगह-जगह नहीं निकाला जाता। बाल -मूंछ आधा क्यूंकर नहीं मुंडवाया जाता हैं। जिससे लोगों में दहशत, खौफ खत्म हो और पुलिस का रौब बढ़े।
दूसरी ओर एक वरिष्ठ समाजसेवी कहते हैं कि लोगों में कथित संवेदनशीलता है। जो सामान्य स्थिति में संवेदनशीलता दिखाई देती है। पर किसी घटनाक्रम का गवाह बनते समय कथित संवेदनशील व्यक्ति खुद खौफ, दहशत में आ जाता है। यहां वह अकेले भी है तो अगर घटना के समय वह अन्य सामान्यजनों से तत्काल चर्चा कर यथासंभव दखल दे या पुलिस को खबर दे, जिससे अपराधों को रोका जा सकता है। ध्यान रहे कि गुंडा, बदमाश, उठाई गिरी की हरकतों, घटना को अंजाम देने की चुपचाप खबर देने वाले लोगों का नाम पता पुलिस उजागर नहीं करती। पुलिस फौरन सक्रिय (एक्टिव) होती हैं। दूसरे पर अटैक के समय तटस्थ रहना एक दिन खुद के विरुद्ध घातक बन सकता हैं।