समान नागरिक संहिता पर तमाम दल लोकसभा में करें चर्चा

रायपुर। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा समान नागरिक संहिता पर खुलकर विचार रखने के बाद, कांग्रेस का अपनी राय बताने के बजाय यह कहना कि पीएम मुददों से ध्यान हटाना चाहते हैं- अगर इसे सच मान भी लिया जाए तो क्या-कांग्रेस अपने निर्णय या विचार से जनता का ध्यान नहीं हटा (बंटा ) रही है।

लंबे अरसे से देश में समान नागरिक संहिता विधेयक पर चर्चा होती रही है। देश भले धर्मनिरपेक्ष हो पर देश का कानून सबसे बराबर लागू होता है। अपराध करने, दोषी ठहराए जाने के बाद, न्यायालय फैसला देते समय यह नहीं देखता कि दोषी किस धर्म का है। देश के परिपेक्ष्य में अगर स्पष्ट कानून हो आपसी तालमेल बढ़ता है। पर यह तर्क देना कि धर्म, जाति, समुदाय आधार पर रीति रिवाज अनुरूप गुजर-बसर करने की इजाजत देनी चाहिए तब फिर व्यक्ति- समुदायनुसार कानून लागू होगा जो विरोधाभास पैदा करता है। इतनी सी बात तो प्राथमिक-मिडिल स्कूल का विद्यार्थी भी समझता है। रही बात आदिवासी या जनजाति वर्ग पर लागू करने की तो उनकी ओर से कथित आपत्ति दर्ज कर उसका निराकरण किया जाए।

तमाम तारीख लोकसभा में चर्चा कर मामला वोटिंग आधार (मतदान) पर सुलझा सकते हैं। हीला-हवाला कर आप (दल) जवाबदेही से नहीं बच सकते। यहां यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि किसी भी राजनैतिक दल की अपनी आचार संहिता प्रत्येक कार्यकर्ता पदाधिकारी पर बराबरी से लागू होती है। तब दल चलता है। क्या ऐसा ही देश के– संदर्भ में लागू नहीं होता।

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