मणिपुर जातीय संघर्ष – विराम लगाने झलक..!

नारी की अस्मिता के आगे बाकी मुद्दे गौण

मणिपुर। मणिपुर में जारी जातीय संघर्ष में विराम लगाने की एक झलक दिखाई दी है। जिसे पकड़ कर आगे बढ़ा जा सकता हैं।

मई पहले हफ्ते की शर्मसार कर देने वाली घटना बाद, घटना के मुख्य आरोपी का घर उसी के समुदाय की आक्रोशित महिलाएं जला रही हैं। जिनमें कुछ पुरुष भी हैं। यह दृश्य घटना से उपजे स्वाभाविक आक्रोश को बताता है, वहीं यह भी बयां करता है कि घटनाक्रम की शिकार दोनों महिलाओं की पीड़ा, अस्मिता से छेड़छाड़ को वे भी आरोपी के (समुदाय की महिलाएं) बर्दाश्त नहीं कर पाई। दूसरे अर्थों में महिलाएं, महिलाओं (नारियों) की अस्मिता उनके सम्मान के लिए अपनों के (आरोपी होने पर) विरुद्ध खड़ी हुई हैं। बारीकी से अध्ययन करें तो स्पष्ट है कि जिन मुद्दों जमीन, जंगल, पहाड़ के आरक्षण या कब्जे आदि को लेकर संघर्ष चल रहा है वह गौण हैं। नारी की इज्जत, अस्मिता पहले हैं। (आरोपी के घर को आग के हवाले करते हुए महिलाएं यही बताना-दिखाना चाहती हैं।)

उपरोक्त झलक को मौके (अवसर) के तौर पर लेकर संघर्ष विराम हेतु नए कदम उठाए जा सकते हैं। यानी दोनों समुदायों की महिला वर्गों से चर्चा की जाए। यह चर्चा केंद्र -राज्य सरकार द्वारा या न्यायालय द्वारा गठित महिला समिति शुरू करें। समिति मंडल में पूर्व विश्व चैंपियन महिला बॉक्सर मेरी मरियम अच्छा चेहरा हो सकती हैं। समिति दोनों समुदायों की महिलाओं को समझाए कि इस जातीय संघर्ष में वे अपना पिता, भाई, पति, पुत्र, अस्मिता खो रही हैं। इन चारों चीजों को दुर्भाग्य से पुरुष वर्ग छीन (मार) रहा है। घर-परिवार अपनों को खोकर कुछ हासिल हो भी गया तो कोई मतलब नहीं रह जाएगा। टीस-कसक, पीड़ा, दर्द भरी जिंदगी (परिवारिक क्षति) गुजारने के बजाय चर्चा कर दोनों समुदाय बीच का रास्ता खुद निकाल सकारात्मक माहौल में समझोता करें। सब कुछ खोकर होश में आने से बेहतर है- समय रहते जागरूक हो कर समस्या का जड़ से निपटारा। दोनों इस देश के नागरिक हैं, दोनों को जीने का अधिकार है। देश दोनों समुदायों का भला चाहता हैं।

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