सब्जी भाजी में लगी आग ठंडी होते नहीं दिखती
रायपुर। सब्जी- भाजियों के दामों में इन दिनों आग लगी हुई है। आसमान छूते दामों के चलते समान्य एवं गरीब तबके की थाली से सब्जी-भाजी नदारद है। ऐसा हर वर्ष ऐन मानसून सीजन के शुरुआती महीनों में देखा जा रहा है। फिलहाल ग्राहकों को राहत मिलने की उम्मीद नजर नहीं आ रही है।
तत्संबंध में ई. ग्लोबल न्यूज़ डॉटकॉम ने पड़ताल की। सब्जी उत्पादक ग्रामीणों का कहना है कि चाहे ठण्डी, गर्मी या वर्षाकाल हो। उन्हें समुचित लाभ नहीं मिल पाता। कई बार तो लागत निकालना मुश्किल हो जाता है। चाहे बाजार में कीमत बेतहाशा बढ़ी या बढ़ाई गई हो पर इसका जरा भी लाभ उन तक नहीं पहुंचता।
उत्पादकों का आगे कहना है कि शासन- प्रशासन का खाद्य एवं कृषि विभाग सही मॉनिटरिंग करे तो दामों को कंट्रोल किया जा सकता है। उनका आरोप है कि उत्पादन के लिए सारी मेहनत मजदूरी वे (उत्पादक) करते हैं, माल- भाड़ा वे ही देते हैं। लाभ व्यापारी वर्ग उठा ले जाता है। आरोप में आगे कहते हैं कि कोई भी उत्पादक- किसान जब माल बेचने हाट- बाजार (सब्जी मंडी) पहुंचता है तो दलाल एवं उसके गुर्गे पहले से पहुंचे हुए होते हैं। वे लोग उन्हें (उत्पादकों) मंडी के अंदर जाने नहीं देते। जबरिया बाहर रोककर गाड़ी खाली करा लेते हैं। जिसके बाद दलाल औने- पौने भाव खुद तय कर माल देने को विवश करते हैं। दलाल- दिखावे के लिए अलग-अलग समूह में होते हैं पर अंदर से मिले होते हैं।
बकौल उत्पादक यहां सब्जी मंडी के बाहर उन्हें मजबूरन माल भेजना पड़ता है। बड़ी मुश्किल से लागत -ट्रांसपोर्टिंग खर्च निकलता है। चाय- पानी, नाश्ता का खर्च खुद की जेब से (आय) जाता है। यहां पर प्रशासन को नियमित मॉनिटरिंग करनी चाहिए। पर ऐसा कभी नहीं होता दलाल से माल थोक वाला नीलामी में खरीदता है। तब कीमत में 30-35 प्रतिशत इजाफा हो चुका होता है (दलाल का हिस्सा)। थोक वाला चिल्हार वालों को बेचता है, कीमत 70 -75 प्रतिशत से अधिक पहुंच जाती है। चिल्हर वाला 15 – 20 प्रतिशत लाभांश जोड़ कर माल 90-95 प्रतिशत दर (बढ़ी हुई) बेचता है। यानि उत्पादक द्वारा जो सब्जी- भाजी 10 रुपए किलो दर पर दलाल को दी जाती है। वह चिल्हर वाले के पास 18-19 रुपए किलो बिकता है। यह बढ़ोत्तरी प्रतिशत अलग-अलग सब्जियों पर अलग अलग रहता है। कुल जमा दलाल- थोक विक्रेता फायदा में रहते हैं। दोनों से गरीब सब्जी विक्रेताओं लड़ नहीं पाता। दलाल- थोक विक्रेता, चिल्हर विक्रेता प्रतिमाह लाखों कमाते हैं। ऐसे भी सब्जी- भाजियों के दाम आसमान छूते हैं। जैसे अभी टमाटर का भाव ऊपर बना हुआ है।
लैलूंगा, रायगढ़ टमाटर का गढ़ बना हुआ है। जिसका रखरखाव सरकारी एजेंसी को किया जाना चाहिए। खाद्य -विभाग अगर उक्त बढ़ा अंतर (कीमत) देखे तो स्वयं होकर दर निर्धारित करें। परन्तु छत्तीसगढ़ में दलालों का आतंक है, उत्पादक दबाव दहशत में होते हैं। उत्पादकों का यह भी कहना है कि उन्हें दलाल, थोक, विक्रेताओं के चुंगल से बाहर करा सरकार दामों को नियंत्रित कर सकती है।