पुराने शहर में सिटी बस बढ़ाने का दबाव व्यर्थ -खर्चीला नवा रायपुर में फर्राटा भर कमाई करेगी (भविष्य)

रायपुर। शहर में सिटी बस संचालन बढ़ाने का दबाव व्यर्थ एवं खर्चीला है। यह आपरेटरों के लिए सफेद हाथी पालने वाली बात होगी। दरअसल पुरानी राजधानी की सड़कें इतनी चौड़ी नहीं है कि सिटी बसें पूरी रफ्तार से दौड़ सकें। रही सही कसर फुटपाथों पर अतिक्रमण, वाहन खड़ी करने से पूरी हो जाती हैं।
आमतौर पर शहर के अंदर आटो वालों पर मनमानी का आरोप दशकों से लगते रहा है। ज्यादा किराया, जगह -जगह खड़ी करना, ट्रैफिक व्यवस्था बिगाड़ना आदि। जब -जब आरोप बढ़ते हैं। तब-तब थोड़ी कार्रवाही कर इतिश्री कर ली जाती है। पर बाद में फिर समस्या ज्यों की त्यों। ऊपर से यात्री स्वयं आटो में बैठकर जाना ज्यादा पसंद करते हैं। जिसकी एक बड़ी वजह समय। यात्री सिटी बसों का खुद इंतजार करना पसंद नहीं करते थोड़ी दूरी के लिए वे आटो पकड़ फौरन गंतव्य पहुंच जाते हैं। जबकि सिटी बस का इंतजार, आ गई तो जरूरी नहीं गंतव्य तक नहीं जाएगी। उसके लिए बस से उतरकर फिर आटो पकड़ों। बसें धीमी चलेगी।
पुरानी राजधानी या शहर के अंदर की सड़के बहुत ज्यादा चौड़ी नहीं है। लिहाजा एक साइड पर दो बसें निकालना (ओवरटेक) मुश्किल होता है। तमाम चौक सौंदर्यीकरण उपरांत भी इतने चौड़े नहीं है कि सिटी बसें आसानी मुड़ (टर्न) जाए। तुर्रा -तमाम प्रमुख मार्ग पर चले जाये दुकानें के बाहर अतिरिक्त समान,ग्राहकों के वाहन, ठेले, खोमचे वाले या फुटकर धंधा वाले व्यवसाय करते मिल जायेगे। जिन्हें दसों बार हटाओ ग्यारहवीं- बारहवीं बार फिर बैठेगे। वाहन जब्ती करें- कुछ दिन बाद फिर खड़ी करने लगते हैं। आप ज्यादा चौड़ीकरण कर कर नहीं सकते। जो पेचीदा विषय है। जिसका सर्वोत्तम उदाहरण तात्यापारा, नवीन बाजार से फूल चौक, शारदा चौक रास्ता है। स्थाई उक्त कारणों का लाभ आटो वाले उठाते रहे हैं। इसलिए उनकी संख्या दिनों दिन बढ़ते जा रही है। यही वजह है कि सिटी बसों को यात्री पर्याप्त क्या क्षमता से एक तिहाई भी नहीं मिलते। कमाई कम खर्चे ज्यादा है।
बेहतर होगा नई राजधानी या नवा रायपुर में सिटी बस का प्रयोग ज्यादा करे। आगे किया भी जाएगा। वहां आगे चलकर सिटी बसे कारगर होगी। वजह पर्याप्त चौड़ी सड़कें, पार्किंग स्थल, हाट-बाजार, रहवास, सब कुछ योजनाबद्ध तरीके से। नवा रायपुर में आटो कम रहेगी। फेल होगी। उन्हें धंधा महंगा पड़ेगा। जबकि सिटी बसे सस्ती, भरी रहेगी। फिलहाल शायद आगे भी पुराने शहर की स्थिति ज्यों की त्यों रहेगी। जबरिया करना दवाब बनना व्यर्थ पैसा बहाना हैं। सिटी बस बढ़ाने का विचार यहां बेतुका है। सिटी के अंदर के कितने स्कूल-कालेज, विश्वविद्यालय के पास सिटी बसे हैं। क्यों नहीं रखते