केंद्रीय विश्वविद्यालय की अपील खारिज की हाईकोर्ट ने, दैनिक वेतन भोगियों को नियमित करने से जुड़ा है मामला

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बिलासपुर। हाई कोर्ट के डिविजन बेंच ने गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय की अपील खारिज कर दी है, जिसमें दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों को नियमित करने के आदेश को चुनौती दी गई थी।

राज्य शासन के उच्च शिक्षा विभाग ने 5 मार्च 2008 को विश्वविद्यालय के तृतीय एवं चतुर्थ वर्ग कर्मचारियों को नियमित करने के लिए एक सर्कुलर जारी किया था। इस पर तत्कालीन कुलपति प्रोफेसर एलएन मालवीय ने एक प्रस्ताव 22 जुलाई 2008 को कार्यपरिषद से पारित कराया और उसी के मुताबिक 26 अगस्त 2008 को दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों को नियमित करने का आदेश जारी कर दिया। इसके कुछ समय बाद 15 जनवरी 2009 को यह विश्वविद्यालय केंद्रीय विश्वविद्यालय बना। केंद्रीय विश्वविद्यालय एक्ट के तहत यह आदेश भी प्रभावशील हो गया कि किसी भी कर्मचारी की सेवा शर्तों को राष्ट्रपति की अनुमति के बिना नहीं बदला जाएगा। इसके पूर्व दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों को नियमित वेतन दिया जाना शुरू किया जा चुका था, पर विश्वविद्यालय ने इन्हें नियमित करने के राज्य शासन की अनुशंसा और पूर्व की कार्यपरिषद के आधार पर जारी आदेश को रद्द कर दिया और उन्हें दैनिक वेतन भोगी का वेतन दिया जाने लगा।

सिंगल बेंच के आदेश को दी थी चुनौती

इस मामले में विश्वविद्यालय के कर्मचारी मोहम्मद हारुन, मेला राम और अन्य की ओर से इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। जस्टिस रजनी दुबे की सिंगल बेंच ने सुनवाई के बाद केंद्रीय विश्वविद्यालय प्रबंधन को आदेश दिया कि इन कर्मचारियों को नियमित किया जाए। साथ ही पूर्व के आदेश की तिथि से उनको समस्त लाभ प्रदान किए जाएं।

विश्वविद्यालय ने इस आदेश को डिवीजन बेंच ने चुनौती दी। जस्टिस रमेश सिन्हा व जस्टिस राकेश मोहन पांडे की बेंच ने सुनवाई के दौरान पाया कि केंद्रीय विश्वविद्यालय एक्ट लागू होने से पूर्व ही दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी नियमित किए जा चुके थे, अतः सिंगल बेंच का आदेश सही है। इस मामले में राष्ट्रपति से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है। डिवीजन बेंच ने विश्वविद्यालय की याचिका खारिज कर दी।

हाई कोर्ट के इस फैसले से गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय के दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों को काफी राहत मिली है।

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