बड़े नामी कालेजों में शिक्षकों के लिए कट आफ मेरिट्स क्यों ना हो !

स्टूडेंट का एडमिशन जब कटआफ मार्क्स पर…

रायपुर। कॉलेजों में एडमिशन का दौर शुरू हो चुका है। राज्य भर के तमाम विश्वविद्यालयों से सम्बद्ध बड़े शहरों-मंझोलों नगरों में प्रवेश हेतु कट आफ मार्क्स ऊपर बने हुए हैं। स्टूडेंट से आवेदन के वक्त कोई पांच कालेज खुद की वरीयतानुसार मांगे गए हैं, परंतु वरीयता सूची कॉलेज प्रबंधन तैयार करते हैं। स्वाभाविक है कि गुणाक्रम या मेरिट आधार पर।

उपरोक्त व्यवस्था कालेजों का स्तर देखकर या स्टूडेंटों की चाहत आधार पर लागू हुई। यानी जहां ज्यादा आवेदन आते रहे हैं। वहां कटआफ मार्क्स (यानी प्रवेश हेतु अंतिम प्रतिशत निर्धारण) ऊपर 75-80-90 तक जाते है। इसी तरह मध्यम या औसत दर्जे वाले कालेज। जहां 55 से 70-75 या औसत 40 से 50-55 प्रतिशत वाले (कटआफ मार्क्स) स्टूडेंट को प्रवेश मिलता है।

सवाल यहां यह नहीं कि बड़े शहरों के बड़े कलेजों में कटआफ मार्क्स ऊपर क्यों हैं। बल्कि सवाल विरोधाभास पर है। यही व्यवस्था इन बड़े कालेजों के शिक्षकों-कर्मियों पर लागू क्यों नहीं की जाती। इन कालेजों में पदस्थापना उन्हें ही क्यों न दी जाए जो अकादमिक तौर पर ऊपर हो, श्रेष्ठ हो। मसलन रिसर्च पेपर, सेमिनार, संगोष्ठी, परियोजना कार्य, डी.लिट्, पीएचडी, एमफिल। साथ ही पढ़ाने की शैली, चरित्र आदि का मूल्यांकन आधार पर। वास्तव में प्रोफेसर के अनुकूल। ऐसे ही उन कर्मियों को क्यों न पदस्थापना दी जाए जो अच्छे कार्य,अनुशासन बड़े अनुभवी, जानकार, अच्छा चरित्र,कार्य के प्रति -प्रतिबध्दता (कटिबद्व ) जब आप बड़े स्तरीय कालेज बता-घोषित कर स्टूडेंट के लिए कटआफ मार्क्स निर्धारित कर सकते हैं तो फिर क्या आपकी (प्रबंधन) जवाबदेही शिक्षक के लिए नहीं रहती क्या उपरोक्त आधार पर पूर्ण योग्य (अधिकतम) शिक्षक नहीं रखना चाहिए। क्या 90 -100 फीसदी रिजल्ट नहीं आना चाहिए। फिर अगर स्टूडेंट फेल होता है या थर्ड डिवीजन,सेकेंड डिवीजन आता है तो फिर किस बात का बड़ा कालेज। जबकि छोटा -मंझोले कालेज में प्रवेश पाया विधार्थी भी कभी-मेरिट,प्रथम श्रेणी में आता हैं। वहां भी योग्य वेल क्वलीफाइड शिक्षक होते हैं।

About The Author

© Copyrights 2024. All Rights Reserved by : Eglobalnews