दादा-परदादा के जमाने की 125 बरस पुरानी बुक डिपो संचालित कर रहे हाजी परवेज

० छत्तीसगढ़ की पहली बुक डिपो
० परवेज राष्ट्रीय स्तर के हॉकी खिलाड़ी रहे
० पाठ्य पुस्तकों, स्टेशनरी समेत धार्मिक किताब भी मौजूद

रायपुर। शिक्षा (तालीम) की अलख जगाने हजरत कासीमुद्दीन ने 19वीं सदी के अंतिम वर्षों एवं 20 वीं सदी के शुरुआत में रायपुर शहर (तब कस्बा) में पहला बुक डिपो खोला। तब यहां छत्तीसगढ़ में शिक्षा का स्तर नगण्य प्रायः था। यह वक्त मुल्क की आजादी के लिए संघर्ष का दौर भी था। लिहाजा बुक डिपो आजादी के दीवानों के लिए एक अड्ड़ा था। जहां उन्हें देश के विभिन्न हिस्सों से प्रकाशित होने वाले पत्र-पत्रिकाएं, समाचार पत्र मिल जाया करते थे।

हजरत कासीमुद्दीन द्वारा गोलबाजार में बुक डिपो शुरू की गई। जो आज कसीमुद्दीन एंड सन्स बुक डिपो के नाम से राजधानी समेत समूचे छत्तीसगढ़ में मशहूर है। उनकी चौथी पीढ़ी इस वक्त बुक डिपो का संचालन कर रही है। 125 वर्षों से अनवरत सेवा दे रही बुक डिपो के वर्तमान संचालन उनके परपोते हाजी परवेज शकीलुद्दीन से ग्लोबल न्यूज डॉट कॉम ने खास चर्चा की।

बकौल हाजी परवेज शकीलुद्दीन, परदादा हजरत कासीमुद्दीन ने जब छत्तीसगढ़ सूबे (राज्य) के अंदर बुक डिपो खोली तब मध्य प्रदेश राज्य नहीं बना था। यह क्षेत्र सेंट्रल प्राविंस सी. पी. एंड बरार कहलाता था। उस वक्त यहां तालीम या शिक्षा का प्रतिशत 10 फीसदी से कम रहा होगा। हाजी परवेज बताते हैं कि दादा-परदादा के जमाने में लोग अत्यंत दूर-दूर से पुस्तक, पत्र-पत्रिकाएं खरीदने आते थे। रायपुर भले तब कस्बा था पर आजादी के प्रांतव्यापी संघर्ष का केंद्र था। लिहाजा स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े लोग आंदोलन पर देश भर में तत्संबंध में छपने वाली पुस्तकों, पॉम्पलेट्स, पत्र-पत्रिकाओं, समाचार पत्रों के लिए गोल बाजार स्थित दुकान (डिपो) पहुंचते थे। वे देश में होने वाले घटनाक्रमों पर चर्चा करते। पुस्तकें खरीदते वक्त एक-दूसरे की आजादी संबंधी लड़ाई की गतिविधियों से अवगत/जागरूक होते योजना बनाया करते थे। पं. रविशंकर शुक्ल, श्यामाचरण, विद्याचरण शुक्ल, मोतीलाल वोरा, केयूर भूषण, छेदीलाल, बनवारी लाल अग्रवाल समेत राज्य के प्रायः सभी दलों के (इस समय) सैकड़ो नेता, प्रतिनिधि बुक डिपो से जुड़े रहें हैं।

आज बुक डिपो में स्कूल, कालेज के सभी कक्षाओं के विद्यार्थियों की पुस्तक, कापियां, स्टेशनरी, प्रैक्टिकल, उपकरण उपलब्ध हैं। छत्तीसगढ़ के विभिन्न शहरों -कस्बों के दशकों पुराने चिल्हर विक्रेता यहां से माल ले जाते हैं। वे चिल्हर विक्रेता बाप-दादों के समय से जुड़े हैं। बकौल परवेज अब डिपो से ऑनलाइन सेवा भी निःशुल्क दी जा रही है। कोई भी दूर- दराज जैसे -जगदलपुर, रायगढ़, सरगुजा, कवर्धा, खैरागढ़ में बैठा विद्यार्थी, दुकानदार से ऑनलाइन ऑर्डर कर सेवा प्राप्त कर सकते हैं। वे आगे बताते हैं कि प्रतियोगी परीक्षा संबंधी तमाम पुस्तकें, गाइड, नोट्स भी उनके यहां उपलब्ध है। हर स्तर की प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे उम्मीदवार खरीदी के लिए आते हैं या ऑनलाइन सेवा लेते हैं।

हाजी परवेज ने एक अहम जानकारी दी कि उनके यहां पर दादा के समय से तमाम धर्मों, समुदायों, संप्रदायों की धार्मिक किताबें भी उपलब्ध है, वह भी रियायती दरों पर। चाहे रामायण, रामचरितमानस, गीता, कुरान, बाईबिल या गुरुग्रंथ साहिब हो। अन्य धर्म ग्रंथ, सभी धर्मों के प्रमुख, धार्मिक लोग किताबें लेने आते हैं। यह नावेल्टी केवल उनकी बुक डिपो पर है। दशकों पुराने धर्म ग्रन्थ भी यहां उपलब्ध हैं।

हाजी परवेज शकीलुद्दीन अपने समय के जाने-माने राष्ट्रीय स्तर के हॉकी खिलाड़ी रहे हैं। उनके खेल को देखते हुए रेलवे ने उन्हें नागपुर डिवीजन में नौकरी दी। जहां वे 13 वर्षों तक सेवा देने के बाद, त्याग पत्र देकर-बतौर चौथी पीढ़ी बुक डिपो का संचालन कर रहे हैं। उनके अनुसार नौकरी में कोई दिक्कत नहीं थी, पर बाप-दादा का धंधा परंपरागत तौर पर कंधे पर लेना उनकी अहम जिम्मेदारी थी। फिर वे इसे बढ़ाकर अनवरत संचालित रख गौरवान्वित महसूस करते हैं।

बहरहाल परवेज कहते हैं कि तालीम (शिक्षा) से इंसान का भविष्य संवरता है। पुस्तक-किताब पढ़ने से निखरता है। इसे आदत बना लेने से प्रावीण्यता – विशेषज्ञता आती है। उन्हें गर्व है कि वे उस पीढ़ी के सदस्य हैं जो रायपुर में पहला बुक डिपो लेकर आई है।

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