देवशयनी एकादशी (श्रीहरि योगनिद्रा में लीन)

देवशयनी एकादशी इस बार 29 जून 2023, चातुर्मास 148 दिनों का रहेगा।
रायपुर। आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी या हरिशयनी एकादशी कहते हैं। इस साल देवशयनी एकादशी 29 जून 2023 को है। इस दिन श्रीहरि विष्णु की पूजा करने से कई गुना अधिक फल की प्राप्ति होती है। इस बार चातुर्मास 148 दिनों का रहेगा। देवशयनी एकादशी से चार माह तक भगवान विष्णु प्रबोधनी एकादशी तक के लिए योग निद्रा में चले जाएंगे। फिर वे देवउठनी एकादशी को योग निद्रा से बाहर आएंगे, तब चातुर्मास का समापन होगा। देवउठनी एकादशी 23 नवंबर को है। इस तरह से चातुर्मास 30 जून से लगेगा और 23 नवंबर को खत्म हो जाएगा। इस बार श्रावण पुरुषोत्तम मास होने की वजह से दो माह तक है, इसलिए चातुर्मास की अवधि पांच माह होगा। इस दौरान सभी मांगलिक कार्य बंद रहेंगे। हिंदू धर्म में चातुर्मास का बहुत अधिक महत्व माना जाता है। चातुर्मास की शुरुआत आषाढ़ माह से शुरू होती है और कार्तिक की एकादशी के दिन खत्म होते हैं।
योग निद्रा से कब जागेंगे देव
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि पांच माह की निद्रा के बाद कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी को जब भगवान विष्णु योग निद्रा से उठते हैं तब फिर से सभी मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं। इस बार चातुर्मास चार माह की बजाय पांच माह तक रहेंगे। देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से जीवन में खुशियां आती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, देवशयनी एकादशी से प्रबोधनी एकादशी तक भगवान विष्णु क्षीरसागर में शेषनाग पर विश्राम करते हैं। इन चार महीनों में सभी मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाती है
चातुर्मास में ये कार्य हैं वर्जित
इस दौरान मुंडन, उपनयन संस्कार, गृहप्रवेश, विवाह इत्यादि जैसे महत्वपूर्ण मांगलिक कार्य रोक दिए जाते हैं। मान्यता है कि भगवान विष्णु के शयनकाल में मांगलिक कार्य करने से व्यक्ति को उनका आशीर्वाद नहीं प्राप्त होता है, जिस वजह से विघ्न उत्पन्न होने का खतरा बना रहता है। हर साल चातुर्मास सामान्य रूप से 4 महीने का होता है, लेकिन इस साल अधिक मास होने के कारण चातुर्मास 5 महीने का होगा। यानी कि इस दिन भगवान विष्णु पूरे 5 महीने के लिए योग निद्रा में चले जाएंगे और फिर इसके बाद कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि यानी कि देवउठनी एकादशी के दिन योग निद्रा से जागेंगे।
देवशयनी एकादशी पूजा मुहूर्त
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि पंचांग के अनुसार, आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का शुभारंभ 29 जून 2023 सुबह 03:18 मिनट पर होगा और इस तिथि का समापन 30 जून सुबह 02:42 मिनट पर हो जाएगा. पूजा तिथि के अनुसार, देवशयनी एकादशी व्रत गुरुवार 29 जून 2023 को रखा जाएगा। इस विशेष दिन पर रवि योग का निर्माण हो रहा है, जो सुबह 05:26 मिनट से दोपहर 04:30 मिनट तक रहेगा।
भगवान शिव करेंगे सृष्टि का संचालन
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु के विश्राम करने से सृष्टि का संचालन भगवान शिव करते हैं। इस दौरान सभी तरह के धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं, बस विवाह समेत अन्य मांगलिक कार्य नहीं होते हैं। इस दौरान भगवान का अधिक से अधिक ध्यान करना चाहिए।
देवशयनी और देवउठनी एकादशी
चातुर्मास 148 दिनों का रहेगा। इन दिनों में भगवान विष्णु योग निद्रा में रहेंगे। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस अवधि में सृष्टि को संभालने और कामकाज संचालन का जिम्मा भगवान भोलेनाथ के पास रहेगा। इस दौरान धार्मिक अनुष्ठान किए जा सकेंगे पर विवाह समेत मांगलिक काम नहीं होंगे। भगवान विष्णु को सृष्टि का पालनहार कहा जाता है। श्रीहरि के विश्राम अवस्था में चले जाने के बाद मांगलिक कार्य जैसे- विवाह, मुंडन, जनेऊ, गृहप्रवेश आदि करना शुभ नहीं माना जाता है। मान्यता है कि इस दौरान मांगलिक कार्य करने से भगवान का आशीर्वाद नहीं प्राप्त होता है। शुभ कार्यों में देवी-देवताओं का आवाह्न किया जाता है। भगवान विष्णु योग निद्रा में होते हैं, इसलिए वह मांगलिक कार्यों में उपस्थित नहीं हो पाते हैं। जिसके कारण इन महीनों में मांगलिक कार्यों पर रोक होती है।
पाताल लोक में रहते हैं भगवान श्रीहरि
ग्रंथों के अनुसार पाताल लोक के अधिपति राजा बलि ने भगवान विष्णु से पाताल स्थिति अपने महल में रहने का वरदान मांगा था, इसलिए माना जाता है कि देवशयनी एकादशी से अगले 4 महीने तक भगवान विष्णु पाताल में राजा बलि के महल में निवास करते हैं। इसके अलावा अन्य मान्यताओं के अनुसार शिवजी महाशिवरात्रि तक और ब्रह्मा जी शिवरात्रि से देवशयनी एकादशी तक पाताल में निवास करते हैं।
चातुर्मास में तप और ध्यान का विशेष महत्व
चार्तुमास में संत एक ही स्थान पर रुककर तप और ध्यान करते हैं। चातुर्मास में यात्रा करने से यह बचते हैं, क्योंकि ये वर्षा ऋतु का समय रहता है, इस दौरान नदी-नाले उफान पर होते है तथा कई छोटे-छोटे कीट उत्पन्न होते हैं। इस समय में विहार करने से इन छोटे-छोटे कीटों को नुकसान होने की संभावना रहती है। इसी वजह से जैन धर्म में चातुर्मास में संत एक जगह रुककर तप करते हैं।
भगवान विष्णु और शिव पूजा
चातुर्मास में पूजा और ध्यान करने का विशेष महत्व है। देवशयनी एकादशी से देवप्रबोधनी एकादशी तक भगवान विष्णु विश्राम करेंगे। इस दौरान शिवजी सृष्टि का संचालन करेंगे। इन दिनों में शिवजी और विष्णुजी की पूजा करनी चाहिए। चातुर्मास के दौरान भगवान विष्णु और शिवजी का अभिषेक करना चाहिए। विष्णुजी को तुलसी तो शिवजी को बिल्वपत्र चढ़ाने चाहिए। साथ ही ऊँ विष्णवे नम: और ऊँ नम: शिवाय मंत्र का जाप करना चाहिए। इन दिनों में भागवत कथा सुनने का विशेष महत्व है। साथ ही जरूरतमंद लोगों को धन और अनाज का दान करना चाहिए।
देवशयनी एकादशी व्रत के लाभ-
– देवशयनी एकादशी का व्रत मन को स्थिर कर जीवन को सुखी बनाता है।
– देवशयनी एकादशी व्रत से सात जन्मों के पाप धुल जाते हैं और मृत्यु के बाद मोक्ष मिलता है।
इस व्रत के प्रभाव से व्यक्ति को नर्क की यातनाएं नहीं सेहनी पड़ती, अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता।
– देवशयनी एकादशी का व्रत करने से सिद्धि प्राप्त होती है।
– देवशयनी एकादशी का व्रत रखने और विष्णु पूजा करने से मन शुद्ध होता है और मानसिक विकार दूर होते हैं।
देवशयनी एकादशी पर न करें ये काम-
– देवशयनी एकादशी पर तुलसी में जल न चढ़ाएं। इस दिन विष्णु प्रिय तुलसी माता भी निर्जल व्रत रखती हैं। साथ ही इस दिन तुलसी दल न तोड़े इससे माता
लक्ष्मी नाराज हो जाती हैं।
– देवशयनी एकादशी पर दातुन करना, दूसरे की निंदा करना पाप का भागी बनाता है।
– देवशयनी एकादशी चावल खाना और चावन का दान करना वर्जित माना जाता हैं। ऐसा करने पर अगले जन्म में कीड़े-मकोड़े की योनि में जन्म होता है।
– इस दिन स्त्री प्रसंग न करें। एकादशी का व्रत दशमी तिथि से शुरू हो जाता है ऐसे में दशमी तिशि से द्वादशी तिथि तक ब्रह्मचर्य का पालन करें।
– देवशयनी एकादशी व्रत में तन के साथ मन की शुद्धता भी रखें। मन में बुरे विचार न लाएं, किसी को अपशब्द न बोलें।
देवशयनी एकादशी पूजन विधि
1. यदि आप देवशयनी एकादशी का व्रत रख रहे हैं तो तिथि की शुरुआत को जान लें और उसके बाद प्रात:काल उठकर स्नानआदि से निवृत हो जाएं।
2. इसके बाद श्रीहरि भगवान की मूर्ति या चित्र को लाल या पीला कपड़ा बिछाकर लकड़ी के पाट पर रखें। मूर्ति को स्नान कराएं और यदि चित्र है तो उसे
अच्छे से साफ करें।
3. पूजन में देवताओं के सामने धूप, दीप अवश्य जलाना चाहिए।
4. फिर श्री विष्णु जी के मस्तक पर हलदी कुंकुम, गोपी चंदन और अक्षत (पीला चावल) लगाएं। फिर उन्हें हार और फूल चढ़ाएं।
5. फिर श्रीहरि विष्णु जी की पंचोपचार पूजा या षोडोषपार पूजा करें। पंचोपचार में गंध, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करने के बाद आरती की जाती है।
6. पूजन में अनामिका अंगुली (छोटी उंगली के पास वाली यानी रिंग फिंगर) से गंध (चंदन, कुमकुम, अबीर, गुलाल, हल्दी,) लगाना चाहिए। भगवान
विष्णु को पीले वस्त्र, पीले फूल, पीला चंदन चढ़ाएं। उनके हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म सुशोभित करें।
7. पूजा करने के बाद प्रसाद या नैवेद्य (भोग) चढ़ाएं। ध्यान रखें कि नमक, मिर्च और तेल का प्रयोग नैवेद्य में नहीं किया जाता है। प्रत्येक पकवान पर तुलसी
का एक पत्ता रखा जाता है।
8. अंत में आरती करें। आरती करके नैवेद्य चढ़ाकर पूजा का समापन किया जाता है और वही नैवेद्य प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है।
9. षोडोषपार पूजा में पूजा सामग्री बढ़ जाती है और फिर विधिवत रूप से पूजा की जाती है और विष्णु सहस्त्र नाम स्त्रोत का पाठ किया जाता है।
10 . उपरोक्त प्रकार से श्रीहरि विष्णु जी का पूजन करने के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराकर स्वयं फलाहार ग्रहण करें।
11 . देवशयनी एकादशी पर रात्रि में भगवान विष्णु का भजन कीर्तन करना चाहिए और स्वयं के सोने से पहले भगवान को शयन कराना चाहिए। दूसरे दिन
पारण करके ब्राह्मण भोज कराना चाहिए।
भगवान विष्णु को इस हरिशयन मंत्र से सुलाएं-
सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जमत्सुप्तं भवेदिदम्।
विबुद्दे त्वयि बुद्धं च जगत्सर्व चराचरम्।
अर्थ = अर्थात हे जगन्नाथ जी! आपके निद्रित हो जाने पर संपूर्ण विश्व निद्रित हो जाता है और आपके जाग जाने पर संपूर्ण विश्व तथा चराचर भी जाग्रत हो जाते हैं।