उत्तर भारत जलमग्न, छत्तीसगढ़ सतर्क रहे, जरा सी चूक- लापरवाही से जनधन की हानि…

रायपुर। उत्तर भारत के तमाम राज्यों में बाढ़ का प्रकोप छाया हुआ है। आवागमन -जनजीवन दोनों प्रभावित होने के साथ जान-माल की हानि भी हुई है। बचाव कार्य युद्ध रफ्तार पर जारी हैं। इसे देखते हुए छत्तीसगढ़ को सतर्क हो जाना चाहिए।
बेशक छत्तीसगढ़ प्रदेश देश के मध्यवर्ती राज्यों में से हैं और आमतौर पर यहां विपदा-आपदा कमतर है। समुद्र तट भी सुदूर है। पर उत्तर भारत के प्रभावित होने के बाद कई बार यहां भी भारी बारिश बाढ़ की नौबत आ जाती है। जनजीवन प्रभावित होता है। लिहाजा सजग रहना होगा। सरकार ने इस दिशा में आपदा विभाग गठित कर रखा है। जो समय-समय पर पूर्वाभ्यास करता रहता है।
परंतु भारी बारिश की स्थिति में दुर्घटनाओं की आशंका बढ़ जाती है। कई जिलों में घाटियां हैं, जहां वाहन चलाना आसान नहीं है। वहां पहाड़ टूटने से मिट्टी भी सड़कों पर आने से फिसलन की घटना होती रही है। कई इलाकों में अंधे मोड़ हैं। इसे ध्यान में रखते हुए बस आपरेटरों से नियंत्रित वाहन चलाने, पुल-पुलिया की स्थिति देख वाहन पार करने, दुपहिया, कार चालकों को भी नियंत्रित करना होगा।
अधिक बारिश में कच्चे मकानों, झोपड़ियों में या जर्जर (पुराने) भवनों घरों में रहने वालों को अगाह करना भी जरूरी है। जिनके ढहने की आशंका रहती है। छोटे बच्चे हो या किशोर, युवा, प्रौढ़, महिला इन्हें कुआं, तालाब, नदी, जलप्रपात, झील आदि के समीप बारिश की स्थिति में जाने से रोकना होगा। एक जरा सी चूक जान लेवा साबित हो सकती है।
महंगाई के दौर में फसलें खराब ना हों, अतः डुबान के हालत में खेत बाड़ी से पानी निकासी की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए। मानसून सीजन में वायरस, मलेरिया, डायरिया, डेंगू, उल्टी-दस्त, नेत्र रोग आम है। इसे देखते हुए स्वास्थ्य अमले को सर्वत्र अलर्ट रखना होगा। खासकर गांवों में जहां साफ-सफाई के अभाव में या दूषित पेयजल के चलते, मच्छरों, मक्खी की वजह से बीमारी फैलती हैं। प्रत्येक गांव, पंचायत, ब्लाक, तहसील स्तर पर तैराकों, गोताखोर को पंजीकृत (सूचीबद्ध) किया जाना जरूरी है। खासकर नदी, नालों, रपटों, पुल-पुलिया वाली जगहों के पास-बचाव के उपकरणों समेत जानवरों को सुरक्षित रखने के उपाय लोगों को खुद से करना ज्यादा बेहतर (उचित) होगा।