ऑफलाइन प्रक्रिया से वंचित करने का अधिकार किसी को नहीं–!

एक बड़ा तबका अब भी ऑफलाइन पर निर्भर
रायपुर छत्तीसगढ़ । इन दिनों राज्य और केंद्र में विभिन्न विभागों में भर्तियों, ठेका, नीलामी, पंजीयन, निविदा आदि दर्जनों छोटे बड़े कार्यों के लिए आवेदन आमंत्रित किए जा रहें हैं। पर ज्यादातर जगहों पर विज्ञापनों में निर्देशित है कि आवेदन केवल ऑनलाइन स्वीकार किए जाएगे। ऑफलाइन नामंजूर है। इतना ही नहीं विज्ञापन की विस्तृत जानकारी तक संबंधित विभाग के वेबसाइट पर दिए गए ई. मेल पते पर देखने के निर्देश देकर इतिश्री कर ली जा रही है। मानों ऑफलाइन प्रक्रिया आउट आफ डेट हो चुकी हो ।
यह जीवंत प्रश्न खड़ा होता है क्या ऑफलाइन वास्तव में प्रक्रिया गौण हो गई ? ऑफलाइन प्रक्रिया से विस्तृत, विज्ञापन, आवेदन स्वीकार करने में हर्ज क्या है। क्या यह अपराध है उत्तर नहीं ! तब फिर राज्य या केंद्र शासित संचालित विभागों में होने वाली तमाम भर्तियों, ठेकों, नीलामी, पंजीयन, निविदा आदि-आदि कार्यों के क्योंकर केवल ऑनलाइन प्रक्रिया मंजूरी की शर्त एक तरफा रखी जा रही हैं।
यहां याद दिला देना या स्मरण कराना जरूरी है कि देश का बड़ा तबका ऑनलाइन प्रक्रिया अपनाना नहीं जानता। उसे इंटरनेट ऑपरेट करना नहीं आता। यह दीगर बात है कि वह इंटरनेट में मनोरंजन आदि चीजें बड़े पैमाने पर देखता है। पर यह भी सच है कि इतने ही (उपरोक्त) पैमाने पर लोग नेट या ऑफलाइन प्रक्रिया से वाकिफ नहीं हैं।
संविधान बराबरी का अधिकार देता हैं। लिहाजा ऑफलाइन -ऑनलाइन दोनों विकल्प उपरोक्त मामलों में उपलब्ध होना चाहिए। जिनके पास नेट सर्विस नहीं है, जो जानता तक नहीं- उसे क्यूंकर बाध्य मजबूर किया जा रहा है कि वह उपरोक्त जरूरी कामकाजी चीजों के लिए बार-बार चॉइस सेंटर या साइबर कैफे दौड़े। लाइन लगाए। घंटों मारा-मारा फिरे। नाहक पैसा जाया करे। आखिर उसे उसके माध्यम, जानकारी वाले ऑफलाइन सिस्टम से वंचित क्यूं किया जा रहा है। क्या ऐसा कर उसके मौलिक अधिकारों ( जानने की सामान्य-सर्वजनिक बाते) से वंचित किया जा रहा है। ऐसा करने का अधिकार-विभागों को किसने दिया (या दे रखा) हैं।
गौरतलब है कि अगर मतदाता ऑनलाइन मतदान नहीं देना चाहता तो उसकी इच्छा का सम्मान, अधिकार की रक्षा कर ऑफलाइन ठप्पा /अंगूठा यानी मतदान पत्र उपलब्ध कराया जाना अनिवार्य हैं। उसी तर्ज पर हर कार्य में ऑफलाइन प्रक्रिया जारी रखनी चाहिए। अभी ज्यादा समय नहीं गुजरा है जब ऑनलाइन वैकल्पिक प्रक्रिया थी। आज क्या निहित स्वार्थवश ऑफलाइन प्रक्रिया बंद की जा रही हैं। सवाल जवाब मांगते हैं।