Supreme Court on Same Sex Marriage: समलैंगिक शादियों पर Supreme Court का बड़ा फैसला, ‘सभी को साथी चुनने की आजादी हो’
Supreme Court on Same Sex Marriage: देश की शीर्ष अदालत आज समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का अनुरोध करनेवाली याचिकाओं पर अपना अहम फैसला सुना रही है। इससे पहले मई महीने में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
Supreme Court on Same Sex Marriage: नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट आज समलैंगिक विवाह की कानूनी मान्यता पर अपना फैसला सुना रहा है। Supreme Court on Same Sex Marriage चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने फैसला पढ़ते हुए कहा कि समलैंगिकता कोई शहरी अवधारणा नहीं है और यह समाज के उच्च वर्गों तक ही सीमित नहीं हैं। उन्होंने कहा कि अदालत कानून नहीं बना सकती, वह केवल इसकी व्याख्या कर सकती है और इसे प्रभावी बना सकती है।
CJI चंद्रचूड़ का कहना है कि यह कहना गलत है कि विवाह एक स्थिर और अपरिवर्तनीय संस्था है। उन्होंने कहा कि अगर विशेष विवाह अधिनियम को खत्म कर दिया गया तो यह देश को आजादी से पहले के युग में ले जाएगा। विशेष विवाह अधिनियम की व्यवस्था में बदलाव की आवश्यकता है या नहीं, यह संसद को तय करना है। सीजेआई ने कहा, इस अदालत को विधायी क्षेत्र में प्रवेश न करने के प्रति सावधान रहना चाहिए।
इस तरह के संबंध को मान्यता नहीं देना भेदभाव
चीफ जस्टिस ने कहा कि विशेष विवाह अधिनियम की व्यवस्था में बदलाव की आवश्यकता है या नहीं, इसका फैसला संसद को करना है। जीवन साथी चुनने की क्षमता अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार से जुड़ी है। उन्होंने कहा कि संबंधों के अधिकार में जीवन साथी चुनने का अधिकार, उसकी मान्यता शामिल है; इस प्रकार के संबंध को मान्यता नहीं देना भेदभाव है। समलैंगिक लोगों सहित सभी को अपने जीवन की नैतिक गुणवत्ता का आकलन करने का अधिकार है।
समलैंगिक समुदाय के साथ भेदभाव न हो
चीफ जस्टिस ने कहा कि इस अदालत ने माना है कि समलैंगिक व्यक्तियों के साथ भेदभाव न किया जाना समानता की मांग है। कानून यह नहीं मान सकता कि केवल विपरीत लिंग के जोड़े ही अच्छे माता-पिता साबित हो सकते हैं क्योंकि यह समलैंगिक जोड़ों के खिलाफ भेदभाव होगा।केंद्र, राज्य और केंद्र शासित प्रदेश यह सुनिश्चित करें कि समलैंगिक समुदाय के साथ भेदभाव न हो।
इससे पहले सुनवाई के दौरान केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का अनुरोध करने वाली याचिकाओं पर उसके द्वारा की गई कोई भी संवैधानिक घोषणा कार्रवाई का सही तरीका नहीं हो सकती, क्योंकि अदालत इसके परिणामों का अनुमान लगाने, परिकल्पना करने, समझने और उनसे निपटने में सक्षम नहीं होगी। इससे पहले मई महीने में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्क्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने करीब 10 दिनों की सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। इन याचिकाओं पर सुनवाई करनेवाले जजों की बेंच में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एसके कौल, जस्टिस एसआर भट्ट, जस्टिस हेमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल थे।
सात राज्यों से मिली प्रतिक्रियाएं
केंद्र ने अदालत को यह भी बताया था कि उसे समलैंगिक विवाह के मुद्दे पर सात राज्यों से प्रतिक्रियाएं मिली हैं और राजस्थान, आंध्र प्रदेश तथा असम की सरकारों ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के याचिकाकर्ताओं के आग्रह का विरोध किया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई 18 अप्रैल को शुरू की थी।

