लूट सके तो लूट… जाए छूट..!
– चुनाव पूर्व कर्मचारी-अधिकारी संगठनों का हड़ताली रुख
रायपुर। प्रदेश सरकार गरीब, मजदूर, किसान, युवा, छोटे व्यापारियों, बेरोजगारों का खुद को हितैषी बताते नहीं थकती, पर उसी के शासकीय कर्मचारी उक्त वर्गों का हक छीनकर (बजट में से) परेशान-हलाकान कर तोड़ने (गरीब बना देने ) में लगे रहते हैं।
हाल ही में पूरे एक माह हड़ताल करने के बाद राज्य के पटवारी काम पर लौटे हैं। और अब छत्तीसगढ़ शासकीय तृतीय-चतुर्थ वर्ग कर्मचारी संघ अपनी कतिपय मांगों को लेकर हड़ताल पर उतरने कमर कस रहा है। इसी तर्ज पर दूसरे-तीसरे अन्य संगठन भी आंदोलन छेड़ने की चेतावनी गाहे-बगाहे देते रहें हैं। भला हो सरकार का जिसने पटवारियों की हड़ताल अवधि का वेतन काटने का आदेश दिया है।
राज्य निर्माण उपरांत शासकीय कर्मचारियों के तमाम संघ-संगठनों का मुख्यालय भोपाल से उठकर रायपुर, बिलासपुर बंटवारे में पहुंच गया था। पूर्व की तुलना में मुख्यालय समीपस्थ होना, पदाधिकारियों का स्थानीय होना, साथ ही पार्टी नेताओं से पूर्व परिचित या स्थानीयता के चलते कर्मचरियों का मनोबल/जोश बढ़ा है । राजनैतिक दलों के संगठनों से भी जान-पहचान जुड़ाव यारी-दोस्ती ने कर्मचारी अधिकारी- संगठनों को हवा दी।
उपरोक्त हालातों के निर्माण ने कर्मियों के संगठनों में नए-नए मांग, सुविधा को उपजाया। दूसरी ओर एक बड़ा लाभ यह भी मिला कि सरकार से डर, भय जाता रहा। स्वाभाविक है कि बहती गंगा में हाथ कौन नहीं धोना चाहेगा। नतीजन कर्मी-अधिकारी संगठनों की मांगो की सूची लंबी होती गई तो वही मांग का दायरा भी बढ़ा।
राज्य की गरीब जनता बरोजगार छोटे किसान, गरीब ग्रामीण, मजदूर, फुटकर व्यापारी के लिए योजनाओं में कटौती या खर्च में कटौती (पेट काटकर) कर राज्य सरकार अपने कर्मचरियों-अधिकारियों का बस ख्याल रखे। भरपूर तनख्वाह, भारी सुविधा, तबादला मंजूर नहीं 15-20 वर्षों से एक ही जगह आदि सोच।
अब 4-5 माह बाद चुनाव है। सो सरकार से जितनी हो सके मांगें मनवा लो। आगे क्या होता है कौन जाने। विदित हो कि कांग्रेस के प्रथम कार्यकल (2000-2003 ) के दौरान एक सम्मानीय पूर्व वित्तमंत्री ने खुलेआम शासकीय कर्मियों को लताड़ लगाई थी। बेबाक शैली के ईमानदार, बेदाग, कर्तव्यवान उक्त वरिष्ठ मंत्री ने स्पष्ट कहा था तुम 2 फीसदी (राज्य कर्मियों का प्रदेश की आबादी में प्रतिशत) कर्मियों को देखूं या 98 प्रतिशत (बच गए लोग) प्रदेश को। 98 प्रतिशत गरीबों, पीड़ितों, मध्यम वर्ग का पेट मार कर (पेट काटकर) मैं (मंत्री) तुम्हें पैसा (सुविधा) नहीं दे सकता, तुम्हारी (सरकारी कर्मचारी) सारी सुख -सुविधा पूरे परिवार (बड़ा परिवार) का ठेका राज्य सरकार नहीं ले सकती हैं।