सबका चहेता “गुपचुप” आज दिवस मना रहा है

“गुपचुप दिवस” पर विशेष :

रायपुर। इस खबर को पढ़ते ही शायद आपके भी मुंह में पानी आ जाए। आज गुपचुप दिवस है। क्यों आया कि नहीं पानी। देश-प्रदेश में 12 जुलाई को यह दिवस विशेष चौपाटियों, गली, फुटपाथों से लेकर घरों के बैठक कक्ष तक में “गुपचुप” के दीवाने मनाते हैं। वह भी “गुपचुप” (चुपचाप) नहीं बल्कि खुलकर हो-हल्ला मस्ती कर। खैर पेश है गुपचुप पर एक संक्षिप्त रिपोर्ट..!

आमतौर पर कोई नहीं जानता कि गुपचुप की देश में शुरुआत वास्तव में किस प्रांत से हुई। पर हिंदू बाहुल्य देश होने से हिन्दी संस्कृति चहुंओर नाना-नाना (समुदाय रूप) में बिखरी पड़ी है। लिहाजा सनातन संस्कृति (धर्म) से जुड़े यानी हिंदू धर्मावलंबी (क्षेत्र) अपने-अपने रीति-रिवाज, संस्कृति-अनुरूप पकवान बनाते हैं। जिनमें थोड़ा रद्दोबदल क्षेत्रान्तर्गत ठीक वैसे ही होता है- जैसा कि बोली, भाषा या रहन-सहन में। जो सीमा, दूरी बढ़ने के साथ बढ़ते (अंतर) जाता है।

जिसे यहां छत्तीसगढ़ में हम आप गुपचुप के नाम से जानते हैं उसे अन्य क्षेत्रों में क्रमशः पुचका, पानीपुरी, पकौड़ी, पानी के पताशे, गोलगप्पे, टिक्की, फुल्की, पडके के नाम से जाना जाता हैं। बनाने के, सामग्री में प्रकार, नाम समेत कुछ- कुछ बदलाव लिए रहते हैं। पर वास्तव में गुपचुप सरीखा ही मजा देते हैं।

खैर ! छत्तीसगढ़ में गुपचुप बनाने के लिए मैदा या सूजी के आटे की टिक्की बना उसे बेला जाता है फिर तेल में तला जाता है। जिससे वह फूल कर कुप्पी या कुप्पा जैसा बन जाता है। (उधर साफ पानी में पुदीने की पत्ती, इमली, अमचूर, अदरक, धनिया पत्ती, हरी मिर्च, नमक, काला नमक, जीरा का मिश्रण हिसाब से तैयार किया जाता है। इधर तैयार टिक्की-टिक्का यानी गुपचुप को सर्व करने समय उंगली या छोटे चम्मच से थोड़ा सा फोड़कर उसमें थोड़ा सा उबला आलू डाला जाता है। अब उपरोक्त पुदीने इमली के तैयार पानी के मिश्रण (घोल) में डुबाकर या छोटी कड़छी से पानी निकालकर गुपचुप के अंदर डालें। बस और क्या, गुपचुप तैयार। प्लेट या दोने में सर्व करें। कोई आए उसके पहले “गुपचुप” (गुपचुप खा लो) नहीं तो मजा, स्वाद किरकिरा हो जाएगा।

आमतौर पर हर मेला, उत्सव, हाट-बाजार या फुटपाथ, गली, चौराहे, चौपाटी में आपको गुपचुप खाने को मिल जाएगा। आप एक-दो नहीं दर्जन- डेढ़ दर्जन खा सकते हैं। उपरोक्त पानी का सम्मिश्रण साफ सुथरा एवं शुद्ध चीजों वाला हो।

देश -प्रदेश में सभी शहरों- कस्बों में यह मिल जाता है। बच्चों बड़ों-बुजुर्गों समेत युवती महिला वर्ग में बड़ा लोकप्रिय है। बगैर दांत वाले भी (बुजुर्ग) इसका मजा चटकारे के साथ लेते हैं।

बहरहाल गुपचुप दिवस का पता चल गया है तो “गुपचुप” प्लान करें ओर जल्द गली-चौराहे, चौपाटी पर जाकर मजा लें या घर लाकर खाएं। यह – खाद्य सामग्री सस्ता, किफायती आम वर्ग की जेब के अनुरूप है। इसे गरीब, मध्यम, अमीर सभी पसंद करते हैं। और मजे से खाते हैं।

 

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