जरा सी चूक- उठाई गिरी का शिकार बना रही

रायपुर। शहर में सोमवार को पीड़ितों की जरा सी चूक या लापरवाही ने आरोपियों को उठाई गिरी का मौका दे दिया। नतीजतन रकम से हाथ धोना पड़ा।
शासन-प्रशासन समेत बैंकिंग प्रबंधन लोगों को उठाई गिरी से बचने- आगाह करता रहा है। बावजूद लोग अति-आत्मविश्वास के चलते लापरवाही कर जाते हैं। क्या अब वक्त आ गया है कि रेलवे की तरह बैकिंग प्रबंधन भी ग्राहकों को सतर्क-सजग रहने की अपील संबंधी टेप किया हुआ रेडियो प्रसारण सुनवाए। परन्तु इससे बैकिंग जैसा गंभीर महत्वपूर्ण कार्य प्रभावित होगा। प्रबंधन की सोच रहती है कि आर्थिक लेन-देन में ग्राहक खुद गंभीर हो। सोमवार को घटी दोनों घटना चाहे कोटा हो या पंडरी इलाके की समरूपता लिए हुए हैं। पहले केस में ग्राहक बैंक से पैसे निकाल कर जाते वक्त रास्ते में आराम से चप्पल ठीक करते ध्यान खुद का बांटता है। दूसरे केस में ग्राहक पैसे लेकर जाते हुए रास्ते में इत्मीनान से सुलभ शौचालय के वाशरूम चला जाता है। यहां भी खुद की होशियारी दिखती है।
नतीजतन पहले से ही शिकार ताक पर रखते हुए पीछे लगे मोटर सायकल चलाते उठाई गिर दोनों मामलों में आसानी से हाथ साफ कर लेते हैं। रकम कम हो या ज्यादा ग्राहक को खुद सतर्क-सजग रहना चाहिए। बड़ी रकम (लाख) के वक्त यथासंभव दो लोगों को बैंक ग्राहक सहित पैसे निकालने एवं गंतव्य तक (लौटने) साथ रहना चाहिए।भीड़-भाड़ एक से चेहरे होते हैं। जल्दबाजी या खुद का ध्यान कहीं और ना बंटे इसका ख्याल रखना चाहिए। अक्सर उठाईगीर युवा होते हैं, जो खुद को बैंक ग्राहक होना- दिखाने का स्वांग करते हैं।
बदलते दौर में लोग व्यस्त हैं। उन्हें दूसरे से तब तक ज्यादा मतलब नहीं होता जब तक काम ना पड़े। भीड़-भाड़ अलग रहती है। दोनों चीजों का बेजा लाभ उठाईगीर उठाते हैं। यहां स्पष्ट कर देना जरूरी होगा कि जिस तरह सड़कों- चौराहों, दुकानों, प्रतिष्ठानों पर सजग लोगों या पुलिस प्रशासन द्वारा लगाए सीसीटीवी से नजर रखी जाती है, ठीक उसी तरह शातिर बदमाश, उठाईगीर की नजर हर बैंक ग्राहक या राह चलते रकम ले जा रहे व्यक्ति पर रहती है। या कि शातिर बदमाश अनुभव से सटीक अंदाजा लगा लेते हैं। यहां पर व्यक्ति (पीड़ित) चूक जाते हैं। जबकि ऐसे वक्त हर अनजान व्यक्ति पर शक करना चाहिए- इससे सतर्कता बढ़ती है।