Bahuda Yatra 2023 : मौसी के घर से श्रीमंदिर वापस जाएंगे भगवान जगन्नाथ, जानिए गुंडिचा मंदिर से जुड़ी पौराणिक मान्यताएँ
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भगवान जगन्नाथ आज अपने मूल मंदिर में वापस आएंगे, रथयात्रा के दौरान जगन्नाथ जी की मूर्तियों को उनकी मौसी के घर याने गुंडिचा मंदिर में नौ दिनों के लिए रोका जाता है। नौ दिनों बाद के भगवान जगन्नाथ को फिर से रथ में बैठा कर उनके मूल मंदिर लाया जाता है और मूर्तियों को गर्भगृह में यथावत स्थापित किया जाता है। इसके पीछे भी पौराणिक मान्यता बताई जाती है। इस साल भगवान जगन्नाथ स्वामी, बलभद्र भैय्या और सुभद्रा माता को 20 जुलाई को रथ में बैठा करके उनके मौसी के घर गुंडिचा मंदिर बड़े धूम धाम से ले जाया गया था, आज 28 जुलाई को फिर से भगवन को उनके मंदिर ले जाया जायेगा।
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इसके पीछे की पौराणिक मान्यता –
जगन्नाथ मंदिर से करीब तीन किलोमीटर की दूरी पर गुंडिचा मंदिर स्थित है जो कि कलिंग वास्तुकला के आधार पर बनाया गया है। पौराणिक कथाओं के अनुसार गुंडिचा, भगवान जगन्नाथ की मौसी थी और जगन्नाथ रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ जी अपनी मौसी के घर सात दिनों तक रुकते हैं। यहां वो अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ आते हैं। मौसी के घर उनका पूरे आदर-सत्कार किया जाता है। गुंडिचा मंदिर में मौसी उनको पादोपीठा खिलाकर स्वागत करती हैं। यहां उनके लिए भिन्न-भिन्न प्रकार के पकवान बनाए जाते हैं। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और आज भी इसका पूरी तरह से पालन किया जाता है।
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गुंडिचा मंदिर का इतिहास –
पौराणिक कथाओं के अनुसार गुंडिचा को भगवान जगन्नाथ का जन्म स्थान भी कहा जाता है। क्योंकि यही वो जगह है जहां महादेवी नामक एक विशेष मंच पर दिव्य शिल्पकार विश्वकर्मा ने राजा इन्द्रध्युम्र की इच्छा पर जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के विग्रहों को प्रकट किया था। राजा इन्द्रध्युम्र की पत्नी का नाम महारानी गुंडिचा था। जगन्नाथ जी के विग्रह प्रकट होने के बाद यहां अश्वमेघ यज्ञ किया गया था। इसलिए कहा जाता है कि जगन्नाथ रथ यात्रा के दर्शन करना 1000 अश्वमेघ यज्ञ के बराबर होता है।