झांसे, ठगे- लूटे जाने के लिए पीड़ित व्यक्ति खुद जिम्मेदार

0 आबादी के हिसाब से जागरूकता समिति गठित करें
0 बहकावे “डर” या अनर्थ की आशंका में न आएं
रायपुर। छत्तीसगढ़ को राज्य बने 23 वर्ष पूरे होने जा रहे हैं। विकास के मददेनजर यहां पृथक प्रदेश बना था। लोग विकास के नाम पर सारी जिम्मेदारी शासन- प्रशासन पर थोपते हैं, धरना, प्रदर्शन, रैली करते हैं- पर खुद के विकास, जागरूक, सचेत होने जरा भी चिंतन -मनन, राय, सलाह, मशविरा, अपने अड़ोस-पड़ोस या शुभचिंतक से नहीं करते। न ही पुलिस को मित्र समझ पूर्व सूचना देते। जब सब कुछ लुटा, गंवा बैठते हैं तब पुलिस याद आती है।
आए दिन प्रदेश की राजधानी समेत तमाम शहरों, कस्बों, ग्रामों से खबर आती है कि फलाना-फलाना कथित साधु, संत, तांत्रिक, जालसाज बाबा, कथित प्रेमी -प्रेमिका, धोखेबाज, सम्मोहन करने वाले आदि ने हजारों-लाखों रुपए ठग लिए। गहना-जेवरात उतरवा रखवा कर चंपत हो गया। नौकरी लगवाने, दिलाने, प्रमोशन कराने, परिवारिक कष्ट, समस्याओं, आने वाली कथित आपदाओं, विपदाओं मनचाही इच्छाओं की पूर्ति आदि के नाम पर रुपए पैसे ऐंठ लिया।
राज्य में शिक्षा का स्तर लगातार बढ़ रहा है। हर व्यक्ति न सही पर हर परिवार में एक न एक मोबाइल धारक जरूर है। प्रिंट इलेक्ट्रानिक मीडिया समेत स्थानीय निकायों से दुनिया भर से तमाम जानकारी, सूचनाएं खबरें मिलती रहती है। इन सबके बावजूद अगर व्यक्ति लुटा, ठगा जा रहा है। धोखा, फरेब, झांसे, बहकावे में आकर अपनी जमा हजारों-लाखों की पूंजी, धन -जेवरात, गहना लुटवा रहा है या तथाकथित प्रेमी-प्रेमिका के चक्कर में आ रहा है, इसमें दोष किसका है।
हालिया खबरआई कि नासिक के युवक ने तांत्रिक बनकर रायपुर के व्यक्ति से 40 लाख लुट लिया है। उसके (तांत्रिक) यहां दर्जनों यजमान है। वे भी लुटे जा रहें होंगे। बेशक कथित तांत्रिक पकड़ा गया। पर सब कुछ गंवा कर पकड़ाए तो क्या पहाड़ तोड़ आए। कोई कथित ईडी, सीआईडी, सीबीआई अधिकारी समझ डर के मारे धन गंवा रहा है या फिर युवक- युवती कथित प्रेम जाल में फंस जीवन खराब कर रहे हैं। उपरोक्त तमाम मामले आम हो (सामान्य) चले हैं।
बेशक तमाम घटनाक्रमों, मामलों, प्रकरणों, मसलों के लिए पीड़ित दोषी होता है। अपने निहित छिपाए स्वार्थ के चुपके-चुपके पूरा करने के चक्कर में आकर वह फंसता है।
उपरोक्त घटनाक्रमों, मामलों किस्सों पर लगाम लगाने या रोकथाम हेतु शासन- प्रशासन पुलिस समेत अपने स्तर पर हर गांव, कस्बे, शहर में आबादी हिसाब से (प्रति 5 हजार पर एक समिति) जागरूकता समिति अनौपचारिक रूप से गठित करें। जिससे स्थानीय ग्रामीण, शहरी, मोहल्ले- कॉलोनी के रहवासी के साथ यथासंभव समाजिक- संस्कृतिक संगठनों, सरकारी निकाय का सदस्य हैं। जो माह में एक या दो दिन एक स्थान पर बैठ समस्याएं सुन निराकरण के लिए समुचित उपाय, सलाह, राय दे सके। इससे जनसाधारण के मध्य जागरूकता बढ़ेगी। लोग खुद होकर भी ऐसी समिति बना सकते हैं। जो जनहित में होगा। अन्यथा उपरोक्त खबरें आती रहेंगी। स्वार्थ के चक्कर में चोरी-छिपे लोग गाढ़ी कमाई गंवाते रहेंगे।