कड़ाई, गंभीरता से सरकार विचार करे

संदर्भ : शासकीय कर्मियों, अधिकारियों का धरना, प्रदर्शन, हड़ताल

रायपुर। नियमित-अनियमित, संविदा, शासकीय कर्मचारी, अधिकारियों द्वारा इन दिनों एक के बाद एक या कुछ संगठन संयुक्त मोर्चा बनाकर, अपनी कथित मांगों को लेकर हड़ताल, धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। शासन-प्रशासन को इस पर कड़ाई एवं गंभीरता पूर्वक विचार करना चाहिए।

गौरतलब है कि प्रदेश के अंदर दर्जनों मंत्रालयों के विभाग हैं। जिनमें 2 लाख से अधिक नियमित, अनियमित, संविदा, अंशकालीन कर्मचारी, अधिकारी कार्यरत हैं। जिनकी पद स्थापना ग्राम पंचायतों से लेकर, ब्लॉक, तहसील, जिला, संभाग सचिवालय मंत्रालय स्तर तक है। राज्य में उपरोक्त तमाम प्रकार के कर्मियों ने अपना-अपना संघ, संगठन, समिति, मोर्चा आदि बना रखा है। अपनी पुरानी-नई मांगों को लेकर वे प्रायः हर साल मोर्चा खोलते हैं। जिनसे सरकार निपटते रहती है। सरकार को पता है कि राज्य का कोष (खजाना) कितना है। उसमें से (बजट में) कितना वेतनमान हेतु है। कितना योजनाओं- परियोजनाओं, दीगर खर्चो, आपदाओं, सब्सिडी आदि के लिए है। उस पर उपरोक्त 2 लाख कर्मियों के अलावा शेष बचे करोड़ो लोगों की भी जिम्मेदारी है। एक अनुमान के अनुसार राज्य की कुल आबादी का महज दो से ढाई प्रतिशत हिस्सा ही शासकीय कर्मियों अधिकारियों का है।

हर संगठन, संघ, मोर्चा की मांग सीधे या अप्रत्यक्ष रुप से अर्थ (पैसे) से जुड़ी है। चाहे सुविधाएं, प्रमोशन, नियमितीकरण, वेतनमान वृद्धि भत्ता वृद्धि हो या अन्य। सरकार के पास सीमित खजाना (फंड) है। उसे सबका (राज्य भर) ख्याल रखना है।

उपरोक्त दृष्टिकोण से सरकार गंभीरता पूर्वक विचार करे। चाहे तो अन्य दलों से भी चर्चा करें। यह मसला राजनीति से परे, राज्यहित में लेकर निपटारा किया जाए। इस पर भी ध्यान रखा जाए कि आम व्यक्ति (गैर सरकारी) की औसत मासिक आय या कमाई अधिकतम दस हजार या उससे से भी कम है। निर्णय करने के पूर्व पदस्थ कर्मियों, अधिकारियों के कार्यों का निष्पक्ष मूल्यांकन करें, कि वेतन की तुलना में रिटर्न कितना मिल रहा है। अच्छा हो कि सरकार आमजनों से भी राय, मत, मूल्यांकन मांगे। वजह वे ही दफ्तर, आफिस, कार्यालय शासकीय कार्य के लिए जाते हैं, लाइन लगाते हैं, दिनों हफ्तों महीनों वर्षों चक्कर काटते हैं। उनसे पूछा जाना जायज एवं नैतिक भी है। ऐन चुनाव पूर्व सबके धरना-हड़ताल, प्रदर्शन आदि के मायने समझने एवं कड़ाई बरतने की सख्त जरूरत है।

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