छत्तीसगढ़िया ओलंपिक स्पर्धा के प्रासंगिकता पर उठता सवाल, एक बड़ा अनुभवी वर्ग वंचित हुआ जा रहा

रायपुर। छत्तीसगढ़ सरकार 17 जुलाई से 27 सितंबर तक छत्तीसगढ़ ओलंपिक स्पर्धा आयोजित कर रही है। जिसमें 3 वर्ग बनाए गए हैं। स्पर्धा खुली (ओपन) जरूर है, पर निजी क्षेत्र समूहों में कार्यरत महिला- पुरुषों का ध्यान नहीं रखा गया है। जो आयोजन की प्रासंगिकता पर सवालिया निशाना लगाते हैं।

राज्य का खेल विभाग उपरोक्त आयोजन कर रहा है। जिसमें आमतौर पर छत्तीसगढ़िया पारंपरिक खेलकूद को शामिल किया गया है। जो अच्छा कदम है। प्रशंसनीय कहा जाएगा। इसे 3 वर्गों में रखा जाना भी उचित है। इसी तरह खुली (ओपन) स्पर्धा से वास्तविक चुनौती खिलाड़ी को मिलेगी।

परंतु खेल विभाग का ध्यान चूक (हट) गया है। या कि लापरवाही-उपेक्षा। सरकार की मंशा जब छत्तीसगढ़िया पारंपरिक खेल को बढ़ावा देना है, तो फिर इसका मकसद वरिष्ठ, अनुभवी खिलाड़ी के माध्यम से नई पीढ़ी को पारंपरिक खेलों, बारीकियों से अवगत कराना भी होना चाहिए। बेशक तीसरा वर्ग इस हेतु रखा गया है। पर एक बड़ी चूक -उपेक्षा यह कि निजी सेक्टर में कार्यरत छत्तीसगढ़िया (जन) उपरोक्त राज्य ओलंपिक में कैसे हिस्सा ले। उसे रोजाना कार्य पर जाना होता है। जैसे घरों में झाड़ू- पोछा बर्तन करने वाली बाइयां, माली, ड्राइवर, पेपर बांटने वाले हॉकर, चाय पानी का धंधा करने वाले, ठेके के दिहाड़ी मजदूर आदि स्पर्धा से वंचित रह जायेगे। उधर खेल के नाम निजी क्षेत्र इतनी लंबी (17 जुलाई से 27 सितंबर) अवधि के मध्य 7-8 दिन की भी छुट्टी नहीं देंगे। अगर निजी क्षेत्र का छत्तीसगढ़िया खिलाड़ी अवकाश लेकर खेलना चाहे तो तय हैं कि लंबा अवकाश नहीं मिलेगा। अगर चार -छह दिनों का मिल भी गया तो वेतन कटना भी तय हैं।

सरकार को उपरोक्त दिशा में विचार कर निजी समूहों से चर्चा करनी चाहिए। नहीं तो स्पर्धा अधूरी रहेगी। सरकार का मकसद भी पूरा नहीं होगा। परिणाम भी आधे- अधूरे आएंगे। बीच का रास्ता निकाला जाए। ताकि निजी समूह का कार्य भी जारी रहे एवं खिलाड़ी (कर्मी) भी हिस्सा ले सकें। मसलन स्पर्धा समूह के अंदर हो। फिर समूह स्तर पर हो बाद में समूह की एक- एक खेल टीमें बनाकर अन्यों से मुकाबला हो तो संभव है कि सभी छत्तीसगढ़िया को खेलने का अवसर मिलेगा। अन्यथा आयोजन मनोरंजन का एक साधन भर रहेगा। इसकी प्रासंगिकता नहीं रह जाएगी।

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