रियायत की कीमत न समझने वाले उम्मीदवारों का चालान काटें —!

– मुफ्त प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं में एक से दो तिहाई उम्मीदवार अनुपस्थित सरकार को करोड़ो का घाटा
रायपुर/ राज्य सरकार ने ऐसे बेरोजगारों जो स्कूल-कॉलेज पास आउट है प्रतिस्पर्धा परीक्षाओं में रूचि रखते हैं। पर कई बार परीक्षा शुल्क अधिक एवं आय का जरिया न होने से चाहकर भी परीक्षा में बैठ नहीं पाते को मदद्देनजर रखते हुए तमाम परीक्षा शुल्क में 100 प्रतिशत छूट दे रखी है। परन्तु इस रियायत की कीमत अगंभीर बेरोजगार परीक्षा प्रतिभागी समझ नहीं पा रहें हैं।
लगातार प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं के आयोजन उपरांत खबर आ रही है कि एक तिहाई से लेकर दो तिहाई तक उम्मीदवार परीक्षार्थी मुफ्त परीक्षा में प्रविष्ट नहीं हो रहे हैं। निशुल्क आवेदन करने के बाद भी परीक्षार्थी अगर इस रियायत का यथासंभव लाभ नहीं उठा रहें हैं। तो इसके पीछे के कारणों को ढूंढना होगा।
पहला राज्य में बेरोजगारी बहुत ज्यादा है यह बात बेरोजगारी भत्ता आवेदन के समय एवं शिक्षक भर्ती परीक्षा -बस्तर, सरगुजा संभाग से आवेदकों की संख्या से जाहिर हो गई थी। यानि लाखों बेरोजगार युवा नौकरी के इच्छुक हैं।
दूसरी मुफ्त आवेदन छूट दिए जाने के बाद हर एक पात्र युवा (आवेदक) फार्म भर रहा है। पर ज्यादातर आवेदक बिना या नगण्य तैयारी के साथ, परीक्षा में बैठ महज भाग्य आजमा रहें हैं। तीसरा -प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं पर नजर रखने वाले शिक्षकों,प्रशिक्षकों का कहना है की कुल आवेदकों में से 50-60 प्रतिशत महज 20-25 प्रतिशत या इससे भी कम तैयारी क साथ परीक्षा में बैठते हैं। चौथा- 20 से 30 फीसदी परीक्षार्थी भी महज 30-40 प्रतिशत की तैयारी से भाग्य अजमाते हैं। दोनों का जोड़ 65 प्रतिशत होता है। इतने प्रतिशत आवेदकों का बाहर होना लगभग तय रहता है। यानि न्यूनतम कर आफ मार्क्स प्राप्त नहीं कर पाते। पांचवा -करीब 15 -20 प्रतिशत परीक्षार्थी 50 से 70 प्रतिशत तैयारी एवं 10 प्रतिशत आवेदक 80 प्रतिशत तैयारी के साथ बैठते हैं। यानि लगभग 25-30 प्रतिशत
आवेदक कट आफ मार्क्स पार कट जाते हैं। शेष बचे 10 प्रतिशत परीक्षार्थी 80 करीब 100 प्रतिशत तैयारी करके शामिल होते हैं। जिनके चुने जाने या सफल होने की सम्भवना अधिक होती है।
शिक्षकों -प्रशिक्षकों का कहना है कि प्रारंभिक 2 -3 चरणों के आवेदक कुल परीक्षार्थियों की संख्या को देखते हुए अधिक होने की स्थिति में फेल होने के डर से हथियार डाल देते है। यानि परीक्षा में प्रविष्ट नहीं होते। इसी तरह चौथे चरण के भी कुछ आवेदक -परीक्षा केंद्र नहीं पहुँचते। ये तीनों चरणों के उम्मीदवारों के अनुपस्थित निर्णय को बल मिलता हैं। मुफ्त आवेदन सुविधा से। इन्हें लगता है कि पैसा तो एक भी दिया नहीं- चयन होने से रहा फिर 200-300 रूपये बस,ऑटो,रिक्शा ट्रेन या बाइक पेट्रोल आदि में क्यों खर्च करे। इस तरह पलक झपकते वह परीक्षा छोड़ देता है।
उधर प्रशसनिक सेवा वालों का कहना है कि सरकार की योजना अच्छी है पर उसमें एक बात जोड़ देनी चाहिए हर आवेदक से एक घोषणा पत्र प्लस वचन पत्र भरवाया जाए। जिसमे जिक्र हो कि आवेदन बाद मुफ्त परीक्षा नहीं देने (बैठने ) पर संभावित परीक्षा शुल्क का दुगुना देने उम्मीदवार बाध्य होगा। (विशेष परिस्थिति को छोड़ -मसलन घर पर गमी,दुर्घटना का शिकार ज्यादा बीमार या उसी तिथि पर अन्य परीक्षा में प्रविष्ट होना। आदि की विधि सम्मत ,सुचना देगा। शेष आवेदकों के दिए पते-मोबाईल नंबर के आधार पता लगाकर आवेदक से या माता-पिता ,अभिभावक से वसूला जाए। ठीक ट्रेफिक पुलिस चालान की तरह।
बहरहाल व्यापक, पीएससी या विभागों द्वारा सीधे आयोजित परीक्षाओं के आयोजन में भारी खर्च, अधोसंरचना मानव संसाधन वाहन संसाधन आदि की जरूरत पड़ती है बड़े पैमाने पर कागज, छपाई, ढुलाई ( परिवहन) खर्च आता है। आवेदकों के ज्यादा अनुपस्थिति होने से उक्त तमाम चीजों पर खर्च जाया होता है जिसका घाटा सरकार उठाती हैं। जो वास्तव में जनता द्वारा जमा टैक्स (कर) से पूरा किया जाता है। बेरोजगार उम्मीदवारों को दी गई रियायत की कीमत समझ में आए अतः उपरोक्त सुझाव लागू करना गलत नहीं होगा। इसके दो फायदे होंगे। गंभीर प्रवृत्ति के उम्मीदवार परीक्षा में बैठेंगे अनुपस्थितों की संख्या तेजी से गिरेगी (घटेगी) सरकार को नुकसान कम होगा। चालान से कुछ भरपाई होगी। योजना जारी रखें। क्योंकि वाकई हजारों गंभीर प्रवृति के गरीब, बेरोजगार, होशियार उम्मीदवार शुल्क देने में सक्षम नहीं है।