सावन का महीना लगते ही कांवड़ यात्रा पर निकले भक्तगण, यात्रा के दौरान इन कठोर नियमों का किया जाता है पालन

आज से सावन का महीना शुरू हो गया है, सनातन धर्म में सावन के महीने को बहुत शुभ माना जाता है। सावन का महीना शुरू होने के साथ ही कांवड़ यात्रा की भी शुरूआत हो चुकी है। भोलेनाथ के भक्त बड़ी संख्या में कांवड़ यात्रा लेकर अपने आराध्य की आराधना करने के लिए निकल पड़ते हैं। कांवड़ यात्रा के दौरान श्रद्धालु गंगा नदी से जल भरकर शिवलिंग पर चढ़ाते हैं।

शास्त्रों में वर्णित है कि सावन महीने में भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं। इसलिए ये समय भक्तों, साधु-संतों सभी के लिए अमूल्य होता है। यह एक वैदिक यज्ञ है, जो एक प्रकार का पौराणिक व्रत है, जिसे ‘चौमासा’ भी कहा जाता है; तत्पश्चात सृष्टि के संचालन का उत्तरदायित्व भगवान शिव ग्रहण करते हैं।

कांवड़ यात्रा के कठोर नियम
कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़िया अपनी कांवड़ को जमीन पर नहीं रख सकता है। इसके अलावा बिना नहाए हुए कावड़ को छूना पूरी तरह से वर्जित है। कांवड़ को किसी पेड़ के नीचे भी नहीं रख सकते हैं। कांवड़ यात्रा के दौरान कावड़िया मांस, मदिरा या किसी प्रकार का तामसिक भोजन नहीं कर सकते।

 

कब से कब तक निकाली जाएगी कांवड़ यात्रा?
सावन के महीने की शुरुआत से ही कांवड़ यात्रा निकलना शुरू हो जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि 4 जुलाई 2023 को पड़ रही है। कांवड़ यात्रा की शुरुआत भी 4 जुलाई से हो गयी है, जो 15 जुलाई 2023 दिन शनिवार को शिवरात्रि के दिन भगवान शिव को जल चढ़ाने के साथ समाप्त होगी।

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