शोध कार्य हेतु आरक्षण उचित नहीं … !
धर्म, संप्रदाय, समुदाय में नहीं आंक सकते शोधार्थी
रायपुर। विश्वविद्यालयों से P.H.D.करने हेतु प्रवेश परीक्षा का केंद्रीय मूल्यांकन सराहनीय है। किंतु सीटो हेतु आरक्षण रखना उचित नहीं है।
किसी भी उच्च शिक्षण संस्थान की पहचान वहां के शोध कार्य होते हैं। इसे हर शिक्षाविद् स्वीकारता है। राजकीय विश्वविद्यालयों से P.H.D.करने पूर्व परीक्षा ली जाती है। जिसका मूल्यांकन पहले संबंधित विषय के अर्हता प्राप्त प्राध्यापकों से कराया जाता था। प्रवेश परीक्षा की उत्तर पुस्तिकाएं उन्हें प्रेषित कर दी जाती थी। परंतु अब व्यवस्था बदल दी गई है। अब केंद्रीय मूल्यांकन कराया जा रहा है। यानी अर्हता प्राप्त प्राध्यापकों को (शोध निदेशक) को कैंपस आमंत्रित (अनिवार्य) कर कापी जांच कराई जाएगी। इच्छुक प्राध्यापक हिस्सा ले सकेंगे।
उपरोक्त व्यवस्था सही है सराहनीय है। इससे जहां निष्पक्षता बढ़ेगी वहीं योग्य विद्यार्थी-शोधार्थी बनने तलाशे जा सकेंगे। पर P.H.D.करने हेतु सीटो का आरक्षण करना उचित नहीं कहा जा सकता। उत्तीर्ण होने न्यूनतम प्राप्तांक 50 प्रतिशत रखा जाना ठीक है। पर सीटो का आवंटन शोधकार्य में आरक्षण व्यवस्था के तहत किया जाना गले नहीं उतरता। शोध कार्य आमतौर पर समाज, प्रदेश, देश, वर्ग विशेष, क्षेत्र विशेष, समस्या, व्यक्ति या समूहों आदि नाना प्रकार के विशेषों पर केंद्रित रहता है। जो विद्यार्थी वास्तव में नई खोज के अभिलाषी हैं। ततसंबंध में उनमें कार्य क्षमता (प्रावीण्य) है उन्हें मौका दिया जाना चाहिए। ना कि कम योग्य (गैर अभिलाषी) को। शोध कार्य को करने किसी धर्म, विशेष, समुदाय, या संप्रदाय वर्ग से एक निश्चित सीमा में विद्यार्थी चुनकर (भले ही न्यूनतम प्राप्तांक प्राप्त किया हो) रोटेशन सिस्टम बनाना उचित नहीं हैं। शोधकार्य किसी भी विषय पर हो पर उसे करने धर्म, संप्रदाय, समुदाय आधार पर वर्गीकरण करना शोध कार्य को हल्का बनता है।
(लेखक डॉ. विजय)