क्या बिहार चुनाव में NOTA बनेगा बड़ी उलझन, रिकॉर्डतोड़ वोटिंग में कहीं बिगाड़ न दे खेल
बिहार में NOTA की शुरुआत से ही इसको लेकर वोटर्स में उत्साह दिखा है. इस बार बिहार में रिकॉर्ड वोटिंग हुई है तो क्या NOTA के पक्ष में वोटिंग का रिकॉर्ड टूटेगा. बिहार में 2015 में 2.5 फीसदी वोट NOTA को पड़े तो 2020 में गिरावट आई और 1.7 फीसदी ही वोट पड़े, लेकिन पिछले साल लोकसभा चुनाव में ग्राफ फिर चढ़ा और 2.1 फीसदी वोट NOTA को आए.
बिहार में 2 चरणों में रिकॉर्डतोड़ वोटिंग के साथ चुनाव खत्म हो गया है. अब सभी को चुनाव परिणाम का इंतजार है. 14 नवंबर को वोटों की गिनती होनी है. हालांकि चुनाव के बाद जारी किए गए कई एग्जिट पोल सर्वे में एनडीए की ही सत्ता में वापसी की संभावना जताई जा रही है. 40 साल में पहली बार वोटिंग का आंकड़ा 65 के पार गया. दोनों चरणों को मिलाकर करीब 66.90 फीसदी वोट पड़े जो पिछले चुनाव की तुलना में 9.6 फीसदी अधिक है. इस बार यह आंकड़ा अभी बढ़ भी सकता है. 2020 में 57.29 फीसदी वोटिंग हुई थी.
सुप्रीम कोर्ट के 2013 में दिए गए एक आदेश के बाद चुनाव आयोग ने NOTA यानी इनमें से कोई नहीं (None of the above) को हर चुनाव में लागू करने का फैसला किया. इसका पहली बार इस्तेमाल साल 2013 के राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, मिजोरम और दिल्ली के विधानसभा चुनाव के दौरान हुआ था. हालांकि यह भी है कि NOTA से चुनाव पर कोई खास फर्क नहीं पड़ता लेकिन यह बहुत ही खामोशी से किसी भी सीट के चुनाव परिणाम पर गहरा असर डाल सकता है.
NOTA ने 2020 में दिखाया था असर
बिहार में भारी वोटिंग के बीच राजनीतिक दलों को यह आशंका सता रही है कि NOTA कहीं उनका खेल न बिगाड़ दे. 2020 के विधानसभा चुनाव परिणाम में NOTA ने अपना खासा असर दिखाया था. बिहार में 243 सीटों वाली विधानसभा है और इसमें कम से कम 30 सीटें ऐसी रही थीं जहां पर हार-जीत का अंतर NOTA में पड़े वोट की तुलना में कहीं कम था.
इनमें से 10 सीटों के दिलचस्प मुकाबले में जेडीयू बाजी मारने में कामयाब रही थी. एक सीट पर 8 हजार से भी अधिक वोट नोटा के खाते में गए थे. इस तरह से यह भी कहा जा सकता है कि अगर NOTA की व्यवस्था नहीं होती तो परिणाम कुछ और हो सकता था.
23 सीटों पर 2 हजार से कम वोटों का अंतर
पिछले विधानसभा चुनाव में 23 सीटों पर मुकाबला इस कदर कांटेदार रहा कि हार-जीत का अंतर 2 हजार से भी कम वोटों का रहा, इनमें तो 11 सीटों पर हार-जीत का अंतर घटकर एक हजार से भी कम वोटों तक आ गया था. हिल्सा सीट पर हार-जीत का अंतर महज 12 वोटों का रहा. अब अगर NOTA के असर वाले सीटों को देखें तो भोरे सीट पर मतदान ने सभी को चौंका दिया.
भोरे सीट पर NOTA को पड़े 8000 वोट
गोपालगंज जिले के तहत आने वाली भोरे विधानसभा सीट पर हार-जीत का अंतर महज 462 वोटों का रहा था. यहां पर बेहद कड़े मुकाबले में जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) ने वाम दल CPI(ML)L को हराया था. जबकि खास बात यह है कि भोरे में कुल पड़े वोटों में से 2.4 फीसदी यानी 8,010 वोट NOTA के खाते में गए थे. इस तरह करीब 17 गुना अंतर आया. अगर ये वोट राजनीतिक दलों के खाते में जाते तो परिणाम शायद कुछ और होता.
भोरे के अलावा बेगुसराय जिले की मटिहानी सीट पर भी NOTA ने खेल कर दिया था. यहां पर लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) ने जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) को महज 333 मतों के अंतर से हराया था और यहां पर NOTA के खाते में 6,733 वोट चले गए. यहां पर यह अंतर 20 गुना अधिक रहा. जमुई जिले की चकाई सीट पर NOTA को 6,521 वोट मिले जबकि हार-जीत का अंतर महज 581 वोटों का रहा था. निर्दलीय प्रत्याशी सुनील कुमार ने आरजेडी को हराया था.
जमुई जिले की 2 सीटों पर NOTA का असर
जमुई की एक और झाझा सीट पर भी NOTA ने खेल कर दिया. यह सीट जेडीयू के खाते में गई. लेकिन 1,679 मतों के अंतर से मिली जीत के इतर यहां पर NOTA में 6,278 वोट गिरे थे. अररिया जिले की रानीगंज सीट पर जेडीयू को 2,304 वोट के अंतर से जीत मिली, लेकिन अगर NOTA के खाते में 5577 वोट नहीं गिरे होते तो परिणाम कुछ और भी हो सकता था.
ये वो सीट हैं जहां हार-जीत के कम अंतर के बीच NOTA के खाते में 5 हजार से अधिक वोट पड़े थे. इसके अलावा कुछ अन्य सीटें भी हैं जहां NOTA के पक्ष में ज्यादा वोट डाले गए. मुजफ्फरपुर जिले के सकरा सीट पर जेडीयू को 1,537 मतों के अंतर से जीत मिली तो NOTA को 4,392 वोट मिले. वैशाली जिले की राजा पाकर सीट पर NOTA को 3,928 वोट मिले जबकि जीत का अंतर 1,796 वोटों का रहा.
हिल्सा सीट पर महज 12 वोट से मिली हार
सीवान जिले की बरबिघा विधानसभा सीट पर भी ऐसा ही अनोखा मुकाबला दिखा. NOTA के खाते में कुल पड़े वोट का 1.4 फीसदी यानी 4,231 वोट आए तो हार-जीत का अंतर 3,559 वोटों का रहा. सीतामढ़ी जिले की परिहार सीट पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने 1,569 वोटों से जीत अपने नाम की, जबकि यहां पर NOTA को 3,590 वोट मिले थे. मुंगेर जिले की मुंगेर सीट पर भी बीजेपी को कड़े संघर्ष में 1,244 वोटों से जीत मिली तो NOTAके खाते में 3,076 वोट गए थे.
इसके अलावा सहरसा जिले की महिषी सीट, मुजफ्फरपुर की कुरहनी सीट, बेगूसराय की बघवाड़ा सीट, कैमूर जिले की रामगढ़ सीट और नालंदा जिले की हिल्सा सीट भी शामिल है. हिल्सा सीट पर बिहार चुनाव का सबसे कड़ा मुकाबला हुआ था. तब यहां पर जनतांत्रिक विकास पार्टी ने निर्दलीय प्रत्याशी को हराते हुए महज 12 वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी, जबकि यहां पर NOTA के पक्ष में 1,022 वोट डाले गए थे.
बिहार में NOTA का लगातार रहा क्रेज
NOTA के आने के बाद के दौर को देखा जाए तो बिहार के वोटर्स NOTA को खासा पसंद करते रहे हैं. यहां पर यह दर राष्ट्रीय औसत से भी ज्यादा का रहा है. 2014 के लोकसभा चुनावों में बिहार में 1.6 फीसदी वोट NOTA के पक्ष में पड़े तो 2015 के विधानसभा चुनावों में यह दर बढ़कर रिकॉर्ड 2.5 फीसदी (कुल पड़े वैध 3,81,20,124 वोटों में से 9,47,279 वोट) हो गया. हालांकि 2020 के चुनाव में ग्राफ में थोड़ी गिरावट आई और यह गिरकर 1.7 फीसदी (7,06,502 वोट) रह गया.
हालांकि 2024 के लोकसभा चुनावों में बिहार में NOTA के पक्ष में वोट प्रतिशत में फिर से बढ़ोतरी हुई और यह 2.1 फीसदी तक पहुंच गया. अब अगर यही दर 2025 के विधानसभा चुनाव में भी जारी रहा तो एक बार फिर बिहार में चुनाव दिलचस्प हो सकता है. वोटिंग को लेकर इस चुनाव में नया रिकॉर्ड तो बना ही है, अब वोटर्स की नाराजगी NOTA के रूप में सामने आई तो राजनीतिक गठबंधनों का खेल बिगड़ सकता है. फिलहाल करीबी मुकाबले में किस दल को कामयाबी मिलती है, इसके लिए 14 नवंबर तक इंतजार करना होगा.

