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बिहार में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं ने क्यों की अधिक वोटिंग, क्या रिजल्ट पर असर संभव?

Bihar Assembly Elections: बिहार विधानसभा चुनाव में महिलाओं ने पुरुषों से ज्यादा वोट डाले. उनका मतदान प्रतिशत 71.6 रहा जबकि पुरुषों का 62.8 फीसदी रहा. क्या मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना का 10,000 रुपये देने का फैक्टर निर्णायक साबित हुआ. जानिए इस एक्सप्लेनर में

 

Bihar Assembly Elections: बिहार विधानसभा चुनाव में दोनों चरणों का मतदान संपन्न हो चुका है और अब सबकी निगाहें 14 नवंबर, शुक्रवार पर टिकी हैं. इसी दिन ईवीएम का पिटारा खुलेगा और यह तय हो जाएगा कि अगले पांच साल तक इस राज्य की सत्ता की बागडोर किसके हाथ में होगी. इस बार के मतदान ने एक दिलचस्प पहलू सामने रखा है. शुरुआती मतदान आंकड़ों से पता चलता है कि दोनों चरणों में पुरुषों की तुलना में कम से कम 4,34,000 अधिक महिलाओं ने मतदान किया है. प्रतिशत के हिसाब से महिलाओं का मतदान प्रतिशत 71.6% रहा, जबकि पुरुषों का 62.8% रहा.

यह भी ध्यान देने योग्य है कि यह फाइनल आंकड़ा नहीं है. इसमें सेवा और डाक मतपत्र मतदाता और ट्रांसजेंडर मतदाता शामिल नहीं हैं. राज्य के विभिन्न मतदान केंद्रों से और आंकड़े आने पर इनमें कुछ बदलाव हो सकता है. फिर भी महिलाओं का इतनी बड़ी संख्या में मतदान करना उल्लेखनीय है. खासकर इस तथ्य को देखते हुए कि चुनाव आयोग द्वारा अपने विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के बाद तैयार की गई अंतिम मतदाता सूची में पुरुषों की तुलना में महिलाओं की संख्या 42.33 लाख कम थी. बतौर मतदाता रजिस्टर्ड पुरुषों की संख्या लगभग 3.94 करोड़ थी, जबकि रजिस्टर्ड महिलाओं की संख्या लगभग 3.51 करोड़ थी.

ज्यादा मतदान की वजह?
दूसरे शब्दों में, जहां पुरुषों की संख्या 52.8 फीसदी थी और महिलाओं की संख्या लगभग 47.2 फीसदी. वहीं मतदान करने वालों की संख्या को देखा जाए तो पुरुषों की संख्या केवल 49.6 फीसदी थी, जबकि महिलाओं की संख्या 50.4 फीसदी थी. इस प्रकार चुनावों में पुरुषों की तुलना में महिलाओं के पक्ष में कुल 4,34,145 वोटों का अंतर था. चुनाव आयोग के अभी तक दिए गए आंकड़ों के अनुसार दोनों चरणों में कुल मतदान 66.91 फीसदी रहा. जो 2020 के चुनावों (57.29%) के आंकड़ों से लगभग 10 प्रतिशत अधिक है. बिहार विधानसभा चुनावों (संयुक्त और बाद में विभाजित, दोनों राज्यों में) में महिलाओं का कुल मतदान (71.6%) अब तक का सबसे अधिक था.

हाई माइग्रेशन से आया अंतर
मतदान में इस लैंगिक अंतर को आंशिक रूप से बिहार के हाई माइग्रेशन पैटर्न से समझा जा सकता है. जहां काम की तलाश में पुरुष प्रवासियों का सबसे बड़ा हिस्सा हैं. एसआईआर में केवल उन मतदाताओं को शामिल किया जाना था जो राज्य में सामान्य रूप से निवासी थे और इस प्रक्रिया में स्थायी प्रवासियों को बाहर रखा जाना चाहिए था. बिहार में किए गए एसआईआर के परिणामस्वरूप महिलाओं को बाहर किए जाने में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है. अंतिम मतदाता सूची में लिंग अनुपात 2024 के लोकसभा चुनावों में प्रत्येक 1000 पुरुष मतदाताओं पर 907 महिला मतदाताओं से घटकर 892 रह गया है.

लिंग अनुपात आंकड़ों में विरोधाभास
लिंग अनुपात की बात करें तो रजिस्टर्ड मतदाताओं में 2025 के चुनावों के दोनों चरणों में प्रति 1000 पुरुषों पर 892 महिलाएं थीं. लेकिन वास्तव में मतदान करने वाले मतदाताओं की संख्या बढ़कर प्रति 1000 पुरुषों पर 1017.55 महिलाएं हो गयी. 2024 के लोकसभा चुनावों में बिहार में भी यही स्थिति रही. जहां रजिस्टर्ड मतदाताओं में लिंग अनुपात प्रति 1000 पुरुषों पर केवल 907 महिलाएं थीं. वहीं मतदान करने वाले मतदाताओं में लिंग अनुपात प्रति 1000 पुरुषों पर 1017.5 महिलाएं था. लेकिन एसआईआर के अंतिम आंकड़े जिनमें पुरुषों की तुलना में महिलाओं को अधिक संख्या में बाहर रखा गया है, एक विरोधाभास दर्शाते हैं. जिसे अभी तक चुनाव आयोग द्वारा स्पष्ट नहीं किया गया है.

पहले भी दिखा है ऐसा ट्रेंड
यह तथ्य कि मतदाताओं में लिंग अनुपात कम होने के बावजूद महिलाओं का मतदान प्रतिशत पुरुषों की तुलना में काफी अधिक रहा. यह एक ऐसी घटना है जो लोकसभा चुनावों में केवल बिहार और झारखंड तथा कुछ हद तक हिमाचल प्रदेश तक ही सीमित रही. बिहार में अंतिम एसआईआर में महिला मतदाताओं की संख्या में भारी कटौती के बावजूद यह ट्रेंड बरकरार है, जिनमें से अधिकांश को ‘स्थायी रूप से स्थानांतरित’ कारण से हटाया गया है. विशेष रूप से 18-29 वर्ष आयु वर्ग में जैसा कि एसआईआर का मसौदा तैयार होने के बाद किए गए विश्लेषण से पता चलता है.
महिलाओं में ’10 हजारी’ फैक्टर
यह ध्यान देने योग्य बात है कि बिहार में मुख्य चुनावी मुद्दों में से एक नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार द्वारा मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत महिलाओं को 10,000 रुपये का वितरण था. वास्तव में यह एक निर्णायक मुद्दा बन गया था, खासकर महिला मतदाताओं के बीच. इस योजना का मुख्य उद्देश्य राज्य की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना और उन्हें स्वरोजगार के अवसर प्रदान कर आर्थिक रूप से सशक्त बनाना था. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार चुनाव से ठीक पहले तक इस योजना के तहत 1 करोड़ 51 लाख से अधिक पात्र महिलाओं के बैंक खातों में ₹10,000 की राशि सीधे (DBT के माध्यम से) हस्तांतरित की गई थी. यह राशि चुनाव की घोषणा से कुछ समय पहले ही वितरित की गई थी, जिसने इसे एक महत्वपूर्ण चुनावी कारक बना दिया. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना था कि इस योजना से लाभान्वित हुई महिलाओं ने अपने पूरे परिवार के वोटिंग पैटर्न को प्रभावित किया होगा.

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