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वक्त है मूलधारा में लौटने का …!

हम सभी वंशज हैं उन पूर्वजों के….!

रायपुर। वर्तमान पीढ़ी के 5 पीढ़ी पूर्व के हमारे पूर्वजों ने देश को अंग्रेजों से आजादी दिलाई। आमतौर पर सन 1740 से लेकर 1930 के मध्य पैदा हुए हमारे पूर्वजों ने होशो-हवास में स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया। जिन्होंने देश को गुलामी के बेड़ियों से मुक्त कराने त्याग-तपस्या करते हुए अपना जीवन कुर्बान कर दिया। किंतु हमारी वर्तमान पीढ़ी को शायद इसका अहसास नहीं है।

देश जब 1947 में आजाद हुआ तब हमारे नेताओं ने लोकतंत्र व्यवस्था अपनाई। उन्होंने सर्व समावेशी, समन्वयवादी रुख अपनाया। ध्यान रहे लोकतंत्र-स्वतंत्रता का एक दूसरे से गहराई के साथ संबंध है। एक लोकतंत्र को सबकी तकलीफ, कष्ट, पीड़ा, खुशी, प्रसन्नता, सपना का ध्यान रखना चाहिए। लोकतंत्र के बनाए रखने के लिए हमें देश के अतीत, वर्तमान, भविष्य को व्यापक नजरिए से समझना होगा। लोग अपनी सुविधा इसे व्याख्यित न करें। अन्यथा संतुलन कायम नहीं नहीं रहेगा। अनेकता में एकता हमारी विशेषता है। पर इस दृष्टिकोण से नहीं अलग-अलग समूह अपनी सुविधानुसार बना अन्य समूहों से दूरी बना लें। उन्हें अछूत समझ देश में धनाड्य,अति धनड्य, गरीब, अति गरीब,दलगत, समुदाय, सम्प्रदाय, धर्मालंबी, जातिलंबी, धनलंबी, ताकतवर, सत्ताभोगी, सत्ताविहीन,आरक्षित, अनारक्षित, रोजगार रहित, बेरोजगार विहीन,अपराधी, निरापद आदि-आदि वर्ग मिलेंगे। जिनकी स्वाभाविक तौर पर सोच अलग अलग होगी। ये सारे वर्ग अनेकता में एकता हमारी विशेषता पर खरे नहीं उतरते। (आजादी के 76 बरस पूरे हो चुके। देश बदला है, आर्थिक दशा सुधारी है। शिक्षा का स्तर बढ़ा है। कामकाज के दायरे बढ़े हैं। आज हम विश्व के देशों में आर्थिक क्षेत्र में पांचवी शक्ति के तौर पर गिने जा रहे हैं। सरकार का कहना है कि हमारा प्रयास तीसरे स्थान के लिए (पहुंचना) है। इसके साथ ही राजनैतिक दल बढ़ते चले गए हैं। जो सत्ता प्राप्ति के लिए किसी भी हद जाने तैयार रहते हैं। किंतु आश्चर्य आमजनों को आधुनिक दौर में बरगलाने, बहकाने, ललचाने में लगे रहते हैं। एक-दूसरे दल की कमियां या सरकारों की कमियां ही देखते हैं। विपक्ष कभी सरकार की अच्छी नीति का समर्थन नहीं देता। उल्टे विरोध करता। जनता को बरगलाना है। आखिर आधुनिक दौर में क्यों भूल जाता है कि पब्लिक है ये सब जानती है। जब हम आखिरकार उन पूर्वजों के किसी न किसी रूप, कोण, दृष्टि से वंशज हैं। जिन्होंने मुल्क को घोर यातनाएं, दर्द, तड़फ, पीड़ा झेलकर त्याग-बलिदान देकर आजादी दिलाई है तो अब क्यूंकर संवेदन शून्य, संवेदनहीन हो गए हैं। देश के किसी भी राज्य, किसी भी कोने में घटने वाला घटनाक्रम क्योंकर हमें प्रभावित नहीं करता। किसी दूसरे देश द्वारा हमारी सरहद के करीब आकर बुरी नजर डालता है या घुसपैठ करता है तो प्रभावित क्यों नहीं होते। आखिर इन 76 वर्ष में ऐसा क्या हो गया जो इतना बदल गए।)

उक्त चंद सवालों के जवाब आप अपनी आत्मा, जमीर से पूछें। राजनैतिक दल सोचे-विचारे क्या वे देश के प्रति, एक-दूसरे दल के प्रति सही सोच-विचार, सहिष्णुता रखते हैं कि नहीं। कि केवल सत्ता चाहते हैं। या कि हर दल चाहता है कि जनता जनार्दन संवेदनहीन, तटस्थ बनी रहे। नहीं तो उन्हें (दलों ) खतरा पैदा हो जाएगा। राजनैतिक दलों से बाहर अन्य पेशे काम धंधों-सरकारी नौकरी करने वाले सभी सोचें कि उनकी संवेदनहीनता इस देश को ओर उन्हें कहां ले जाकर छोड़ेगी। क्यों भौतिकवादी, उपभोक्तावादी, विलासी, विलायती संस्कृति (विदेशी),अपनाकर यह भूल रहे हैं कि जब हमारी खुद की संस्कृति, भाषा, बोली, रहन-सहन, जीवन-दर्शन, जीवन-यापन बदल जाएगा तो क्या हम फिर से गुलाम नहीं हो जा रहे हैं। क्या हम खुद ही अपना अस्तित्व, वजूद, संस्कृति नष्ट नहीं कर रहे है। क्या भारतीयता की पहचान नहीं खो रहे हैं। हमें गर्व है कि हम सब उन पूर्वजों की पीढ़ी-वंशज है। जिन्होंने गुलामी की बेड़ियों से देश को मुक्त कराया। बस हम थोड़ा रास्ता भटक रहे हैं। सुबह का भूला शाम को घर लौटे तो भूला नहीं कहलाता। अब भी समय वक्त है। सम्हल जाने का। फिर से इस मुल्क को एकजुट करने की जिम्मेदारी का। इस हेतु उपरोक्त तमाम प्रकार के वर्गों, दलों, समुदायों, धर्मो, समाज, धनी, अति धनी, निर्धन, अति निर्धन, मध्यम, अति मध्यम आदि-आदि प्रकार के छोटे-बड़े मझोले तमाम समुदाय को स्वार्थ से बाहर निकल, बाहर हर एक के लिए समय देना, सोचना, विचारना, काम करना, मदद करना होगा। हम सब मिलकर, प्रयास कर, बदलाव लाकर, मूलधारा में लौटकर ( घर,देश, वतन) देश को सम्पन्न, परिपूर्ण, समृद्ध बनाने की योग्यता एवं दमखम रखते हैं। आखिरकार हम सब वंशज हैं उनके —— जिन्होंने सब कुछ त्याग-बलिदान कर देश, मुल्क, वतन को आजादी दिलाई। वे आत्माएं हमें देख रही हैं और आस-उम्मीद लगाए हुए हैं कि अपने कर्तव्य पथ पर मूलधारा पर वंशज लौटेंगे—! आपका क्या इरादा हैं।

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