छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2023 : छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में छोटी-मंझोली पार्टियों का रूख -बिल्ली के भाग्य से छींका टूटना वाली कहावत हो गया है

छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव: 2023
छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2023: चुनावी सर्वे रिपोर्ट में पाया कि छत्तीसगढ़ के ज्यादातर मतदाताओं की सोच स्पष्ट एवं मतदान दिवस के पूर्व तय
छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव: 2023 रायपुर छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में छोटी-मंझोली पार्टियों का रूख- बिल्ली के भाग्य से से छींका छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव: 2023 टूटना वाली कहावत सदृश्य हो गया है। या परीक्षा के बगैर पढ़े-लिखे बिना मेहनत किए बैठने वाले उन परीक्षार्थियों की तरह जो पूरे 3 घंटे या सोचते बैठे रहते हैं कि निरीक्षक बाहर जाए तो कोई होशियार परीक्षार्थी एक दो सवालों का उत्तर बता दे।
चुनावी सर्वे रिपोर्ट में पाया कि छत्तीसगढ़ के ज्यादातर मतदाताओं की सोच स्पष्ट एवं मतदान दिवस के पूर्व तय हो चुकी होती है। यह दीगर बात है कि वे अपना पता दिखाते नहीं है। सीधे-साधे होने से वे दो बड़े राजनीतिक दलों में से किसी एक दल की ओर हो लेते हैं।
चुनावी सर्वे रिपोर्ट ने यह भी पाया था कि कुछ मतदाताओं का कहना या सोचना है कि अगर छोटे-मंझोले दल एक होकर- गठबंधन बना लड़ते हैं तो उनके (मोर्चा) के बारे में एक बार विचार कर सकते हैं। अन्यथा फुटकर (चिल्हर) से भला आजकल क्या- कुछ होता है।
समय रहते छोटे-मंझोले दलों ने ध्यान नहीं दिया या कि नजर अंदाज किया सभी एक तरह अपनी -अपनी अकड़ में जकड़ गए। नतीजा सामने है। अब यही छोटे -मंझोले दलों की दशा स्थिति ऐन नामांकन तिथि शुरू होने पर बिल्ली के भाग्य से छींका टूटने जैसी हो गई है। बस ताक रहे हैं कि दोनों बड़े दिल में से कौन-कौन टपक कर गिरता है या टूटता है तो लपक- झपट ले। बेशक दो-चार या 6 ऐसे मौके लग भी सकते हैं। पर एक अनार- सौ बीमार। करीब दर्जन भर छोटी -मंझोली पार्टियों की यही कुछ स्थिति है।
तमाम छोटे- मंझोले दल भूल गए कि मतदाताओं के भी अपने कुछ विचार होते हैं। सिद्धांत होते हैं। नई बोतल में पुरानी शराब या दवा डालकर आप कितनी बार ग्राहकों (मतदाताओं) को फंसा पायेगे। आपको अपना सिद्धांत अपनी सोच नया कुछ देना था तो फिर उस पर कायम क्यों नहीं रहे। अगर दिक्कत आ रही है तो एकजुट होकर मोर्चा बनाते। उसका आलग प्रभाव पूरे प्रदेश में पड़ता। एक दूजा विकल्प मतदाताओं को मिलता है या दिखता फिलहाल तो कॉलेज परीक्षा के औसत से नीचे वाले परीक्षार्थी सी हो गई है।जो साल भर तो पढ़ता नहीं। प्रवेश पत्र, टाइम टेबल आने पर प्रश्न गैासंग,आईएमपी जरूर ढूंढता है। उसे भी पाने पर तैयारी नहीं कर पाता। तब परीक्षा सेंटर में ताकता बैठा रहता है कि कब निरीक्षक दो-चार मिनट बाहर जाए और वह होशियार परीक्षार्थी या आगे पीछे अगल-बगल वालों का एक दो सवालों के उत्तर देखकर लिख (उतार) ले। दूसरे अर्थों में कब बड़ी पार्टी से कोई नाराज बड़ा नेता बाहर आए।, टूट कर आए और हम (छोटे) लपक लें।
(लेखक डॉ. विजय )