Mon. Sep 15th, 2025

नेक के दर्जे के कोहरे से बाहर निकलने की चुनौती… !

नए कुलपति योग्य है, जुट जाए

रायपुर। पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय में हाल ही में निरीक्षण बाद “नेक” की टीम ने उसे “बी” डबल प्लस का दर्जा प्रदान किया है। पूर्व में विश्वविद्यालय को “ए ” दर्जा मिला हुआ था। पर इससे निराश होने के बजाय नए सिरे से कार्य करना होगा। संयोग से कुलपति नए हैं लिहाजा यह संभव है।

“नेक” टीम के आने की सूचना के पूर्व विश्वविद्यालय ने यथासंभव तैयारी की थी। विश्वविद्यालय में महज चार माह पूर्व नए कुलपति डॉ. सच्चिदानंद शुक्ल ने कार्यभार सम्हाला है। जिन्हें बाहरी (उत्तर प्रदेश) व्यक्ति कह विरोध करते हुए निरुत्साहित करने का प्रयास किया गया। जो पूर्णतः गलत है। विश्वविद्यालय में जैसे किसी भी जगह (स्थान) से आकर विद्यार्थी पढ़ सकता है तो स्वाभाविक है कि शिक्षक, कर्मचारी-कुलपति भी कहीं से भी आकर कार्य कर सकते हैं। बहरहाल कुलपति डॉ. शुक्ल अच्छा कार्य कर रहें हैं। और उम्मीद है कि तमाम विद्यार्थी, कर्मचारी, शिक्षक उनके निर्देशन में अपनी 100 प्रतिशत प्रस्तुति देंगे।

फिलहाल नेक के दिए दर्जे “बी डबल प्लस” के कोहरे से निकल कर कार्य में जुटना होगा। विश्वविद्यालय सर्वप्रथम यह सुनिश्चित करें कि सभी कर्मी, अधिकारी, शिक्षक समयावधि के पूर्व कार्यस्थल पर पहुंचे एवं समयावधि पूर्ण होने के बाद ही जाए। दूसरा जो दायित्व है उसे लगन से, ईमानदारी पूर्वक करें। कोई कार्य पेंडिंग न रखें। आज भी दशकों पूर्व के हजारों पूर्व विद्यार्थियों ने दीक्षांत समारोह न होने देरी को देखते अपनी उपाधि नहीं निकाली है। चाहे तो विश्वविद्यालय जांच कर ले।

विश्वविद्यालय प्रशासनिक भवन या अध्ययन शाला हो या संबंद्ध महाविद्यालयों के अंदर भर्ती पारदर्शिता, ईमानदारिता, योग्यता आदि को प्राथमिकता दें। पूर्व भर्तियों को जांच लें। संबंद्ध महाविद्यालयों में प्राचार्य, शिक्षक न्यूनतम योग्यता भी रखते हैं कि नहीं। प्राचार्य पद रोटेशन प्रणाली अंतर्गत क्यों नहीं है। विश्वविद्यालय देखें कि पूर्व में हुए शोधकार्यों में कमी कापी पेस्ट या कुछ परिवर्तन, संशोधन के साथ शोधकार्य रिपीट तो नहीं। इसी तरह शोधपत्र की जांच करा लें। विश्वविद्यालय वार्षिक एवं सेमेस्टर सिस्टम में प्रश्न पत्र सेट कराते वक्त गोपनीयता सुनिश्चित कर ले। प्रश्नपत्र लीक तो नहीं हो रहा है। दूसरा परीक्षा आयोजन के मध्य संबंद्ध महाविद्यालय में पारदर्शिता, निष्पक्षता, ईमानदारी है कि नहीं।

विश्व विद्यालय किसी भी छात्र संगठन, राजनीतिक दबाव में आकर अपना निर्णय न बदले। जैसा कि कोविड काल में दबाव में आकर 3 वर्ष तक ऑनलाईन परीक्षा घर से दी गई। जिसका नतीजा विद्यार्थी अब भोग रहे हैं। संबंद्ध महाविद्यालयों में नियुक्तियां विश्वविद्यालय परिवार में साक्षात्कार से हो न कि संबंद्ध महाविद्यालय में। विश्वविद्यालय अपने शिक्षण विभागों (अध्ययन शालाओं) में प्रवेश कार्य में शिथिलता न बरते। स्थान रिक्त होने पर भी कम प्राप्तांक वालों को लेकर खानापूर्ति न करें। शोधार्थी का चयन योग्यता को परखकर ही किया जाए। पहुंच या दबाव पर नहीं।अध्ययन शाला- अध्यापन कार्य एवं शोधकार्य, नई खोजों से सतत वाकिफ रहे। शिक्षक सतत शोधपत्र लेखन में लगे रहें।

विश्वविद्यालय में न्यूनतम सेवा कार्य मसलन खुद या ठेके पर ऑटो,बस चलाये। केवल विश्वविद्यालय के लोगों के लिए। शॉपिंग सेंटर हो। टी कैंटीन हो। स्तरीय हेल्थ विभाग (अस्पताल हो) छात्रावास परिपूर्ण हो। जहां गलत तत्व प्रवेश न करें। सतत मॉनिटरिंग हो। खेल के लिए समुचित व्यवस्थाएं हो। सेमिनार संगोष्ठी सतत हो।

कुलपति एवं उनके द्वारा गठित समिति कभी भी बिना पूर्व सूचना के अध्ययन शालाओं, संबंद्ध महाविद्यालयों प्रशासनिक भवनों, छात्रावासों का औचक निरीक्षण करें। इसमें नियमिता हो। “नेक” की टीम ने अपने निरीक्षण में जो देखा जांचा -भांपा चर्चा की उस आधार पर दर्जा दिया। नए कुलपति निराश न हो। वजह उनके आने के पूर्व की ज्यादातर व्यवस्था कायम है। कुलपति को नए सिरे से प्रतिबद्धता- कटिबद्धता से कार्य बिना दबाव में आए करना होगा। उन्होंने महज 4 माह के दौरान झलक दिखला दी है कि वे अच्छे कुलपति साबित होंगे। वे गंभीर होकर अपना कार्य करते हैं। बहुत अच्छी जगह (मूल स्थान) से यहां आए हैं।

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