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NDA और महागठबंधन ने बिहार की जनता से किए हैं बड़े बड़े वादे, प्रॉमिस पूरा नहीं करेंगे तो क्या होगा?

बिहार में विधानसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान छह नवंबर को होगा, इससे पहले सत्ताधारी एनडीए और विपक्षी महागठबंधन ने जनता को लुभाने के लिए कई वादे किए हैं। दोनों गठबंधनों ने अपना घोषणापत्र जारी कर दिया है। ऐसे में अगर उन्होंने किए गए वादे पूरे नहीं किए तो जनता के पास क्या विकल्प होंगे? जानिए इस खबर में

 

बिहार विधानसभा की 243 सीटों के लिए चुनाव के पहले चरण की वोटिंग छह नवंबर को होगी, दूसरे चरण की वोटिंग 11 नवंबर को होगी और मतों की गिनती 14 नवंबर को होनी है। इसे लेकर सत्ताधारी एनडीए और विपक्षी गठबंधन ने अपना अपना घोषणापत्र जारी कर दिया है। एक तरफ तेजस्वी का प्रण है तो दूसरी तरफ एनडीए का संकल्प पत्र है जिसमें बड़े बड़े वादे किए गए हैं। वादों में नौकरी, शिक्षा और कैश देने के साथ कई योजनाओं की बात की गई है। अब दोनों गठबंधनों ने जनता से तो बड़े बड़े वादे कर दिए लेकिन ऐसे में अगर एनडीए या फिर महागठबंधन ने अपने घोषणा पत्र में किए गए वादों को पूरे नहीं किया तो बिहार की जनता क्या करेगी?

चुनाव कोई भी हो, जीत के लिए सभी राजनीतिक दल घोषणाएं तो ऐसी करता है जैसे जनता बस उसे ही चुनकर सत्ता सौंप देगी। हर बार के चुनाव से पहले घोषणापत्र में वही सब दोहराया जाता है, बस तारीखें और वादे इरादे थोड़े बहुत बदल जाते हैं। इस बार भी बिहार के चुनाव के लिए दोनों राजनीतिक गठबंधन ने वादों की झड़ी लगा दी है। तो ऐसे में क्या बिहार की जनता वादे पूरे नहीं होने पर कोर्ट में जाकर इन पार्टियों से जवाब मांग सकती है?

वादे पूरे ना हों तो क्या कर सकती है जनता?

  1. कानूनी नजरिए से देखें तो घोषणापत्र जारी करने के बाद अगर कोई पार्टी या गठबंधन घोषणापत्र के वादे पूरे नहीं करती है, तो जनता उस पर कोर्ट में केस नहीं कर सकती है। इसके लिए भारत का संविधान और चुनाव आयोग राजनीतिक प्रतिबद्धता तो मानते हैं, लेकिन इसे न्यायालय में चुनौती देने योग्य दस्तावेज नहीं मानते। यह एक तरह से राजनीतिक वादा होता है, इसकी कोई कानूनी गारंटी नहीं होती है।
  2. वादे पूरे नहीं होने पर जनता पूरी तरह बेबस नहीं है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने कई बार कहा है कि चुनावी घोषणापत्र जनता के विश्वास से जुड़ा दस्तावेज है और पार्टियों को इसे गंभीरता से लेना चाहिए।
  3. ऐसे में अगर राजनीतिक पार्टियों द्वारा अगर कोई वादा झूठा या भ्रामक साबित होता है, तो चुनाव आयोग के पास शिकायत की जा सकती है।
  4. चुनाव आयोग ऐसे मामलों में पार्टी से स्पष्टीकरण मांग सकता है और गंभीर स्थिति में आचार संहिता उल्लंघन तक की कार्रवाई भी हो सकती है। हालांकि अब तक देश में ऐसा कोई बड़ा मामला नहीं हुआ, जहां किसी पार्टी को सिर्फ घोषणापत्र पूरा न करने के कारण सजा मिली हो।
  5.  हर घर बिजली, रोजगार, उद्योग, बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था और शिक्षा सुधार को लेकर कई वादे किए गए हैं , जिनमें कुछ काम जरूर हुए, लेकिन बहुत से वादे आज भी अधूरे हैं। इसीलिए लोगों के मन में यह सवाल बार-बार उठता है कि आखिर जनता को इन सभी वादों का जवाब कौन देगा?

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