सम्हल कर चले—– जमाना खराब है

बहुत कुछ करना होगा अन्यथा घटनाएं रुकने वाली नहीं .. ?
रायपुर। राजधानी रायपुर के नजदीक, मंदिर हसौद से लगे एक गांव से गुजरते गुरुवार के शाम 6 बजे दो बहनों के साथ 10 आरोपी, बदमाश आदतन अपराधियों ने सामूहिक दुष्कर्म करके समूचे छत्तीसगढ़ प्रदेश को शर्मसार कर दिया है।
मामले की त्वरित रिपोर्ट बाद, मंदिर हसौद पुलिस और रायपुर क्राइम पुलिस ने रात-भर जांच पड़ताल कर सबको गिरफ्तार कर लिया है। पीड़ित बहनें अपने भाई को राखी बांधकर लौट रही थी। सगी बहनों में एक नाबालिग है। ज्यादातर आरोपी नशे में थे। पुलिस के अनुसार इनमें से एक आरोपी हाल ही में जमानत पर छूटा है, जिस पर रेप का पूर्व में भी आरोप है।
घटना के पहले दोनों बहनें महासमुंद से आरंग, भानसोज, पिपरहटठा के रास्ते मंदिर हसौद लौट रही थी। आरोपियों ने सुने रास्ते रात के मौके का फायदा उठा बकायदा एकत्रित होकर घटना को अंजाम दिया।
गौरतलब है कि इस तरह की घटनाएं नजदीकी राज्यों में भी घटती आई है। केंद्र व राज्य सरकारों के कड़े कानूनों के बाद भी घटनाएं अगर रुक नहीं रही है। वक़्त आ गया है कि समाज के लोगों को इस संदर्भ में सोचना-विचारना होगा। धर्म-सम्प्रदाय से ऊपर उठकर गांव-गांव, शहर दर शहर विभिन्न क्षेत्रों के बुजुर्गों को विशेषज्ञों को लेकर समितियां बनानी होगी। जो युवा वर्ग को सही-गलत की जानकारी देने के साथ सांस्कृति, धार्मिक, मर्यादा, शालीनता, अनुशासन आदि से परिचित कराए।
कड़वी लगेगी पर देर शाम-रात नाहक घूमते युवाओं को रोकना परिवार की जिम्मेदारी है। पुलिस प्रशासन की नहीं। देर शाम-रात, रात तक क्लबों, होटलों, फार्म हाउसों में होने वाली पार्टियों, कार्यक्रमों को प्रतिबंधित करना होगा। याद करें अभी महज 10-12 दिन पहले चार लड़कियां नशे में धुत्त तड़के साढ़े 12 बजे वीआईपी रोड पर पुलिस से भिड़ गई थी। उनकी कार खराब हो गई थी। पुलिस ने रोककर पूछा था इतनी रात- कहां से आ रहें है तो उन्होंने उल्टे पुलिस को भला बुरा कहते हुए बातें सुनाई थी। तमाम कार्यक्रम यथासंभव दिन में करें। रोका-प्रतिबंध की सलाह को अपराधियों के आगे सलेंडर न समझे। बल्कि यह जरूर तय कर ले बदलते माहौल, परिदृश्य, भागती-दौड़ती जिंदगी, मोबाइल कल्चर, उसके पीछे की दीवानगी, पोर्न साइट, शराब, ड्रग्स आदि देर रात तक घूमने-फिरने की आजादी उसका वकालत आदि जब तक मौजूद है इस तरह की घटना होती रहेगी। फिर कहे कड़वा लगेगा। आज के दौर में हमारा बच्चा हमारे (घर में) सामने कुछ पेश आता है। और घर से बाहर निकलते ही दोस्त-यारों की महफिल में कुछ अलग रूप (शायद असली) धारण कर लेता है। एक अध्ययन बताता है कि आज 100 में से 70-75 प्रतिशत बच्चों, युवा, सरासर झूठ पालकों के साथ बोलते हैं।
बहुत सी छूट, ज्यादा से ज्यादा सुविधाए, गाड़ी, मोटर, बाइक, देकर यदि आप बच्चों की गतिविधियों पर नजर नहीं रख रहे हैं – वह कहां आता जाता है- किनसे मिलता-जुलता है किनके साथ उठता- बैठता है यह नहीं देखते तय मानिए कि बच्चा आपको (पालकों) धोखा दे रहा है। जमाना तेजी से बदलते जा रहा है। और खराब हो चला है। घर से निकले तो खुद सम्हल कर चले। हर जगह पुलिस नहीं मिल सकती। घटने वाले छोटी-मोटी चीजों बातों पर समाज त्वरित प्रतिक्रिया दे – चर्चा में शामिल कर, एक्शन लेकर घटनाकर्मों की पुनरुक्ति को रोका जा सकता है। उदासीन (तटस्थ) बनकर दूर रहने से याद रखें आप अपराध को अप्रत्यक्ष तौर पर बढ़ावा देने के साथ उनसे डरे हुए हैं। मंदिर हसौद वाली घटना दोहराई न जाए सामूहिक क्या, सिंगल दुष्कर्म भी ना हो, समाज को आगे आना होगा। जो अत्याधुनिकी करण के दौर में सिमटता जा रहा है। जिसका अप्रत्यक्ष लाभ आपराधिक तत्व उठाते हैं। घटना निंदनीय है, कड़ी सजा मिलनी चाहिए।