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बड़ी खबर : मणिपुर हिंसा की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने बनाई कमेटी, हाईकोर्ट की तीन पूर्व जजों को किया शामिल

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने हिंसा मामले से जुड़े मुद्दों की पड़ताल के लिए हाईकोर्ट के तीन पूर्व जजों की कमेटी बनाई है। जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस पद से रिटायर जस्टिस गीता मित्तल, जस्टिस आशा मेनन और जस्टिस शालिनी पनसाकर जोशी की तीन सदस्यीय न्यायिक जांच कमेटी सुप्रीम कोर्ट ने बनाई है।

मणिपुर हिंसा मामले में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई।सुप्रीम कोर्ट ने हिंसा मामले से जुड़े मुद्दों की पड़ताल और मानवीय सुविधाओं के लिए हाईकोर्ट के तीन पूर्व जजों की कमेटी बनाई है। ये कमेटी सीबीआई और पुलिस जांच से अलग मामलों को देखेगी। ये समिति महिलाओं से जुड़े अपराधों और अन्य मानवीय मामलों व सुविधा की निगरानी करेंगी।

कमेटी में इन्हे किया गया शामिल

जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस पद से रिटायर जस्टिस गीता मित्तल, जस्टिस आशा मेनन और जस्टिस शालिनी पनसाकर जोशी की तीन सदस्यीय न्यायिक जांच कमेटी सुप्रीम कोर्ट ने बनाई।

अटार्नी जनरल ने कही ये बात

सोमवार को हुई सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि, ‘हम जमीनी स्थिति को समझने की कोशिश कर रहे हैं। हम सभी शांति की बहाली चाहते हैं। कोई भी छोटी चूक बहुत गहरा असर डाल सकती है। इस दौरान वृंदा ग्रोवर ने कहा कि इन मामलों के अलावा अब तक जिन मामलों में अब तक कोई एक्शन नहीं लिया गया उनमें भी जिम्मेदारी तय होनी चाहिए।

कार्रवाई और कार्यवाही को दो हिस्सों में बांटें

वहीं, इंदिरा जयसिंह ने कहा कि हमें दो हिस्सों में कार्रवाई और कार्यवाही को बांट लेना चाहिए। अव्वल तो जो अपराध हुए हैं उनकी उचित जांच और दूसरा भविष्य में ऐसा कुछ न हो इसके लिए एहतियाती उपाय किए जाएं। जांच के लिए कोर्ट रिटायर्ड जज की अगुआई में आयोग बनाए या फिर अपनी निगरानी में जांच कराए।

सभी हरसंभव संसाधनों और स्रोतों का इस्तेमाल करें। स्थानीय लोग, सक्षम नागरिक संगठन, सामाजिक कार्यकर्ता यानी एक्टिविस्ट, पीड़ित लोगों में से कुछ को इसमें शामिल किया जा सकता है। जांच के लिए ये जरूरी है। मणिपुर सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल ने कहा कि अपराधों की जांच के लिए 6 जिलों के लिए वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को शामिल करते हुए 6 SIT का गठन किया है।
हिंसा, अशांति और नफरत के दौरान महिलाओं के खिलाफ अपराधों के लिए महिला पुलिस अधिकारियों की टीम बनाई जा रही है।

धारा 166 ए के तहत कार्रवाई की मांग

याचिकाकर्ताओं की वकील वृंदा ग्रोवर ने कहा कि आईपीसी की धारा 166ए के तहत भी कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई है जो कार्रवाई न करने के लिए अधिकारियों को जवाबदेह बनाती है।

इस दौरान इंदिरा जयसिंह ने कहा कि निर्भया कांड के दौरान पता चला था कि पुलिस अपना काम ठीक से नहीं निभा रही थी। इसलिए 2012 के संशोधन द्वारा आईपीसी में 166ए लाया गया। 166ए कहता है कि जो पुलिस अधिकारी अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करेंगे उन्हें दंडित किया जाएगा। हम इस धारा को लागू करने की मांग कर रहे हैं।

बीते मंगलवार को कोर्ट में हुई थी मणिपुर मामले की जांच

मणिपुर में हो रहीं हिंसा को लेकर इससे पहले मंगलवार को भी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई थी। सीजेआई ने इस दौरान हाईकोर्ट के पूर्व जजों को कमेटी बनाने की बात कही थी. जो नुकसान, मुआवजे, पीड़ितों के 162 और 164 के बयान दर्ज करने की तारीखों आदि का ब्योरे लेगी। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने कहा था कि ‘हम ये भी देखेंगे कि सीबीआई को कौन कौन से मुकदमे-एफआईआर जांच के लिए सौंपे जाएं। सरकार इस बात का हल सोच कर हमारे पास आए।

कमेटी का दायरा होगा तय

सीजेआई ने कहा कि हम इस कमेटी का दायरा तय करेंगे, जो वहां जाकर राहत और पुनर्वास का जायजा लेगी। हम इस तथ्य के बारे में स्पष्ट हैं कि 6500 FIR की जांच सीबीआई को सौंपना असंभव है। वहीं, राज्य पुलिस को इसका जिम्मा नहीं सौंपा जा सकता। तो हम क्या करें? उस पर विचार करना होगा। सीजेआई ने कहा कि मणिपुर में मरने वाले सभी हमारे अपने थे। सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि अभी भी कई शव मोर्चरी में हैं जिनके बारे में कोई भी दावेदार नहीं आया है।

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