BIHAR NEWS : सुको ने पूछा – आनंद मोहन की रिहाई के लिए क्यों बदले नियम ? बिहार सरकार ने कहा – भेदभाव मिटाने के लिए…

Anand-mohan

नई दिल्ली। गैंगस्टर से नेता बने आनंद मोहन सिंह की समयपूर्व रिहाई को चुनौती देने वाली याचिका के जवाब में बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि पीड़ित के स्‍टेटस के आधार पर भेदभाव को दूर करने के लिए नियमों में बदलाव किए गए थे। आईएएस अधिकारी जी. कृष्णैया की विधवा ने उच्‍चतम न्‍यायालय में यह याचिका दायर की थी जिनकी हत्‍या के आरोप में आनंद मोहन जेल में था।

शीर्ष अदालत के समक्ष दायर अपने जवाबी हलफनामे में राज्‍य सरकार ने कहा, “आम जनता या लोक सेवक की हत्या की सज़ा एक समान है। एक ओर, आम जनता की हत्या के दोषी आजीवन कारावास की सजा पाने वाले कैदी को समय से पहले रिहाई के लिए पात्र माना जाता है और दूसरी तरफ किसी लोक सेवक की हत्या के दोषी आजीवन कारावास की सजा पाने वाले कैदी को समय से पहले रिहाई के लिए विचार किए जाने के लिए पात्र नहीं माना जाता है। पीड़ित की सामाजिक स्थिति के आधार पर भेदभाव को दूर करने का प्रयास किया गया है।”

इसमें कहा गया है, “राज्य दोषियों को छूट देने को विनियमित करने के लिए छूट नीति बनाता है। ऐसी कोई भी नीति दोषी को केवल कुछ लाभ और अधिकार प्रदान करती है। यह पीड़ित का कोई अधिकार नहीं छीनती है। इसलिए, कोई पीड़ित अनुच्छेद 32 के तहत याचिका दायर करने के मौलिक अधिकारों के उल्लंघन का दावा नहीं कर सकता है।”

गौरतलब है कि बिहार जेल नियमावली में संशोधन के बाद आनंद मोहन सिंह को सहरसा जेल से रिहा कर दिया गया था।

इससे पहले, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जे.के. माहेश्वरी की पीठ ने जी कृष्णैया की पत्नी उमा कृष्णैया द्वारा दायर याचिका पर नोटिस जारी किया था। इसने बिहार सरकार को पूर्व सांसद को दी गई छूट के संबंध में मूल रिकॉर्ड पेश करने का निर्देश दिया।

याचिका में कहा गया है कि आनंद मोहन सिंह को दी गई आजीवन कारावास की सजा का मतलब उनके पूरे जीवन के लिए जेल में रहना है, और आरोप लगाया कि बिहार सरकार ने बिहार जेल मैनुअल, 2012 में 10 अप्रैल 2023 के संशोधन के माध्यम से पूर्वव्यापी प्रभाव से संशोधन किया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि दोषी को सजा माफी का लाभ मिल सके।

गोपालगंज के तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट कृष्णैया को 1994 में भीड़ ने उस समय पीट-पीटकर मार डाला था, जब उनके वाहन ने गैंगस्टर छोटन शुक्ला के अंतिम संस्कार के जुलूस से आगे निकलने की कोशिश की थी। आरोप है कि भीड़ को आनंद मोहन सिंह ने उकसाया था।

 

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