छात्र नेताओं में मायूसी घिरी

रायपुर। महाविद्यालयों विश्व विद्यालयों में इस बार भी छात्र संघ चुनाव प्रत्यक्ष न होकर प्रावीण्यता आधार पर होंगे। शासन के इस निर्णय से प्रत्यक्ष चुनाव की आस लिए छात्र नेताओं, विद्यार्थियों में मायूसी व्याप्त हैं।
गौरतलब हो कि शासन नए शिक्षा सत्र 2023-24 में भी महाविद्यालय-विश्वविद्यालयों में छात्र संघ चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली (मतदान) से ना कराकर प्रावीण्यता आधार (मेरिट बेस) कराएगा। अगले सत्र 24-25 में प्रत्यक्ष प्रणाली से छात्र संघ चुनाव होंगे। तब तक छात्र नेताओं, विद्यार्थियों को लंबा इंतजार करना पड़ेगा।
महाविद्यालयीन-विश्वविद्यालयीन सूत्रों के मुताबिक तमाम उच्च शिक्षण संस्थाओं के छात्र नेता, विद्यार्थी उक्त खबर से आहत हैं। राज्य में चुनावी वर्ष है। लिहाजा विद्यार्थियों ने उम्मीद लगा रखी थी कि इस बार छात्र संघ के चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली पर होंगे। जिससे उन्हें (छात्र नेताओं) अपनी नेतृत्व क्षमता एवं ताकत दिखाने का सुनहरा मौका मिलता। दोनों राजनैतिक दलों के छात्र संगठनों के पदाधिकारी पूर्व नेता उम्मीद से थे कि अगर प्रत्यक्ष चुनाव होते, उन्हें जीत मिलती तो वे विधानसभा चुनाव हेतु पार्टी उम्मीदवार के तौर पर दावेदारी जताते। खासकर विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव जीतने वाले। पर ऐसा कुछ होने की उम्मीदें टूट गई। सपने बिखर गए। जब शासन ने कह दिया कि चुनाव नहीं होंगे।स्वाभाविक है कि कथित छात्र नेताओं को भारी निराशा हुई है। पार्टी टिकट न भी देती तो भी पूछताछ तो होते रहती। जिससे विधानसभा चुनाव प्रचार-प्रसार के लिए संगठन- प्रबंधन उनकी पूछ-परख कर ध्यान रखता। पर अब कुछ नहीं बचा। अंदर की बात ये भी है कि पहले जहां उनके (छात्र नेताओं) एक आवाज देने पर सैकड़ों- हजारों विद्यार्थी कैंपस छोड़ सड़क पर निकल पड़ते थे। यह भी बताया जाता है कि मेरिट बेस (अप्रत्यक्ष) चयनित, मनोनीत प्रत्याशी असल में छात्र संघ के दायित्व निर्वहन, जिम्मेदारी से बचते हैं। दूसरे अर्थों में साफ शब्दों में कहें तो भागते हैं। थोपे गए (भले मेरिट बेस) छात्र नेता- दायित्व निर्वहन से साल भर हिचकिचाते हैं। भले वे मेरोटोरियस हो पर नेतागिरी या पदाधिकारी के तौर पर हर बार पीछे रह जाते हैं। यानी विद्यार्थियों के लिए एक आवाज नहीं उठाते। उनका मुंह सिल जाता है। आम विद्यार्थी उसे कोसता रहता हैं।