आवारा पशु- कांजी हाउस वास्ते टैक्स वसूले, निगम
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नीलामी गोद प्रथा शुरू करें, या पूरा शहर वहन करें, प्रदेशभर की समस्या, सन्यासी पारा जैसी दूसरी तीसरी खबर कभी भी आ सकती है।
रायपुर। राजधानी समेत समूचे प्रदेश के अंदर चौक- चौराहो, मुख्य-पूरक मार्गें, गलियों में आवारा जानवर घूमते रहते हैं। संबंधित पालिका निकाय एक-दो माह में एकाध बार कार्यवाही करते हैं। फिर ज्यों की त्यों स्थिति। नतीजन सन्यासी पारा, रायपुर में एक सांड के हमले से बुजुर्ग महिला मारी गई। अब उसके परिवार को जुर्माना दे देने से जान तो वापस आने से रही। चाहे जुर्माना शासन दे या पशु संबंधित मालिक।
ई. ग्लोबल न्यूज़ इन ने माह भर पूर्व अपनी एक रिपोर्ट में शासन-प्रशासन से आग्रह किया था कि राजधानी के चारों ओर रिक्त शासकीय जमीनों पर कांजी हाउस बनाया जाए। जहां आवारा जानवरों को रखा जाए। साथ ही सुझाव रखा था कि प्रत्येक जानवर का खर्च वहन करने उन्हें नीलामी बोली से गोद दिया जाए संबंधित व्यक्ति को यदि चाहे तो बदले में दूध, दही, घी, पनीर आदि दें। अगर नीलामी प्रथा कामयाब न हो तो पूरा शहर 20-30 रूपए प्रति माह प्रत्येक परिवार टैक्स दें। जिसकी प्राप्त (आय) से कांजी हाउस का खर्च निकले।
आमतौर पर औसत दर्जे की आय वर्ग वाले गाय -बैल तो पाल लेते हैं। पर उनका भरण-पोषण नहीं कर पाते। नतीजन खुला छोड़ देते हैं। जो राजधानी समेत प्रदेश के अन्य शहरों के अंदर सड़कों-चौराहों, गलियों में भूखे भटकते रहते हैं। ये बेचारे यानी बिना चारे के जानवर झिल्ली, कचरा या फेंका हुआ-दिया हुआ बासी भोजन खाते हैं इन्हीं के लिए वे गलियों में घर-घर मुंह मारते रहते हैं। सब्जी मंडियों के आसपास, या अंदर डेरा लगाए रहते हैं।
ई. ग्लोबल न्यूज़ इन ने वॉच किया है कि आवारा जानवर पूरी लाइफ में एक चौथाई हिस्सा का समय भी हरा चारा नहीं खा पाते। या जान नहीं पाते। वजह वे मैदान- जंगल, झाड़ी, बाड़ी, खेत नहीं बल्कि कांक्रीट के जंगल के बाशिंदे जो जबरिया बना दिए जाते हैं। पैदाईश से मौत तक क्रांकीट के जंगल में रहते हैं। वक्त गुजारते हैं। चारागाह क्या होता हैं उन्हें पता नहीं होता। जाने क्यूं इन्हें देख मानवता आंखें फेर लेती है। ऐसे तो समय आने पर साल में दो बार पूजा-पाठ कर पकवान, भोजन कर सेवई बांध (एक प्रकार की माला,हार) अपने को धन्य पाते हैं।
सन्यासी पारा की वह बुजुर्ग महिला जाने कितने बार आवारा पशुओं को रोटी- चांवल, दाल खिलाती रही होगी। पर उन्हीं के हमले से जान गंवा बैठी। दोष उसका नहीं -दोष पंचायत, पालिका, निगम का है। राजधानी ही क्यों अन्य शहरों के बाहर भी खाली शासकीय भूमि पर बड़ी जगह में कांजी हाउस बनाकर इन आवारा जानवरों को रखा जाए। जहां मैदानों पर घास हो। खरपतवार हो। पानी पीने को हो। छांवदार शेड हों। इन सबका खर्च वहन करने गोद देने वाला सिस्टम शुरू किया जाए तो स्थिति कुछ सुधरे। नहीं तो सन्यासी पारा वाली दूसरी-तीसरी खबर कभी भी- कहीं से भी आ सकती है। भूखा आदमी जब अपराध करने मजबूर हो जाता है तो फिर भूखे प्यासे जानवर से आप सीधा-साधा होने की उम्मीद कैसे क्यूंकर करते हैं। खाना पूर्ति नहीं व्यवस्था में बदलाव का समय हैं।