दुर्घटना का सबब बनने की सजा वनाश्रम … !

बूचड़खाना वाले उठा लेंगे .. !
रायपुर। राजधानी में सड़कों-चौराहों पर पकड़े गए आवारा मवेशियों के लिए कांजी हाउस, गोठान में जगह कम पड़ने से एवं मालिकों द्वारा जुर्माना अदा न करने की स्थिति में निगम प्रशासन नीलामी करेगा। अन्यथा पर जंगलों में छोड़ेगा।
निगम प्रशासन पिछले 4 दिनों से आवारा मवेशियों के खिलाफ धरपकड़ अभियान छेड़ रखा है। उसने टोल फ्री नंबर भी जारी करते हुए प्राप्त सूचना पर स्थल जाकर आवारा मवेशी पकड़ने की बात भी कही हैं।
उधर यह भी बताया है कि बहुत से मवेशियों के मालिक जुर्माना अदा करने छुड़ाने नहीं आ रहे हैं। उपरोक्त स्थिति में कांजी हाउस, व गोठान में जगह कम पड़ रही हैं। इसलिए सोचा जा रहा है कि आवारा मवेशियों को नीलाम कर दिया जाए। पर खरीदार नहीं मिलने पर वनों में ले जा छोड़ देंगे। ततसंबंध में वन विभाग से चर्चा कर रहे हैं।
वाह क्या सोच है ! क्या धरपकड़ से पहले पता नहीं था कि कांजी हाउस, गोठान की क्षमता क्या है। दूसरा उपरोक्त स्थिति का अंदाजा रखते हुए अन्यत्र खाली (रिक्त) गोठान, कांजी हाउस की वैकल्पिक व्यवस्था क्यों नहीं की गई। तीसरा ठीक है नीलाम कर देगे। पर सोचा है कि खरीदार मवेशी को कहां रखेगा- चारागाह कहां से लाएगा (शहर में)। वन विभाग से चर्चा करने का भी प्लान है। चलिए मान लेते हैं। आवारा, बेसहारा, मूक जानवर दर-दर की ठोकर खाकर वन पहुंचा दिया जाएगा। जहां उसे भरपूर हरा चारा-पानी, छांव प्राकृतिक माकूल माहौल मिल जाएगा। बहुत अच्छी सोच है। पर क्या आगे की सोची। शायद नहीं, रुक गए।
उपरोक्त स्थिति में बूचड़खाना के कसाई वनों से बड़ी आसानी से मवेशी उठाकर, हकाल कर ले जाएगे।वे चरवाहा बनकर, चारा फेंक कर पलक झपकते गाय- बैलों की फौज लें उड़ेगे। जहां हजारों में बेच-लाखों का धंधा करेंगे। मवेशी कत्लखाना से कटकर होटलों- ढाबों में बिकेंगे। वन में छोड़ने से उनकी मॉनिटरिंग संभव नहीं रहेगी। उल्टा मवेशी चोर पकड़े जाने पर गौ रक्षकों के निशाने पर आएगे। संघर्ष पैदा होगा।
बेहतर होगा नीलामी हो या गोद दें दें। फिर निगम राज्य सरकार से शहर के चारों रिक्त पड़ी शासकीय की जमीन पर गोठान बना जहां मवेशी रखे जाए। गोद लेने वाले हर माह निश्चित रकम जमा करेगे। बदले में उन्हें गौ उत्पाद दूध, दही, घी, पनीर, मठा आदि दिया जाए। अंत में जाने अनजाने में मूक मवेशी शहरों, सड़कों पर दुर्घटनाओं के लिए कारक ठहराए जाते हैं। इसके चलते उन्हें शहर बदर की सजा खुला वनाश्रम भेज रहें। जान की हिफाजत कौन करेगा ? वही जाने अनजाने में कोई वाहन चालक किसी दुर्घटना का कारक बनता है तो उसे दो तीन माह बाद छोड़ देते हैं। क्यों नहीं कड़ी सजा देने के साथ जिला बदर करें।