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लैंड फॉर जॉब मामले में लालू को झटका, मुकदमे पर रोक लगाने के अनुरोध वाली याचिका खारिज

यह मामला 2004 से 2009 के बीच लालू प्रसाद के रेल मंत्री के तौर पर कार्यकाल के दौरान मध्यप्रदेश के जबलपुर स्थित पश्चिम मध्य रेलवे जोन में ग्रुप डी की भर्तियों से जुड़ा हुआ है।

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने ने पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें नौकरी के बदले जमीन ‘घोटाले’ में सीबीआई द्वारा दर्ज भ्रष्टाचार के मामले में निचली अदालत की कार्यवाही पर रोक लगाने की मांग की गई थी। जस्टिस रविंदर डुडेजा ने कहा कि निचली अदालत की कार्यवाही पर रोक लगाने के लिए कोई बाध्यकारी कारण नहीं हैं। इस बीच, अदालत ने मामले में सीबीआई द्वारा दर्ज की गई FIR को रद्द करने का अनुरोध करने संबंधी लालू प्रसाद की याचिका पर सीबीआई को नोटिस जारी किया और छह सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा। अदालत ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 12 अगस्त की तारीख तय की है।

अदालत ने क्या टिप्पणी की?

अदालत ने 29 मई को सुनाए गए (जो 31 मई को उपलब्ध हुआ) अपने आदेश में कहा, “वर्तमान मामले को आरोपों पर बहस के लिए विशेष न्यायाधीश के समक्ष सूचीबद्ध किया गया है। मौजूदा याचिका के लंबित होने के बावजूद, याचिकाकर्ता को आरोपों पर विचार के चरण में निचली अदालत के समक्ष अपने सभी तर्क रखने की स्वतंत्रता होगी। अदालत ने कहा, “यह याचिकाकर्ता को अपनी बात रखने और उस पर निर्णय लेने का एक अतिरिक्त अवसर होगा। इस प्रकार, मुझे निचली अदालत की कार्यवाही पर रोक लगाने के लिए कोई बाध्यकारी कारण नहीं दिखता। इसलिए स्थगन के लिए दायर आवेदन को खारिज किया जाता है।”

अधिकारियों ने कहा कि यह मामला 2004 से 2009 के बीच लालू प्रसाद के रेल मंत्री के तौर पर कार्यकाल के दौरान मध्यप्रदेश के जबलपुर स्थित पश्चिम मध्य रेलवे जोन में ग्रुप डी की भर्तियों से जुड़ा हुआ है। आरोप है कि इन भर्तियों के बदले लालू प्रसाद के परिवार के सदस्यों या सहयोगियों के नाम पर भूखंड हस्तांतरित किए गए थे।

क्या है लैंड फॉर जॉब केस?

लैंड फॉर जॉब केस 2004 से 2009 के बीच का है। उस समय लालू प्रसाद यादव यूपीए-1 सरकार में रेल मंत्री थे। आरोप है कि इस दौरान भारतीय रेलवे के विभिन्न जोनों में ग्रुप-डी पदों पर भर्तियों में अनियमितताएं हुईं। सीबीआई और ईडी के मुताबिक लालू यादव और उनके परिवार ने रेलवे में नौकरी देने के बदले लोगों से कम कीमत पर या मुफ्त में जमीनें लीं। इन जमीनों को लालू के परिवार के सदस्यों (राबड़ी देवी, तेजस्वी यादव, तेज प्रताप यादव, मीसा भारती, हेमा यादव आदि) और उनसे जुड़ी कंपनी, एके इन्फोसिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड, के नाम पर ट्रांसफर किया गया।

सीबीआई का दावा है कि रेलवे में इन भर्तियों के लिए कोई विज्ञापन या सार्वजनिक नोटिस जारी नहीं किया गया, और पटना के कुछ लोगों को मुंबई, जबलपुर, कोलकाता, जयपुर और हाजीपुर जैसे जोनों में सब्स्टीट्यूट के तौर पर नियुक्त किया गया, जिन्हें बाद में जमीन सौदों के बाद नियमित किया गया। कुल मिलाकर, लालू परिवार पर लगभग 1.05 लाख वर्ग फीट जमीन हासिल करने और 600 करोड़ रुपये की मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप है। लालू परिवार का कहना है कि यह मामला राजनीति से प्रेरित है और इसमें कोई ठोस सबूत नहीं हैं।

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