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जज्बा -जूनून को रोक नहीं पाई गरीबी, मजदूर की बेटी छत्तीसगढ़ जूनियर बास्केटबॉल में चयनित

छत्तीसगढ़ जूनियर बास्केटबॉल

छत्तीसगढ़ जूनियर बास्केटबॉल

बलरामपुर, रामानुजगंज के छोटे से गांव जोकापाठ की सीमा छत्तीसगढ़ जूनियर बास्केटबॉल राष्ट्रीय स्पर्धा हेतु चयनित

रायपुर न्यूज : लक्ष्य के प्रति जज्बा- जुनून हो तो बाधा भी नहीं रोक पाती, ऊपर वाला कहीं न कहीं से मददगार भेज देता है। बलरामपुर, रामानुजगंज के छोटे से गांव जोकापाठ की सीमा आर्थिक परेशानियों के बावजूद आज बास्केटबॉल की राष्ट्रीय प्रतियोगिता हेतु छत्तीसगढ़ की जूनियर बास्केटबॉल टीम में जगह बना पाई है। मददगार के रूप में उसके कोच राजेश प्रताप सिंह का हाथ हैं, तो वही खेल के प्रति उसकी समर्पण भावना।

चचेरी बहन को बास्केटबॉल खेलते देखा और उससे प्रेरणा ली

सीमा नगेशिया 13 बरस की है। जिसने चचेरी बहन को बास्केटबॉल खेलते देखा तो उसी से प्रेरणा लेकर इस खेल में उतरी। 3 वर्ष पूर्व उसने बास्केटबॉल खेलना शुरू किया। चचेरी बहन उसे यथासंभव सिखाती थी। परिवार गरीब है, खेलने के लिए उसने माता-पिता से जूते की मांग की। परंतु माता-पिता आर्थिक तौर पर सक्षम नहीं थे। पिता राजमिस्त्री तो माता- मजदूरी करती है। उन्हीं से घर जैसे-तैसे चलता है। सीमा ने बगैर जूते के खेल जारी रखा। गांव से निकल अंबिकापुर खेलने पहुंची तो उससे प्रभावित होकर कोच राजेश प्रताप सिंह ने जूते और अन्य खेल सामग्री खुद खरीद कर सीमा को उपलब्ध कराई। जिसके बाद कोच राजेश सिंह के गाइडेंस में कड़ी मेहनत करने लगी। इस बीच घर पर आर्थिक संकट छाया रहा। कुछ कर गुजरने का जज्बा लिए सीमा ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उसका चयन राष्ट्रीय स्पर्धा हेतु जयपुर राजस्थान जाने वाली जूनियर बास्केटबॉल छत्तीसगढ़ टीम में हुआ है। बकौल कोच सिंह कहते हैं कि अच्छे खिलाड़ी की मदद कर बहुत खुशी मिलती है। खिलाड़ियों की मदद करने का प्रयास हैं कि सरगुजा के बच्चे खेलों के जरिए आगे आकर प्रस्तुति दें और खूब आगे बढ़े और खेल में करियर बनाए।

कोच राजेश सिंह ने सीमा के अंदर छिपी प्रतिभा को निखारा

बहरहाल अभावों के मध्य अपने जज्बे, जुनून अच्छे कोच की मदद से सीमा ने खुद में छिपी प्रतिभा को बाहर निकाला। जिसे कोच राजेश सिंह ने देखा, परखा महसूस किया। यही पर राजेश ने उसकी मदद की जिसकी सीमा को दरकार थी। जूते समेत अन्य खेल सामग्री पाकर सीमा ने कड़ी मेहनत से टीम में जगह बना ली। आज उस पर माता-पिता, कोच समेत गांव जोकापाठ वालो को भी गर्व हो रहा है। पूत के पांव पलने में नजर आ जाते हैं, पहचानने वाले को पारखी होना चाहिए। राजेश सिंह ने अपनी खोज की सहायता करते हुए योग्यता को मुकाम तक पहुंचा दिया। दोनों का साझा प्रयास प्रशंसनीय है।

(लेखक डा. विजय )

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