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Rabindranath Tagore Jayanti 2024 : रबीन्द्रनाथ टैगोर जी की 163वीं जयंती आज, गीतांजलि के लिए मिला था नोबेल पुरस्कार

Rabindranath Tagore Jayanti 2024

Rabindranath Tagore Jayanti 2024 : भारत के राष्ट्रगान के रचयिता रबीन्द्रनाथ टैगोर जी की आज 163वीं जयंती आज है। टैगोर जी को उनके काव्य रचना गीतांजलि के लिए नोबेल पुरुस्कार भी मिला था।

Rabindranath Tagore Jayanti 2024 : हर साल 7 मई को रवींद्रनाथ टैगोर जी की जयंती मनाई जाती है। रवींद्रनाथ टैगोर को उनकी रचनाओं के लिए लोग गुरुदेव कहकर संबोधित करते हैं। विश्वविख्यात कवि, लेखक, नाटककार, संगीतकार, दार्शनिक, समाज सुधारक और चित्रकार के तौर पर मशहूर रवींद्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई, सन 1861 को पश्चिम बंगाल के कोलकाता स्थित जोड़ासांको में हुआ था। उनके पिता का नाम देवेन्द्रनाथ टैगोर था और माता जी का नाम शारदा देवी था। गुरुदेव यानी रवींद्रनाथ टैगोर बचपन से ही बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे, उन्होंने अपने जीवनकाल में कई रचनाएं लिखीं, जिनमें गीतांजलि प्रमुख है। इस रचना के लिए उन्हें सन 1913 में साहित्य के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

साहित्य के क्षेत्र में दिया योगदान
रवींद्रनाथ टैगोर ने कई कृतियां लिखीं, जिनमें कविताएं, लघु कथाएं, उपन्यास काफी लोकप्रिय हैं। उन्होंने अपनी रचनाओं में सामाजिक बुराइयों जैसे बाल विवाह और दहेज प्रथा को भी उजागर किया। उन्होंने इतिहास और आध्यात्म से जुड़ी कई किताबें भी लिखी थीं। रवींद्रनाथ टैगोर ने अपने साहित्यिक रचना में भारतीय संस्कृति से भी रू-ब-रू कराया। उन्होंने लेखन का शुरुआत अपनी भाषा बंगाली से की, लेकिन बाद में उनमें से कई का अंग्रेजी में भी अनुवाद किया। उनकी पहली रचना ’भिखारिणी’ नामक लघुकथा थी। उन्होंने अपनी लेखनी में सामाजिक मुद्दों और आम आदमी की समस्याओं को भी उजागर किया। उनकी कुछ सबसे प्रसिद्ध रचनाएं – काबुलीवाला, गोरा, नौकाडुबी, चतुरंगा, पोस्ट मास्टर, चोखेर बाली, घाटेर कथा आदि हैं।

संगीत प्रेमी थे टैगोर
विलक्षण प्रतिभा के धनी होने के साथ-साथ रवींद्रनाथ टैगोर संगीत प्रेमी भी थे. उन्होंने अपने जीवन में दो हजार से भी ज्यादा गीतों की रचना की और उन्हें भारत व बांग्लादेश के लिए राष्ट्रगान लिखने का गौरव भी प्राप्त है. रवींद्रनाथ टैगोर जयंती के इस खास अवसर पर आप इन शानदार विशेज, वॉट्सऐप स्टिकर्स, जीआईएफ ग्रीटिंग्स, एचडी इमेजेस और वॉलपेपर्स के जरिए अपने प्रियजनों को शुभकामनाएं दे सकते हैं.

83 वर्ष की उम्र में दुनिया को कहा अलविदा
इसमें कोई शक नहीं है कि उन्होंने बंगाली साहित्य के आयाम को बदल कर रख दिया। कई देशों ने महान लेखक को श्रद्धांजलि देने के लिए उनकी प्रतिमाएं भी बनाई हैं। लगभग पांच संग्रहालय टैगोर को समर्पित हैं, जिनमें से तीन भारत में और शेष दो बांग्लादेश में स्थित हैं।
उनका आखिरी समय काफी तकलीफ में बीता और 1937 में वे कोमा में चले गए। लंबी पीड़ा और दर्द के बाद 7 अगस्त 1941 को जोरासांको हवेली (कोलकाता) में उनका निधन हो गया। यह वही जगह थी जहां उनका बचपन बीता था।

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