केंद्र पहले भारतीय भाषाओं में पुस्तकों के रूप में अध्ययन सामग्री उपलब्ध कराए

रायपुर न्यूज : केंद्र सरकार ने स्कूलों और उच्च शिक्षा संस्थानों को अगले तीन वर्षों के भीतर सभी पाठ्यक्रमों के लिए भारतीय भाषाओं में अध्ययन सामग्री डिजिटल रूप में उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है। लेकिन बेहतर होगा कि अध्ययन सामग्री को पहले पुस्तक के रूप में मुद्रित (प्रिंट) रूप में उपलब्ध कराया जाए।
उपरोक्त निर्देश हर स्तर पर शिक्षा में बहु भाषावाद को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) की सिफारिशों के तहत दिए गए हैं। ताकि विद्यार्थियों को अपनी भाषा में अध्ययन करने का अवसर मिल सके। इसमें कहा गया है कि अपनी भाषा में पढ़ाई करने से छात्रों को बिना किसी बाधा के नवोन्वेषी (नवप्रवर्तन) सोचने का स्वाभाविक अवसर मिल सकता है। आगे कहा गया है कि स्थानीय भाषाओं में सामग्री उपलब्ध कराने से 2047 तक भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने में मदद मिलेगी।
देश एवं विद्यार्थियों के हितार्थ उपरोक्त पहल अच्छी है। अपनी भाषा में अध्ययन सामग्री मिलने पर विद्यार्थी तेजी से एवं अच्छे से नवोन्वेषी (नवप्रवर्तन) ढंग से सोच पाएगा। उसकी प्रतिभा निखरेगी साथ ही देश के वास्ते योगदान बढ़ेगा। जिसका सफल विकसित भारत के तौर पर सामने आएगा।
शिक्षा मंत्रालय के पहल प्रशंसनीय है। परंतु राष्ट्रीय शिक्षा नीति आयोग ने स्पष्ट नहीं किया है कि संबंधित विषयों की सामग्री पहले किताबों की शक्ल ले पाएगी या नहीं। या केवल डिजिटल रूप में उपलब्ध करा इतिश्री कर ली जाएगी। अगर किताबों-पुस्तकों के रूप में स्थानीय या अपनी भाषाओं में विद्यार्थियों को सामग्री उपलब्ध नहीं कराई जाती लक्ष्य अधूरा रह सकता है। वजह पुस्तकों से सामग्री पढ़कर विद्यार्थी ज्यादा अच्छे से विषय वस्तु को समझता है न कि डिजिटल तरीके से डिजिटल रूप में विद्यार्थी जरूरत की चीजे शार्टरूप में पढ़ेगा। क्योंकि वह बहुत ज्यादा देर या पर्याप्त रूप से शिक्षा संबंधित सामग्री हेतु डिजिटल में अध्ययन नही करेगा या कि नही कर पाएगा। जबकि पुस्तकों की शक्ल में होने पर विद्यार्थी अपनी सहूलियतनुसार घर पर अध्ययन कर अन्यों से विषय-वस्तु पर चर्चा कर सकेगा। फिर हर ग्रामीण, कस्बाई विद्यार्थी के पास डिजिटल सुविधा नहीं रहती है।
पुस्तकों से गहन अध्ययन करने पर ज्ञान तो बढ़ेगा ही सोचने- विचारने की स्वाभाविक क्षमता बढ़ेगी। कदाचित ऐसा होने का सीधा लाभ विद्यार्थी एवं देश को होगा स्वामी विवेकानंद एवं महात्मा गांधी ने भी कहा था कि स्कूली शिक्षा मातृभाषा में दी जानी चाहिए। केवल डिजिटल तौर पर सामग्री उपलब्ध रहने पर विद्यार्थी की लेखन क्षमता उजागर नहीं हो सकती। अगर ऐसा होता है तो केंद्र की नीति मूर्तरूप नहीं ले पाएगी।
ग्रामीण और कस्बे इलाकों में अक्सर इंटरनेट सुविधा में दिक्कत आती है। सर्वर डाउन रहने के कारण उक्त क्षेत्र के अधिकांश लोग अध्ययन सामग्री से वंचित हो जायेंगे। वर्तमान में लोगों की आय इतनी नहीं है कि उपरोक्त क्षेत्रों के लोग इंटरनेट पर खर्च कर सकें।
यहां यह स्पष्ट करना जरूरी होगा कि हम डिजिटली करण के खिलाफ नहीं हैं। यह एक अच्छी पहल है। लेकिन उससे पहले इसका पुस्तक का रूप लेना बहुत जरूरी है, ताकि लेखक-लेखन और साहित्य का भी विकास हो सके। अन्यथा यह ज्ञात है कि आधुनिकीकरण, तकनीकी युग और वर्तमान में कंप्यूटर युग के कारण साहित्य को बहुत नुकसान हुआ है। जिसके कारण युवा पीढ़ी हमारी प्रेरक संस्कृति से अवगत नहीं हो सकी। जिसका सीधा असर समाज की आबोहवा पर पड़ रहा है। देश की समृद्धि और विकास के लिए भाषा, साहित्य, संस्कृति और धर्म का विकास करना आवश्यक है। इसे आत्मसात किये बिना विद्यार्थी देश और परिवार को अपना मान लेता है।