फार्मा उद्योगों को टैक्स से मिलेगी राहत, 25 प्रतिशत सस्ती होंगी दवाएं

नई दिल्ली। इस समय देश का दवा उद्योग घरेलू और वैश्विक मांग की पूर्ति में तेजी से आगे बढ़ता दिखाई दे रहा है। दवा उद्योग की वैश्विक शृंखला बाधित होने से भारत की फार्मा कंपनियों को दुनिया के कोने-कोने से विभिन्न दवाइयों के आदेश लगातार मिल रहे हैं। बता दें कि एशिया के सबसे बड़े फार्मा हब बीबीएन (बद्दी-बरोटीवाला-नालागढ़) में कई दवाओं का उत्पादन होता है।

25 प्रतिशत सस्ती होंगी दवाएं
दवाओं के निर्माण में प्रयुक्त होने वाले एपीआई (एक्टिव फार्मास्युटिकल इनग्रेडिएंट्स) यानी कच्चे माल के लिए इन उद्योगों को चीन पर निर्भर रहना पड़ता है। अब देश में 38 एपीआइ का उत्पादन शुरू होने से दवाओं की लागत में कमी आएगी। इससे दवाओं के दाम में 25 प्रतिशत तक कमी होगी।

एक वर्ष में प्रदेश के फार्मा उद्योग करीब 50 हजार करोड़ रुपये की दवाओं का उत्पादन करते हैं, जो देश में बन रही कुल दवाओं का 25 प्रतिशत है। वर्तमान में 90 प्रतिशत एपीआइ चीन से ही खरीदा जा रहा है। एपीआइ के दाम के अलावा फार्मा उद्योगों से एंटी डंपिंग व इम्पोर्ट ड्यूटी भी ली जा रही है। ये दोनों टैक्स 20 से 25 प्रतिशत बनते हैं। देश में ही एपीआइ मिलने से फार्मा उद्योगों को ये दोनों टैक्स नहीं देने होंगे।

 

दवा उद्योग के विशेषज्ञों के मुताबिक इस समय जो भारतीय दवा उद्योग करीब पचास अरब डालर के स्तर पर है, वह 2030 तक एक सौ तीस अरब डालर और 2047 तक करीब साढ़े चार सौ अरब डालर पहुंचने की संभावनाएं रखता है। यह क्षेत्र सरकार के ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम का अगुआ बन सकता है।

फार्मा उद्योगों को टैक्स से मिलेगी राहत
कोरोना काल में चीन ने एपीआइ के दाम में 50 से 100 प्रतिशत तक वृद्धि कर दी थी। इससे उत्पादन लागत बढ़ गई, जिसका असर दवा की कीमतों पर पड़ा। लेकिन, अब देश में ही एपीआइ तैयार होने से दवा उद्योग के साथ लोगों को भी लाभ मिलेगा। हिमाचल प्रदेश में कुल 650 फार्मा उद्योग हैं, जिनमें से 350 उद्योग सोलन जिला के बद्दी-बरोटीवाला-नालागढ़ में स्थापित हैं।

 

 

 

 

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