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गणेश पंडाल अंतिम रूप लेने लगे, युद्ध स्तर पर कार्य

समितियाें के मध्य प्रतिस्पर्धाएं

रायपुर। गणेश चतुर्थी पर तमाम सार्वजनिक गणेशोत्सव समितियाें के पंडाल काम युद्ध रफ्तार पर चल रहा है। निर्माण में जुटी टीम वही आसपास रहकर रात- दिन एक किए हुए हैं।

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बड़े पंडाल खड़ा करना आसान कार्य नहीं होता। इसके लिए दक्ष श्रमिक, वर्कर एवं कलाकार तीनों लगते हैं। इस काम के लिए ज्यादातर टीमें बंगाल से आती हैं। एक टीम में 12 से 18 तक भी सदस्य होते हैं। जो ठेका पर आती है। उनके रहने-ठहरने, भोजन-पानी की व्यवस्था अलग करनी पड़ती है। जिससे बृहद बड़ा पंडाल खर्च लाखों में बैठता है।

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करीब 10-12, 15 दिनों से ये लोग कार्य में जुटे हैं। जो अब अंतिम चरण में है। मंझोले आकार के पंडाल भी 8-10 दिन में तैयार हो पाते हैं। जहां फाइनल टच का काम चल रहा है। रही छोटे-मोटे पंडाल तो स्थानीय श्रमिक, कलाकार, वर्कर, खुद ही पंडाल खड़ा कर लेते हैं।

बहरहाल पंडालों के लिए बल्लियां, एंगल, बांस का किराया इस सीजन में उच्च स्तर पर पहुंच जाता है। शमियाना का दर भी बढ़ा हुआ है। इसी तरह प्लास्टिक कुर्सियां (मोल्डेड) का किराया 15-20 प्रतिशत बढ़ गया है। माइक, लाउडस्पीकर, लाइट डेकोरेशन दर भी ज्यादा है। बिजली बिल देना पड़ता है। गणेश चतुर्थी (स्थापना) समय तक पंडाल खड़ा करने, फाइनल टच देने, सजाने-धजाने का कार्य चलते रहेगा। समितियाें के सदस्य इस दौरान पारी-पारी से ड्यूटी करते हैं। समितियाें के मध्य प्रतिमाओं समेत पंडाल निर्माण को लेकर भी प्रतिस्पर्धाएं चलती है। जिसके जज (निर्णायक) एक तरह से दर्शक, भक्तजन होते हैं।

(लेखक डॉ. विजय)

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