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समर्थन मूल्य पर धान खरीदी शुरू, समितियाें की नियत में खोट- किसान

समर्थन मूल्य पर धान खरीदी

समर्थन मूल्य पर धान खरीदी

रायपुर न्यूज : प्रदेश में धान खरीदी जारी है। समर्थन मूल्य पर अब तक 63 लाख 22 हजार मीट्रिक टन धान खरीदी हुई है। 1 नवंबर से जारी खरीदी 31 जनवरी तक चलेगी। जबकि चालू विपणन वर्ष में 130 लाख मीट्रिक टन धान खरीदी का अनुमानित है। जो रफ्तार है उससे किसान चिंतित है कि माह के अंदर क्या सबका धान खरीदा जा सकेगा। उनका आरोप है कि समितियां जान-बूझकर देरी करती हैं। उनकी नियत में खोट है।

खाद्य अधिकारियों का कहना है कि धान विक्रय के लिए प्राथमिक-सहकारी समितियाें द्वारा ऑफलाइन, ऑनलाइन दोनों माध्यम से टोकन दिया जा रहा है। जबकि शिकायत है कि कुछ समितियां जानबूझकर टोकन देने में हीला-हवाला कर रही हैं। उनकी मनमानी से किसान चिंतित है। खाद्य विभाग ऐसी समितियाें की शिकायत आने पर कार्रवाई की बात कहता है। पर भोले-भाले किसान शिकायत करने से डरते हैं। उन्हें डर इसका रहता है कि कहीं शिकायत करने पर समिति किसी बहाने उनका धान ही नहीं खरीदेगा, या अधिक तौलकर, कम धान बताएगा।

टोकन वास्ते किसानों में मारामारी है। समितियां जानबूझकर ऑनलाइन टोकन लाने कहती है, जबकि इसमें परेशानी आती है। यह समितियाें को बखूबी पता है। वे जानबूझकर ऑफलाइन टोकन को स्वीकार नही कर रहे हैं। ऑनलाइन में तकनीकी दिक्कतें आती हैं जो अनपढ़, कम पढ़े-लिखे किसानों की समझ के बाहर है। जबकि पढ़ा-लिखा किसान तक परेशान हो जाता है। उपरोक्त कारणों से संशय के बादल मंडरा रहे है कि क्या सबका धान 31 जनवरी तक खरीदा जा सकेगा।

उधर खाद्य विभाग सचिव का कहना है कि समितियाें के पास उपलब्ध स्थान, तौल, कांटा, बारदाना, तौल मजदूर अन्य संसाधन की उपलब्धता अनुसार प्रतिदिन धान खरीदी की मात्रा निर्धारित करने जिलाधीशों को अधिकृत किया गया है। इधर किसानों का कहना है कि शासन-प्रशासन को चाहिए कि वह संसाधन अतिरिक्त लगाए। समय बढ़ाये, रात-दिन खरीदी हो तो 31 जनवरी क्या 20 जनवरी तक कोटा पूरा हो जाएगा। अभी के हिसाब से किसानों का कहना है कि जब रायपुर में नालंदा लाइब्रेरी सालों से बिना रुके अनवरत 24 घंटे चल सकती है, तो फिर धान खरीदी 15-20 दिनों या 24 घंटे क्यों नहीं हो सकती। ठहरने से किसानों का खर्च बढ़ता है। फिर किसानों को रुकने-ठहरने की समस्या है। ऊपर से लक्ष्य पूरा नहीं होता उनका सीधा आरोप है कि समितियां जानबूझकर सरकार को बदनाम करने एवं उनसे (किसानों) उगाही की नियत से ऑफलाइन हेतु मना करते हैं, समस्या बताने लगते हैं, धीमा काम करते हैं।

(लेखक डा. विजय)

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