Wed. Jul 2nd, 2025

निजी-सरकारी अस्पतालों के बाहर अनाधिकृत अतिथि गृह, भोजनालय, डेड बॉडी वाहन संचालित

– कोई रोकने-टोकने-पूछने वाला नहीं…

रायपुर। राजधानी के अंदर कुछ वर्षों से आधुनिक चिकित्सा सेवा बढ़ गई है। लिहाजा प्रदेश समेत आसपास राज्यों के लोग आकर इलाज कराते हैं। जिनकी मजबूरी का गलत फायदा टेक्सी एवं कथित अतिथि गृह, भोजनालय वाले उठा रहे हैं। पर जिला प्रशासन नगर निगम ने इस संबंध आज तक कोई एक कार्रवाई भी नहीं की है।

शहर में दर्जनों बड़े निजी चिकित्सा संस्थान एवं आधा दर्जन बड़े सरकारी अस्पताल हैं। जहां बकायदा आधुनिक तरीके इलाज मुहैय्या कराया जाता है। आयुष्मान कार्ड में फ्री इलाज के चलते भी लोग प्रदेश सहित दूर-दराज या अन्यत्र प्रदेशों से आ रहे हैं।

निजी हो या सरकारी अस्पताल, यहां मरीजों के साथ एक ही तीमारदार स्वयं के खर्च पर रह सकता है। स्वाभाविक है कि एक मरीज के साथ 2-3 तीमारदार आते हैं कई बार पूरा परिवार, ताकि शिफ्ट वाइज तीमारदारी (सेवा) कर सकें। इनमें धनाढ्य वर्ग तो अच्छे होटल या पंजीकृत अतिथि गृह में रहने का खर्च उठा लेते हैं। परंतु गरीब, मध्यम वर्ग के लिए यह संभव नहीं है। वे अस्पताल के बाहर बिना पंजीयन चल रहे (गलत तरीके से अतिथि गृह में एक कमरे का खर्च 600 से लेकर 1200 रोजाना) देकर रहने मजबूर हैं। यह ठहरने भर का प्रतिदिन का किराया हैं। खाने -पीने के लिए अपंजीकृत भोजनालय भी आसपास धड़ल्ले से चल रहें हैं। जो 80 से 150 -200 रुपए थाली लेते हैं। इन अतिथिगृह मलिकों,संचालकों के बारे मेंअधिकृत जानकारी लेकर कार्रवाई करने की जिला प्रशासन को फुरसत नहीं, कहेंगे। उनके पास कोई शिकायत नहीं है। अतिथि गृह, भोजनालय वाले, टेक्सी वाले, पान ठेला, चाय ठेला वाले, दलाल हैं। तो कई (एजेंट) दलाल भी सीधे अस्पताल पहुंच ग्राहक ढूंढते हैं। निगम भी कार्रवाई नहीं करता। रहवासी इलाके या घर को व्यवसायिक कैसे बना लिया, पूछने वाला भी कोई नहीं। शहर में सैकड़ों ऐसे अतिथि गृह-भोजनालय दिनदहाड़े बदस्तूर जारी है। संबंधित इलाके के पार्षद भी सब जानते हैं, पर आवाज नहीं उठाते।

दूसरी तरफ इन अस्पतालों के बाहर एंबुलेंस सेवा के नाम पर टैक्सी वाले अवैध धंधा बिना पंजीयन कराए कर रहें हैं। अगर छोटे- मंझोलों से बड़े अस्पताल ले जाना हो या डेड बॉडी (मृतक का शरीर) ले जाना हो तो सीधे हजारों में बात करते हैं। शहर के अंदर हजार से डेढ़ हजार। बाहर ले जाने पर 50 किलोमीटर का 4 से 5 हजार। 100 किलोमीटर का 6 से 8 हजार उसमें अधिक दूरी का 10 से 12 हजार,15 हजार मांगते हैं। इनके भी दलाल एजेंट अस्पतालों में चक्कर मारते ग्राहक ढूंढते रहते हैं। आपत्ति करने पर जवाब, होता (रहता) है- साहब, वापसी में डेड बॉडी वाहन में कौन सवारी बैठेगा। खाली आना होता है। पंजीयन पूछो तो कहेंगे आपको काम से मतलब है कि पंजीयन से, यहां भी कोई कार्यवाही करने वाला नहीं है। सरकारी एंबुलेंस कम हैं। कुछ मरीज ढो रही हैं, कुछ कंडम पड़ी खड़ी हैं। यानी व्यवस्था का कोई माई बाप नहीं !

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