Nitish Kumar : सहयोगी बदलते रहे, कुर्सी पर नहीं आने दिया खतरा, 9वीं बार सत्ता संभालेंगे नीतीश कुमार
नीतीश कुमार लगभग दो दशक से बिहार की राजनीति के केंद्र में बने हुए हैं। 20 मई 2014 से लेकर 20 फरवरी 2014 तक उन्होंने जीतन राम मांझी को बिहार का मुख्यमंत्री बना दिया था।
नई दिल्ली। बिहार में सियासी गर्माहट से ठंड के मौसम में सभी दल सियासत की रोटी सेंकने में लगे हुए हैं। नीतीश कुमार लगभग दो दशक से बिहार की राजनीति के केंद्र में बने हुए हैं। 20 फरवरी 2014 से लेकर 17 मई 2015 तक उन्होंने जीतन राम मांझी को बिहार का मुख्यमंत्री बना दिया था। वह अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में रेल मंत्री भी रह चुके हैं। साल 2000 में पहली बार वह बिहार के मुख्यमंत्री बने थे, लेकिन केवल 7 दिनों के लिए। उसके बाद तो वह जैसे फेवीकॉल की तरह मुख्यमंत्री की कुर्सी से चुपक ही गए। 23 सालों में 8 बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं। आज सोमवार (28 जनवरी) को वह 9वीं बार बिहार के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लिया ।
नीतीश ने सन 2000 से लेकर अभी तक 8 बार मुख्यमंत्री की शपथ ली है। इस दौरान सहयोगी बदलते रहे, लेकिन वह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही बने रहे। हम आपको नीतीश कुमार के इस दिलचस्प राजनीतिक सफर के बारे में बताएंगे।
बीजेपी के कहने पर बने बिहार के सीएम
नीतीश कुमार साल को पहली बार बिहार का सीएम बनाने में भाजपा ने मदद की। साल 2000 में नीतीश कुमार समता पार्टी का नेतृत्व कर रहे थे। भाजपा, जनता दल व समता पार्टी ने एक साथ मिलकर राजद के खिलाफ चुनाव लड़ा था। चुनाव में एनडीए की तरफ से भाजपा 67 सीटों के साथ बड़ा दल था। समता पार्टी के 34 व जनता दल की 21 सीटें थीं। राजद 124 सीटोंं के साथ बड़ी पार्टी थी, लेकिन स्पष्ट बहुमत न होने के चलते बेबस थी। दरअसल, उस समय बिहार और झारखंड एक था, इसलिए विधानसभा में 324 सीटें थीं। उस समय भाजपा नेताओं ने नीतीश कुमार को सीएम बनाने की पैरवी की। खुद उनकी पार्टी के नेता नीतीश के खिलाफ जाकर खड़े हो गए थे।
पहली बार 7 दिनों के लिए सीएम बने थे नीतीश
नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट करने का काम भाजपा नेता सुशील मोदी ने किया था। उसके बाद लाल कृष्ण आडवाणी और अरुण जेटली भी आगे आए और नीतीश कुमार को सीएम बनाने की जुगत में लग गए। उसके बाद नीतीश कुमार को एनडीए विधायक दल का नेता चुन लिया गया। नीतीश बस सात दिनों के लिए बिहार के मुख्यमंत्री बन पाए। विधानसभा में बहुमत साबित न कर पाने की स्थिति में उन्हें इस्तीफा दे दिया।
उसके बाद नीतीश दोबारा 2005 में मुख्यमंत्री बने। उसके बाद से तो ऐसे सीएम की कुर्सी पर बैठे कि उठे ही नहीं। बस बीच में कुछ महीनों के लिए 20 फरवरी 2014 को अपनी ही मर्जी से जीतन राम मांझी को सीएम बना दिया था। उसके बाद उन्हें 17 मई 2015 को हटाकर फिर से कुर्सी संभाल ली।
मुख्यमंत्री बनने की कहानी
नीतीश कुमार 3 मार्च 2000 को सीएम बने थे। बहुमत साबित न कर पाने की वजह से 10 मार्च को ही इस्तीफा दे दिया था। उसके बाद 2005 के चुनाव में भाजपा के समर्थन से दोबारा मुख्यमंत्री बने। 2010 के चुनाव में भाजपा के ही समर्थन से तीसरी बार मुख्यमंत्री बने।
2014 में छोड़ा था मुख्यमंत्री पद
2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के सामने पार्टी टिक नहीं पाई। पार्टी के निराशाजनक प्रदर्शन की वजह से नीतीश कुमार ने सीएम की कुर्सी को छोड़ दिया। उन्होंने जीतनराम मांझी को सीएम बना दिया। 2015 में पार्टी में फूट पड़ना शुरू हुई, तो उन्होंने मांझी को पट से हटा दिया और खुद सीएम बन बैठे।
महागठबंधन ने जीता चुनाव
2015 में महागठबंधन (जदयू, राजद, कांग्रेस और लेफ्ट गठबंधन) के नेतृत्व में विधानसभा चुनाव हुआ। सरकार का गठन हुआ, जिसके मुखिया नीतीश कुमार बने। उन्होंने पांचवी बार बिहार के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली।
तेजस्वी पर भ्रष्टाचार के आरोपों से थे असहज
राजद और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव के खिलाफ 2017 में आईआरसीटीसी घोटाले का आरोप लगा। नीतीश कुमार भ्रष्टाचार के आरापों से काफी असहज थे। उन्होंने महागठबंधन से नाता तोड़ दिया। उन्होंने जुलाई 2017 में सीएम पद छोड़ दिया। उसके बाद फिर एक बार भाजपा से नाता जोड़ सीएम बन गए।
2020 में सातवीं बार बने मुख्यमंत्री
2020 के विधानसभा चुनाव में एनडीए गठबंधन की सरकार बनी, लेकिन इस बार जदयू की सीटें काफी घट गईं थीं। भाजपा बड़े भाई की भूमिका में आ गई थी। नीतीश कुमार ने उसके बाद भी सातवीं बार सीएम पद पर कब्जा किया था।
2022 में फिर आए थे महागठबंधन के साथ
अगस्त 2022 में उन्होंने फिर एनडीए का साथ छोड़ दिया। वह महागठबंधन के साथ सरकार बनाने में सफल हुए। उन्होंने आठवीं बार सीएम पद पर कब्जा किया। अब वह फिर से महागठबंधन को अंगूठा दिखाकर एनडीए के साथ जा रहे हैं। अब नौवीं बार सीएम पद की शपथ लेंगे।