Nirjala Ekadashi 2024: निर्जला एकादशी व्रत कथा का इतिहास, जानें क्यों पड़ा इसका नाम भीमसेनी एकादशी

Nirjala Ekadashi 2024: निर्जला एकादशी के दिन आहार के साथ-साथ जल सेवन में भी संयम का महत्व होता है। इस व्रत में जल का सेवन नहीं किया जाता है।
Nirjala Ekadashi 2024 रायपुर। निर्जला एकादशी का व्रत करने से अधिकमास की दो एकादशियों समेत साल की 25 एकादशी व्रतों का फल मिलता है। जबकि साल की अन्य एकादशी व्रतों में आहार संयम का महत्व होता है। निर्जला एकादशी के दिन आहार के साथ-साथ जल सेवन में भी संयम का महत्व होता है। इस व्रत में जल का सेवन नहीं किया जाता है, यानी निर्जल रहकर व्रत का पालन किया जाता है। यह व्रत मन को संयम सिखाता है और शरीर को नई ऊर्जा देता है। यह व्रत स्त्री और पुरुष दोनों कर सकते हैं।
शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 17 जून को सुबह 04 बजकर 43 मिनट से होगी। वहीं इस तिथि का समापन 18 जून को सुबह 06 बजकर 24 मिनट पर होगा।
एकादशी व्रत का इतिहास
एक बार भीमसेन ने प्रत्येक एकादशी को व्रत रखने का विधान सुनकर व्यासजी से विनम्रतापूर्वक निवेदन किया, ‘महाराज! मुझे व्रत की कोई ऐसी विधि बताइए, जिससे मुझे मोक्ष की प्राप्ति हो जाए, मुझे दिनभर बहुत भूख लगती है। (भीम बहुत अधिक भोजन में रूचि रखता है या बहुत अधिक भोजन करता है) ‘अतः कृपा करके मुझे कोई ऐसा उपाय बताइए, जिससे स्वतः ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाए।’तब व्यासजी ने कहा, ‘यदि तुम वर्ष की संपूर्ण एकादशियां न कर सको तो केवल एक निर्जला कर लो, इससे तुम्हें वर्ष भर की एकादशियों के समान फल मिलेगा।’ तब भीम ने वैसा ही किया और स्वर्ग को प्राप्त किये। इसलिए इस एकादशी को ‘भीमसेनी एकादशी’ के नाम से भी जाना जाता है।
निर्जला एकादशी का महत्व
निर्जला का अर्थ है बिना जल ग्रहण किए और निराहार रहकर यह व्रत किया जाता है। इसलिए यह व्रत कठिन तपस्या और साधना के समान ही महत्व रखता है। हिंदू पंचांग के अनुसार वृषभ और मिथुन संक्रांति के बीच शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहते हैं। इस व्रत को भीमसेन एकादशी या पांडव एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक मान्यता है कि पांच पांडवों में से एक भीमसेन ने इस व्रत को किया था और वैकुंठ चले गए थे। इसलिए इसे भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है।