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स्कूल ड्रेस सिलने वाले टेलर्स के पास फुर्सत नहीं..! आम आदमी (ग्राहक) को इंतजार करा रहे…

रायपुर। नया शिक्षा सत्र के साथ नया ड्रेस। यह ड्रेस सरकारी स्कूलों में फ्री (कक्षा 8 वीं) निजी स्कूलों में सशुल्क है। पर इन्हें मिलने वास्ते टेलरों (दर्जी)की जरूरत- मांग बढ़ गई है। ऐसे में स्वाभाविक है कि टेलरों का भाव बढ़ गया है। आमतौर पर वे आसानी से उपलब्ध नहीं है।

दरअसल सरकारी स्कूल में कक्षा 1 से 8 वीं तक के बच्चों को मुफ्त में ड्रेस-बस्ता मिलता है। उन्हें स्कूल प्रबंधन थोक में खरीदता या बनवाता है। ऐसे में टेलर व्यस्त हो जाते हैं। रेडीमेड ड्रेस भी आता हैं। या तो ठेके बड़े मशीन से ऑटोमेटिक सिलाई या ट्रेलरों को बुला सीधे सिलवाया जाता है। 9 वीं के बाद के विद्यार्थी अपनी इच्छा अनुसार निर्धारित ड्रेस कहीं भी सिलवा सकते हैं।

उपरोक्त हालातों में राजधानी समेत अन्य शहरों, कस्बों गांवों के टेलरों को फिलहाल सिर उठाने की फुर्सत नहीं है। वे आम या निजी ग्राहक को सेवा देने कृतज्ञता पूर्वक मना कर दे रहे हैं। या 2 माह बाद डेट (तिथि) दे रहे हैं।

बच्चों की एक ड्रेस औसतन 150 से 200 एवं कामकाजी लोगों के शुल्क 400 से 600 रुपए प्रति जोड़ी ले रहे हैं। परिधान का फैशन बदलने के साथ रेट (दर) भी बदलने लगता है। आम आदमी चाहकर भी नए कपड़े नहीं सिलवा पा रहा है। बहरहाल उपरोक्त व्यवस्था 2 माह तक चलेगी उसके बाद थोड़ा फ्री होंगे। पुराने कपड़े को अलटर या रफ्फू, काज -बटन तो फिलहाल दूर की कौड़ी है।

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