मध्यान्ह भोजन, रसोईयों-स्व सहायता समूहों ने हाथ खड़ा किया, 4-5 महीनों से मानदेय नहीं मिला

मध्यान्ह भोजन
रायपुर न्यूज : स्कूलों में मध्यान्ह भोजन योजना चरमरा गई है। ज्यादातर स्कूलों में रसोइयों एवं महिला स्व सहायता समूहों को 4-5 माह से मानदेय नहीं मिला है। जिस वजह से उन्हें काम करने में भारी परेशानी हो रही है। केंद्र सरकार ने योजनांतर्गत राशि भेज दी है। परंतु राज्य सरकार ने अपना राज्यांश जारी नहीं किया है।
बताया जा रहा है कि शासन की उदासीनता के चलते योजना अगस्त-सितंबर से चरमराने लगी थी। तब चुनाव आचार संहिता भी नहीं लगी थी। योजनांतर्गत केंद्र एवं राज्य मिलकर स्कूलों में बच्चों के लिए मध्यान्ह भोजन की व्यवस्था करते हैं। इस योजना हेतु प्रत्येक स्कूल में बाकायदा रसोईयों की नियुक्ति हर माह निश्चित मानदेय पर की गई है। दूसरी ओर गांव की महिलाएं स्व सहायता समूह बनाकर या काम करती हैं। जिन्हें खाद्यान्न सामग्री हेतु पैसा आबंटित होता है। परंतु अगस्त-सितंबर माह से पैसा जारी न होने से खाद्यान्न उठाने ( खरीददारी) में लगातार परेशानी हो रही है।
अंदर की खबर है कि महिला स्व सहायता समूह एवं रसोईए अपने विश्वास (भरोसे) से दुकानों से राशन उधारी ला रहे हैं। परंतु माह दर माह उधारी बढ़ते जाने से अब दुकानदारों ने हाथ उठा दिया है। उन्हें भी थोक वालों को खाद्यान्न का पैसा देना पड़ता है। सारी स्थिति से शासन-प्रशासन अवगत रहा है। फिर भी लापरवाही की वजह से योजना का पैसा पिछले कई माह से रुका होने की वजह से काम संचालित करने में परेशानी हो रही है। रसोइयों ने तो 1 जनवरी से काम करना बंद कर कर दिया है। जैसे-तैसे स्व सहायता समूहों की महिलाएं बच्चों के भोजन बनाने का जिम्मा संभाल रही हैं। परंतु दुकानदारों द्वारा अब और उधारी नहीं देने से मेन्यू अनुसार बच्चों को भोजन नहीं परोसा जा पा रहा है। थाली से पोषण वाली सामग्री गायब हैं।
हालात बेकाबू होते देख हताश होकर स्व सहायता समूह की महिलाएं लोक शिक्षण संचनालय जा पहुंची। जहां संचालक को परेशानी बताई एवं बकाया राशि तुरंत भुगतान करने की मांग रखी। संचालक ने बताया कि 15 दिसंबर को ततसंबंध में केंद्र की ओर से राशि प्राप्त होते ही, प्रस्ताव बनाकर राज्य शासन को भेज दिया गया है। शीघ्र ही मानदेय राशि का भुगतान कर दिया जाएगा। उन्होंने यथासंभव मध्यान्ह भोजन बनाना बंद नहीं करने का आग्रह महिला समूहों से किया।
समूहों का आरोप है कि सरकार उदासीनता बरत रही है। अपने नियमित, अनियमित कर्मचारियों, अधिकारियों को हर माह समय पर हजारों लाखों का वेतन एवं भत्ता शासन द्वारा दिया जाता है। पर बच्चों के लिए लाई गई योजना पर गंभीरता नहीं बरती जाती। अरसे से मानदेय नहीं मिलने पर खुद के बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, इलाज, घर- चलाने में परेशानी होती है। एक तो मानदेय कमतर(अल्प) ऊपर से अनियमित। उधर शासकीय कर्मियों को अत्यधिक वेतन डेढ़ से दो लाख महीना- वह भी नियमित। यह दोहरा रवैय्या है। साथ ही योजना पर घोर उदासीनता दर्शाती हैं।
(लेखक डॉ विजय )