Rangbhari Ekadashi 2024: रंगभरी एकादशी पर पाएं राधा कृष्ण के साथ शिव-पार्वती का आशीर्वाद

Rangbhari Ekadashi 2024:
Rangbhari Ekadashi 2024: रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शिव माता पार्वती के साथ काशी आते हैं और देवी मां को नगर भ्रमण पर ले जाते हैं। धार्मिक मान्यता है कि जो भी व्यक्ति रंगभरी एकादशी के दिन महादेव और मां गौरी की पूजा करता है उसके दांपत्य जीवन में मधुरता आती है और विवाहित महिलाओं को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है।
Rangbhari Ekadashi 2024: फाल्गुन शुक्ल पक्ष की एकादशी को रंगभरी एकादशी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन से द्वारका, मथुरा, वृन्दावन के मंदिरों में राधा-कृष्ण के साथ भक्त अबीर-गुलाल के साथ रंगभरी एकादशी मनाते हैं। राधा को मनाने के लिए वृंदावन की गलियों को रंगों से सजाया था और रंग और फूल के साथ राधा को मनाने के कारण और इसी दिन एकादशी पड़ने पर इसे रंगभरी एकादशी कहा जाता हैं। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन से काशी में होली का त्योहार शुरू होता है। रंगभरी एकादशी के दिन श्री काशी विश्वनाथ श्रृंगार दिवस मनाया जाता है। इस दिन बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक काशी विश्वनाथ मंदिर में बाबा विश्वनाथ और पूरे शिव परिवार यानी माता पार्वती, भगवान गणेश और कार्तिकेय का विशेष श्रृंगार किया जाता है। इसके अलावा भगवान को हल्दी-तेल चढ़ाने की रस्म निभाई जाती है और अबीर-गुलाल भगवान के चरणों में अर्पित किया जाता है। साथ ही शाम को भगवान की चांदी की मूर्ति को पालकी में रखकर भव्य तरीके से रथ यात्रा निकाली जाती है।
एकादशी तिथि आरंभ- 20 मार्च को रात 12 बजकर 21 मिनट से
एकादशी तिथि का समापन- 21 मार्च को सुबह 02 बजकर 22 मिनट पर
रंगभरी एकादशी तिथि- 20 मार्च 2024
रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शिव और मां गौरी की पूजा का भी विशेष महत्व है-
रंगभरी एकादशी को आमलकी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने की परंपरा है। लेकिन रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शिव और मां गौरी की पूजा का भी विशेष महत्व है। रंगभरी एकादशी के दिन काशी (बनारस) में विशेष रौनक देखने को मिलती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, फाल्गुन शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन भोलेनाथ गौना (मायके से विदा कराना) कराकर मां गौरी को काशी लाए थे। तब महादेव और माता पार्वती के आगमन की खुशी में सभी देवी-देवताओं ने दीप आरती के साथ फूल, गुलाल और अबीर जलाकर उनका स्वागत किया। कहा जाता है कि तभी से काशी में इस तिथि पर भगवान शिव और पार्वती की पूजा करने और उनके साथ होली खेलने की परंपरा शुरू हुई और इसे रंगभरी एकादशी के नाम से जाना जाने लगा।
रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शिव माता पार्वती नगर(काशी) में भ्रमण आते है-
कहा जाता है कि रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शिव माता पार्वती के साथ काशी आते हैं और देवी मां को नगर भ्रमण पर ले जाते हैं। धार्मिक मान्यता है कि जो भी व्यक्ति रंगभरी एकादशी के दिन महादेव और मां गौरी की पूजा करता है उसके दांपत्य जीवन में मधुरता आती है और विवाहित महिलाओं को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है।
रंगों का पर्व रंग एकादशी बुधवार से प्रारंभ हो चुका है जो पूरे 11 दिन चलेगा। 25 मार्च सोमवार को रंगोत्सव यानि होली खेली जाएगी। माना जाता है कि रंगों से हमारी अनुभूतियां जुड़ी हुई है, जो उन्हीं से एक तरह प्रभावित संचालित होते रहती है। वास्तव में रंग भाव- विचारों के नियामक हैं। रंगों से शब्द खुद ब खुद संप्रेषित होते हैं। हमारे नेत्र शुरुआत से अंत तक रंगों से सीधे तौर पर संबद्ध रहते हैं।
विदित हो कि मनुष्य समेत सारा विश्व पंचभूतों से बना हुआ है। पंचभूत यानि पृथ्वी, जल, तेज, आकाश, वायु। इन्हीं पांच तत्वों और इनमें निहित गुणों से विश्व संचालित होता है। पंचभूतों के गुण हमारी रे ज्ञानेंद्रियों का विषय बन प्रेरणा भी देते हैं। रंगों का पर्व होली मन को हर्ष से भर देता है। इसे समझने गहराई में जाना होगा। यह पर्व हमें व्यापक संदेश देता है। मानवता का, भाईचारे का, सबके प्रति अच्छी भावना रखने का। पांच तत्वों में प्रत्येक का रहना हमारे लिए आवश्यक है इस संदर्भ के साथ मानवता को समझा जा सकता है।
रंगों के त्योहार यानी होली को उपरोक्त नजरिए से देखें। रंग को विशेष महत्व देते हुए भावनाओं, विचारों और संवेदनाओं के संपूर्ण संसार को समझना और समझाना, रंग एक अनोखा उपहार है; त्योहार की सांस्कृतिक प्रतिष्ठा वास्तव में इसे व्यक्त करती है।